एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक, तालिबान ने पकड़े गए 7,000 लड़ाकों की रिहाई के बदले अफ़ग़ानिस्तान में तीन महीने के संघर्ष विराम का प्रस्ताव रखा है। अफगान सरकार के मध्यस्थ नादेर नादरी ने इसे "बड़ी मांग" बताया है। सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देगी, इसकी जानकारी फ़िलहाल नहीं दी गई है। अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान से हटने के बाद सरकार और तालिबान के बीच संघर्ष तेज हो गया है।
तालिबान ने हाल ही में दावा किया था कि उनके लड़ाकों ने अफगानिस्तान में 85% क्षेत्र को अपने कब्ज़े में ले लिया है। इस आंकड़े को स्वतंत्र रूप से सत्यापित करना मुमकिन नहीं है और सरकार इन दावों को ख़ारिज कर रही है।
एक दूसरे अनुमान के मुताबिक तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के 400 ज़िलों में से एक तिहाई से अधिक पर नियंत्रित कर लिया है।
यूएन ब्लैक लिस्ट से नाम हटाने का अनुरोध
नादरी ने कहा कि तालिबान नेताओं ने ये भी अनुरोध किया था कि उनके नाम संयुक्त राष्ट्र की ब्लैक लिस्ट से हटा दिए जाएं।
बीबीसी संवाददाता लाइसे डौसेट के मुताबिक, पिछले साल 5,000 तालिबान कैदियों को रिहा किया गया था और ऐसा माना जाता है कि उनमें से कई युद्ध के मैदान में लौट चुके हैं, इससे देश में हिंसा बढ़ गई है।
गुरुवार को तालिबान लड़ाकों ने पाकिस्तान की सीमा पर स्थित अफ़ग़ान चौकियों को अपने कब्ज़े में लेने का दावा किया था।
बीबीसी पश्तो सेवा के अनुसार, तालिबान ने कहा कि उसने दक्षिणी कंधार प्रांत में डूरंड लाइन पर स्थित स्पिन बोल्डक ज़िले, स्थानीय व्यापार मार्ग और बाज़ारों पर कब्ज़ा कर लिया है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान से लगी सीमा पर एक चौकी पर क़ब्ज़ा कर लिया है। अफ़ग़ान अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया है कि पोस्ट अब उनके कब्ज़े में नहीं है।
इससे पहले अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों ने इस्लाम कलां और तोरघुंडी के तालिबान के हाथों में जाने की पुष्टि की थी।
विदेशी सैनिकों के लौटने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से, अफ़ग़ानिस्तान में परिस्थितियाँ लगातार बदल रही हैं। तालिबान ने दावा किया है कि अगर वो चाहे तो दो हफ्तों में पूरे मुल्क पर कब्ज़ा कर सकता है।
एक समझौते के तहत अमेरिका और नैटो सहयोगी देश तालिबान द्वारा अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में किसी भी चरमपंथी समूह को काम करने की अनुमति नहीं देने के की शर्त बदले में सभी सैनिकों को वापस लेने पर सहमत हुए थे।
लेकिन तालिबान अफ़ग़ान बलों से लड़ना बंद करने के लिए राजी नहीं हुआ था। तालिबान अब अफ़ग़ान सरकार के साथ बातचीत कर रहा हैं, जो वो पहले नहीं करता था। बातचीत बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है और हमलों के रुकने के संकेत नहीं दिख रहे।