-जेरेमी हॉवेल (संवाददाता, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस)
rechep tayyip ardoğan: अगर तुर्की के मौजूदा राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन 28 मई को होने वाले मतदान में राष्ट्रपति पद से बाहर हो जाते हैं, तब तुर्की के दुनिया के बाक़ी देशों के साथ रिश्तों में बड़ा बदलाव आ जाएगा। अर्दोआन के नेतृत्व में, तुर्की ने रूस के साथ नज़दीकी संबंध स्थापित किए और इससे उसके पश्चिमी सहयोगी देश नाराज़ हुए। यही नहीं अर्दोआन ने इराक़, सीरिया और लीबिया के संघर्षों में तुर्क सैनिक भी भेजे।
विपक्ष के उम्मीदवार, कमाल कलचदारलू ने वादा किया है कि वो पश्चिम के अधिक क़रीब रहेंगे और दूसरे देशों के मामलों में कम हस्तक्षेप करेंगे।
तुर्की सीरिया के शरणार्थियों के साथ क्या करेगा?
अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक तुर्की में इस समय सीरिया के 37 लाख शरणार्थी पंजीकृत हैं जो अपने देश के गृहयुद्ध से भागकर यहां पहुंचे हैं। इसके अलावा तुर्की में अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों से आए शरणार्थी भी रहते हैं।
राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा है कि तुर्की इतनी बड़ी संख्या में शरणार्थियों का बोझ नहीं उठा पाएगा।
अर्दोआन और कलचदारलू दोनों ने कहा है कि वो सीरिया के साथ सामान्य रिश्ते चाहते हैं ताकि वहां से आए शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजा जा सके।
सीरिया में गृहयुद्ध और देश के कुछ हिस्सों पर तथाकथित इस्लामिक स्टेट के क़ब्ज़े के बाद बड़ी तादाद में लोग अपना देश छोड़कर तुर्की पहुंचे थे।
लेकिन इसका मतलब ये होगा कि इन लोगों को फिर से सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के सत्तावादी शासन में रहना होगा।
इसी महीने, तुर्की के मीडिया में प्रसारित एक बयान में कलचदारलू ने कहा, 'राष्ट्रपति बनने के बाद में सभी शरणार्थियों को वापस उनके देश भेज दूंगा। इस पर और कई बात नहीं होगी।'
उन्होंने यूरोपीय संघ के साथ शरणार्थियों को लेकर हुए तुर्की के समझौते से भी पीछे हटने की चेतावनी दी है। इस समझौते के तहत तुर्की सीरिया से आ रहे शरणार्थियों को अपने देश में रहने की अनुमति देने के लिए तैयार हुआ था। इससे शरणार्थियों को यूरोप के देशों में जाने से रोका गया था।
कलचदारलू का कहना है कि यूरोपीय संघ ने समझौते के तहत अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी नहीं निभाई है।
पश्चिमी देशों के साथ तुर्की के संबंधों में क्या बदलाव आएगा?
1923 में तुर्की में गणतंत्र की स्थापना के बाद से ही ये देश पश्चिमी देशों का सहयोगी और क़रीबी रहा है।
पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नेटो में तुर्की के पास सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है। तुर्की ने यूरोपीय संघ का हिस्सा बनने का आवेदन भी दिया है।
हालांकि, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन बार-बार पश्चिमी देशों को 'साम्राज्यवादी' और 'अन्यायपूर्ण' बताते रहे हैं।
अर्दोआन के कार्यकाल में तुर्की ने रूस के साथ संबंध मज़बूत किए हैं।
2019 में, तुर्की ने रूस से अति-उन्नत एस 400 मिसाइल रक्षा प्रणाली ख़रीदी थी।
इसके जवाब में, अमेरिका ने तुर्की को एफ़-35 लड़ाकू विमान विकसित कर रहे अंतरराष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रम से बाहर कर दिया था।
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से तुर्की स्वीडन के नेटो में शामिल होने के आवेदन का भी विरोध कर रहा है। तुर्की का तर्क है कि स्वीडन तुर्की के विरोधी तत्वों और दुश्मनों को पनाह दे रहा है।
कमाल चलचदारलू का कहना है कि वो पश्चिमी देशों के साथ तुर्की के रिश्तों को बेहतर करेंगे।
लंदन स्थित विदेश नीति थिंक टैंक चैटहैम हाउस से जुड़े विशेषज्ञ गालिब डेले कहते हैं कि अगर कलचदारलू राष्ट्रपति चुन लिए जाते हैं तो उनका ध्यान पश्चिम के साथ तूर्की के रिश्तों को फिर से बेहतर करने पर रहेगा।
'वो पश्चिम के साथ अधिक औपचारिक रिश्ते रखेंगे। विदेश नीति में राष्ट्रपति अर्दोआन की तरह उनका व्यक्तिगत दख़ल कम होगा और ये राजनयिक अधिक होगी।'
कलचदारलू कहते हैं कि राष्ट्रपति के रूप में, वे तुर्की के यूरोपीय संघ में शामिल होने के आवेदन को फिर से शुरू करेंगे। उन्होंने कहा है कि वो ये सुनिश्चित करेंगे कि यूरोपीय मानवाधिकर अदालत के आदेशों को तुर्की में लागू करेंगे।
लेकिन कलचदारलू ने यूरोपीय संघ के साथ शरणार्थियों को लेकर हुए समझौते से बाहर निकलने की चेतावनी भी दी है। ऐसा करके उन्होंने ज़ाहिर कर दिया है कि वो पश्चिम के शक्तिशाली देशों के सामने डटने के लिए भी तैयार हैं।
यूक्रेन युद्ध के प्रति तुर्की की नीति कैसे बदल सकती है?
