बर्फ़ का पहाड़ तोड़ते, हवा में उड़ते, आग के गोले से निकलते, हाथी को पटकते या गाड़ियों को हवा में उछालते। फ़िल्मों के ज़रिए गुरमीत राम रहीम का ये रूप उनके प्रशंसकों में काफ़ी लोकप्रिय हुआ था।
ऐसे ही प्रशंसकों और अनुयायियों की ताक़त थी कि एक वक़्त हरियाणा और पंजाब के राजनीतिक दलों में गुरमीत राम रहीम के डेरे पर समर्थन के लिए होड़ रहती थी। उनके डेरा सच्चा सौदा का आशीर्वाद चुनावों में जीत के लिए एक अहम फैक्टर माना जाता था।
गुरमीत राम रहीम अब यौन शोषण और हत्या के जुर्म में जेल काट रहे हैं। उन्हें सज़ा होने के बाद डेरे के अनुयायियों के लिए ये पहला लोकसभा चुनाव है। मगर क्या अब भी डेरा सच्चा सौदा का चुनावों में प्रभाव है?
सिरसा का डेरा पिछले 65 साल से चल रहा है। राम रहीम के जेल जाने के बाद भी यहां हर शाम नाम चर्चा के लिए अनुयायी आते हैं। मगर चुनावी मौसम के चलते आजकल सिर्फ़ अनुयायी ही नहीं, राजनीतिक दलों के नेता फिर से यहां आ रहे हैं।
डेरे के अंदर हर उम्र के पुरुष और महिलाएं जाते दिखे। डेरे के सामने ही एक दुकान चलाने वाले अनुयायी से हमने जानना चाहा कि क्या अब भी वहां नेताओं की आवा-जाही रहती है।
उन्होंने बताया कि हाल ही में कांग्रेस नेता अशोक तंवर वहां आए थे, बाक़ी पार्टियां भी आती हैं लेकिन आगे-पीछे आते हैं। अशोक तंवर सिरसा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। जब अनुयायी से हमने और जानना चाहा तो उन्होंने टालते हुए कहा कि सब आते-जाते हैं, राजनीतिक पार्टियों के लोग भी आ सकते हैं क्योंकि दरबार तो सभी के लिए खुला है।
राम रहीम के इस दरबार में 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा के तत्कालीन हरियाणा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय 44 उम्मीदवारों को उनका आशीर्वाद दिलवाने लेकर गए थे। राम रहीम ने इससे पहले खुले तौर पर नरेंद्र मोदी को समर्थन दिया था। ख़ुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर राम रहीम की तारीफ़ में ट्वीट करते थे।
इससे पहले 2007 में पंजाब में राम रहीम ने कांग्रेस को समर्थन दिया था। उसी साल डेरा सच्चा सौदा ने एक राजनीतिक विंग शुरू की थी जिसका काम था डेरे के लिए राजनीतिक फैसले लेना। अनुयायियों ने बताया कि इस विंग के सदस्य संगत में आने वाले लोगों से बातचीत करते हैं, आस-पास के इलाक़ों में लोगों से मिलते हैं और तब फैसला करते हैं कि इस बार वोट किसको जाएगा।
ये राजनीतिक विंग अब कौन लोग चला रहे हैं इसके बारे में अनुयायियों को जानकारी नहीं लेकिन अनुयायी इस बात की तस्दीक़ करते हैं कि ये अब भी काम कर रही है।
रामरहीम के जेल जाने के बाद उनके सहयोगी या तो जेल में हैं या फ़रार हैं। लेकिन कुछ लोग हैं जो अब भी काम कर रहे हैं भले ही वे खुले तौर पर काम नहीं करते हैं।
इस बार वोट किस पार्टी को जाएगा, इसके बारे में किसी अनुयायी से कोई जवाब नहीं मिला। उनका कहना था कि अभी उन्हें इस बारे में नहीं बताया गया है। लेकिन उनके मुताबिक़ संगत एक है और जो संगत फैसला करेगी, उसी के हिसाब से वोट किया जाएगा।
लाखों अनुयायी वाले ये डेरे राजनीतिक पार्टियों के लिए अब भी एक वोट बैंक हैं। ये वोट बैंक बना इन लोगों की राम रहीम पर गहरी आस्था के चलते जो आज भी बराबर बनी हुई है।
उन पर कोर्ट में साबित हुए अपराधों को भी अनुयायी अन्याय और साज़िश का नतीजा मानते हैं। जब इस पर उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा कि अभी तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में फैसला आना बाक़ी है और वहां उनके राम रहीम निर्दोष साबित हो जाएंगे।
लेकिन अगर इन ऊपरी अदालतों में भी अपराध साबित हो जाएगा तो क्या अनुयायी राम रहीम पर विश्वास करना छोड़ देंगे तो इस पर एक अनुयायी ने कहा कि राम रहीम उनके लिए विश्वास नहीं भगवान हैं।
एक अनुयायी ने कहा कि उन्हें फंसाया गया क्योंकि वो नशा छुड़वाते थे और नशे के कारोबारियों को वो चुभते थे, राजनीतिक दल भी इस साज़िश में शामिल रहे हैं। "किसी सरकार ने उनकी मदद नहीं की। हम उसे चुनाव में सपोर्ट नहीं करेंगे जिन पर हमें शक है कि उन्होंने बाबाजी को फंसाया है।"
जब पूछा कि अगर राजनीतिक विंग ने उन्हीं लोगों को वोट करने के लिए आदेश दे दिया जिन पर शक है तो क्या होगा? इस पर उन्होंने कहा कि फिर उसी को देंगे जिसके लिए राजनीतिक विंग ने कहा क्योंकि विंग कुछ सोच-समझ कर ही फैसला करेगी।
अनुयायियों के राम रहीम पर इस अटूट विश्वास और प्रभाव की वजह से ही शायद राजनीतिक पार्टियों ने उनके जेल जाने के बाद भी राम रहीम के ख़िलाफ़ कभी कोई बयान नहीं दिया।
अनुयायियों से बात करके ये तो पता चला कि उनकी वोटिंग को डेरा अब भी प्रभावित करने में सक्षम है। इस मामले पर सिरसा डेरे के प्रवक्ता से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया।
डेरे के आस-पास 'सच' नाम से चलती दुकानें, अस्पताल, स्कूल, अख़बार और अनुयायियों की आस्था से पता चलता है कि डेरे में राम रहीम नहीं हैं लेकिन उनका सिस्टम अब भी बरक़रार है।