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही तुर्की यूक्रेन और रूस को समर्थन देने में संतुलन बनाने की कोशिश करता रहा है।
तुर्की ने पश्चिमी देशों के रूस पर प्रतिबंधों को लागू करने से इनकार किया, लेकिन दूसरी तरफ़ उसने सैन्य इस्तेमाल वाले बरयक्तार ड्रोन यूक्रेन को बेचे।
तुर्की ने काले सागर के ज़रिए बाकी दुनिया में यूक्रेन के गेहूं के निर्यात को संभव बनाने के लिए यूक्रेन और रूस के बीच समझौते की मध्यस्थता भी की।
इक्सेटर यूनिवर्सिटी से जुड़े हमदुल्लाह बयकार कहते हैं, 'अगर कलचदारलू राष्ट्रपति बन जाते हैं तो वो रूस के प्रति समर्थन कम कर सकते हैं।'
'वो रूस के साथ इतने ग़हरे संबंध नहीं रखेंगे लेकिन वो रूस को अपना दुश्मन भी नहीं बनाएंगे।'
मध्य पूर्व के देशों के साथ तुर्की के रिश्तों में क्या बदलाव आ सकता है?
लीबिया में तुर्की की सेनाएं नेशनल यूनिटी की सरकार का समर्थन कर रही हैं। ये सरकार राजधानी त्रिपोली से चल रही है। वहीं देश के पूर्व में जनरल हफ़्तार के नेतृत्व में विद्रोहियों की सरकार है।
सिटी यूनिवर्सिटी लंदन से जुड़ीं डॉ। बेग़म ज़ोरलू कहती हैं, 'तुर्की के लीबिया में दीर्घकालिक आर्थिक हित हैं और तुर्की चाहता है कि इस देश में स्थिरता आए।'
इराक़ और सीरिया में तुर्की के सैन्यबल पीपुल्ज़ डिफ़ेंस यूनिट या वाईपीजी नाम के समूह के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं। इसके अलावा तुर्की और कई अन्य देशों में प्रतिबंधित घोषित चरमपंथी समूह कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी या पीकेके के ख़िलाफ़ भी तुर्की के सैन्यबल अभियान चला रहे हैं।
तुर्की की सरकार को शक है कि वाईपीजी पीकेके का समर्थन करती है।
इसकी वजह से अमेरिका तुर्की से नाराज़ है क्योंकि अमेरिका सीरिया में वाईपीजी को अपने मुख्य सहयोगी के रूप में देखता हैं। यहां ये राष्ट्रपति बशर अल असद की सत्ता का विरोध कर रहा है।
कलचदारलू का कहना है कि राष्ट्रपति के रूप में वो दूसरे देशों में दख़ल ना देने की विदेश नीति अपनायेंगे।
हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि वो इराक़, सीरिया और लीबिया से तुर्क सैनिकों को वापस बुलायेंगे या नहीं।
ज़ोरलू कहती हैं, 'कलचदारलू के गठबंधन में कई राष्ट्रवादी पार्टियां भी हैं और वो इस निर्णय के ख़िलाफ़ हो सकती हैं।'
चीन के साथ तुर्की के रिश्तों में क्या बदलाव आएगा?
तुर्की चीन के साथ कारोबारी रिश्ते बेहतर करना चाहता है और इसलिए ही वो बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (पूराने सिल्क रोड की तर्ज पर चीन की अंतरराष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की योजना) का हिस्सा है। तुर्की ने चीन से क़र्ज़ भी लिया है।
कोरोना महामारी के दौरान चीन ने तुर्की को वैक्सीन की खेप भेजी थी। ये तुर्की को मिलने वाली पहली वैक्सीन थी।
अर्दोआन सरकार चीन को नाराज़ करने को लेकर सतर्क रही है और चीन के शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों के कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर भी तुर्की ख़ामोश ही रहा है, भले ही ये माना जाता हो की वीगर तुर्क मूल के ही मुसलमान हैं।
कलचदारलू का कहना है कि अगर वो राष्ट्रपति बनते हैं तो वो इस मुद्दे पर चीन की सरकार के साथ बात करेंगे।
हालांकि बयकार कहते हैं, 'भले ही कलचदारलू अभी वीगर मुसलमानों पर खुलकर बोल रहे हैं लेकिन अगर उनके हाथ में सत्ता आई तो वो भी इस मुद्दे पर ख़ामोश हो जाएंगे।'
क्या तुर्की की अफ़्रीका में 'सॉफ़्ट पावर' बनने की नीति बदल जाएगी?
पिछले बीस सालों में तुर्की ने अफ़्रीका के दर्जनों देशों में अपने नये दूतावास स्थापित किए हैं।
तुर्की अफ़्रीका में अपनी सॉफ़्ट पॉवर का इस्तेमाल कर रहा है। वह यहां स्कूल बना रहा है और अफ़्रीकी छात्रों को तुर्की में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति दे रहा है।
तुर्की ने अफ़्रीका की कई सरकारों को लड़ाकू ड्रोन विमानों जैसे हथियार और उपकरण भी बेचे हैं।
डॉ. ज़ोरलू कहती हैं कि अर्दोआन की सरकार अफ़्रीकी देशों में सक्रिय रही है क्योंकि वो तुर्की को सबसे ग़रीब देशों के हितैषी के रूप में पेश करना चाहते हैं।
'राष्ट्रपति अर्दोआन ऐसे देशों को साथ लाना चाहते हैं जिन्हें लगता है कि पश्चिमी देशों ने उन्हें अलग-थलग छोड़ दिया है और नज़रअंदाज़ किया है।'
हालांकि, वो कहती हैं, भले ही तुर्की में राष्ट्रपति बदल जाए लेकिन अफ़्रीकी देशों के प्रति तुर्की की विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं होगा।
कमाल कलचदारलू कौन हैं?
*17 दिसंबर 1948 को तुर्की के तुनसेली में जन्म।
*परिवार का सरनेम काराबुलुत था। उनके पिता ने सरनेम बदलकर कलचदारलू कर लिया था क्योंकि उनके गांव में सभी का सरनेम कलचदारलू था।
*गाज़ी यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डिग्री लेने के बाद उन्होंने सिविल सर्विस में कदम रखा।
*1994 में तुर्की की इकोनॉमिक ट्रेंड पत्रिका ने उन्हें 'ब्यूरोक्रेट ऑफ़ द ईयर' के ख़िताब से नवाज़ा।
*1999 में सिविल सर्विस से इस्तीफ़ा देकर कमाल ने राजनीति में कदम रखा।
*मई 2010 से रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं।
कौन हैं अर्दोआन?
*फरवरी 1954 में काले सागर के तट के पास एक शहर में जन्म।
*पिता कोस्ट गार्ड थे जो बाद में इस्तांबुल शिफ्ट हो गए। उस वक्त अर्दोआन 13 साल के थे।
*युवा अर्दोआन सड़कों पर लेमनेड और ब्रेड बेचा करते थे।
*इस्तांबुल के मरमाना यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट में डिग्री ली। कई साल प्रोफ़ेशनल फुटबॉल भी खेला।
**वेलफ़ेयर पार्टी से जुड़े और 1994 में इस्तांबुल के मेयर चुने गए।
नस्लीय हिंसा भड़काने वाली कविता सार्वजनिक तौर पर पढ़ने के लिए उन्हें जेल की सज़ा हुई और मेयर पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा।
*अगस्त 2001 में उन्होंने अब्दुल्ला गुल के साथ मिलकर जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) बनाई।
*2002 में संसदीय चुनावों में उनकी पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की, 2003 में प्रधानमंत्री बने।
*2003 से 2014 तक लगातार तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे।
*2014 में और फिर 2018 में राष्ट्रपति चुने गए।