श्रद्धा हत्याकांड: कबूलनामे पर टिकी थ्योरी, आफ़ताब के ख़िलाफ़ पुलिस केस कितना मज़बूत?

BBC Hindi
गुरुवार, 17 नवंबर 2022 (08:02 IST)
दिनेश उप्रेती, बीबीसी संवाददाता
श्रद्धा वालकर हत्याकांड इन दिनों सुर्खियों में है। हत्या से जुड़े कई पहलू रोज़ सामने आ रहे हैं, लेकिन जो कुछ भी मीडिया में सामने आ रहा है, वो पुलिस सूत्रों के हवाले से दिखाया-सुनाया जा रहा है। पुलिस का दावा है कि श्रद्धा के साथ लिव इन रिलेशन में रह रहे आफ़ताब पूनावाला ही हत्यारा है और उसने तकरीबन छह महीने पहले 18 मई को श्रद्धा की हत्या कर दी थी। श्रद्धा और आफ़ताब लिव-इन रिलेशनशिप में थे और मुंबई से दिल्ली आकर रह रहे थे।
 
पुलिस का दावा है कि आफ़ताब ने ये भी कबूल किया है कि उसने श्रद्धा के शव को कई हिस्सों में काटा और फिर इन टुकड़ों को मेहरौली से सटे जंगल में फेंक दिया।
 
अब पुलिस आफ़ताब को इन जंगलों में ले जाकर शव के टुकड़ों (हड्डियों) को ढूँढने में जुटी हुई है। लेकिन सवाल पूछे जा रहे हैं कि पुलिस हिरासत में आफ़ताब का कबूलनामा और इस पर आधारित 'पुलिस की थ्योरी' क्या अदालत में श्रद्धा को इंसाफ़ दिला पाएगी?
 
कबूलनामा कितना पुख्ता सबूत?
इस हत्याकांड में अभी तक सामने आई सारी बातें आफ़ताब पूनावाला के कथित कबूलनामे पर आधारित हैं। दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड उपायुक्त और अधिवक्ता एलएन राव ने बीबीसी को बताया, "ये सही है कि क़ानून के हिसाब से पुलिस के सामने दिया गया बयान अदालत में स्वीकार्य नहीं है, लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि इस कबूलनामे की कोई अहमियत नहीं है।
 
अगर अपराधी कुछ कबूल करता है और उसकी निशानदेही पर वो बात प्रमाणित हो जाती है तो अदालत भी इसे स्वीकार करती है।"
 
राव मानते हैं कि इस मामले में क्योंकि कोई चश्मदीद गवाह नहीं है और न ही शव बरामद हुआ है, ऐसे में पुलिस के सामने हत्यारे को सज़ा दिलाना आसान नहीं होगा।
 
उन्होंने कहा, "जहाँ तक इस मामले (श्रद्धा हत्याकांड) की बात है तो पुलिस के पास परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं। ऐसे मामलों में लास्ट सीन थ्योरी को भी प्रमुखता से अदालत के सामने रखा जाता है। पुलिस को फ़ॉरेंसिक एक्सपर्ट (खून और हड्डियों की जाँच से) की मदद से साबित करना होगा कि श्रद्धा की हत्या हुई है।"
 
इस मामले में डीएनए पुष्टि और आफ़ताब के साथ श्रद्धा को आख़िरी बार देखा जाना पुलिस के लिए मज़बूत केस खड़ा करने में मददगार हो सकता है।
 
राव कहते हैं, "अभी तक की जाँच को ही लें। जिस तरह से आफ़ताब के बयान के आधार पर पुलिस ने पाया है कि 18 मई को श्रद्धा की गला घोंटकर हत्या करने के बाद उसने 300 लीटर का फ्रिज ख़रीदा, जबकि उस घर को देखते हुए इतना बड़ा फ्रिज ख़रीदने की वाजिब वजह नज़र नहीं आती। पुलिस ने इस बात का सबूत भी जुटा लिया है कि ये फ्रिज 19 मई को ख़रीदा गया।"
 
श्रद्धा का फ़ोन बरामद नहीं
दिल्ली पुलिस ने बताया है कि हत्या के बाद आफ़ताब ने श्रद्धा का फ़ोन फेंक दिया था, अब पुलिस उस फ़ोन की तलाश कर रही है। पुलिस ने बताया कि श्रद्धा की हत्या करने के बाद भी आफ़ताब जून तक उसका इंस्टाग्राम अकाउंट इस्तेमाल करता रहा ताकि लोगों को लगे कि श्रद्धा ज़िंदा है।
 
यही नहीं श्रद्धा के फोन से ही बैंकिंग ऐप के ज़रिए आफ़ताब ने 18 मई को 50 हज़ार रुपये ट्रांसफर किए। मुंबई पुलिस ने बताया कि ऑफ़ताब का कहना है कि इसके कुछ दिनों बाद उसने श्रद्धा का फ़ोन महाराष्ट्र में कहीं फेंक दिया था।
 
फॉरेंसिक सबूतों को जुटाना कितना मुश्किल?
पिछले तीन दिनों से पुलिस मेहरौली के आस-पास उन जंगलों की खाक छान रही है जहाँ कथित तौर पर आफ़ताब ने श्रद्धा के शरीर के टुकड़ों को फेंका था। पुलिस का कहना है कि अब तक 10 टुकड़े मिले हैं जो हड्डियों के रूप में हैं और श्रद्धा के शव के हो सकते हैं।
 
हालाँकि अधिकारी ये बखूबी जानते हैं कि फॉरेंसिक तहक़ीक़ात के बाद ही इस बात की पुष्टि हो सकेगी कि बरामद हड्डियां श्रद्धा की ही हैं। पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ फ़ॉरेंसिक एक्सपर्ट भी मानते हैं कि ये आसान काम कतई नहीं है और हर कदम पर विशेषज्ञता की दरकार होगी।
 
फॉरेंसिक विशेषज्ञ इंद्रजीत राय ने बीबीसी को बताया, "अब तक जो बातें सामने आ रही हैं कि उसके मुताबिक इस हत्याकांड का न तो कोई चश्मदीद गवाह सामने आया है और न ही शव (या शरीर के हिस्सों) को ठिकाने लगाते किसी ने देखा है। ऐसे में सारा मामला फ़ॉरेंसिंक सबूतों पर आकर टिक जाता है।"
 
श्रद्धा की हत्या मई महीने में हुई बताई जा रही है, ऐसे में छह महीने बीत जाने के बाद क्या फॉरेंसिक एक्सपर्ट के हाथ कुछ लगेगा?
 
दिल्ली से सटे नोएडा के कुख्यात निठारी हत्याकांड की मिसाल देते हुए इंद्रजीत ने बताया कि उस मामले में भी चश्मदीद गवाह नहीं थे और अदालत में फॉरेंसिक सबूतों से तय हुआ था कि हत्याएं हुईं और गुनाहगारों को सज़ा भी।
 
उन्होंने कहा, "खून क्योंकि न्यूक्लियस फॉर्म में होता है इसलिए इस मामले में भी अगर बहुत गंभीरता से फ़ॉरेंसिक जाँच हो तो नतीजे हासिल किए जा सकते हैं। इसके अलावा हड्डियां का क्षरण बहुत धीरे-धीरे होता है। अगर हथियार बरामद हो जाएगा तो इसके और हड्डियों के कट के पैटर्न से साबित हो सकता है कि इसी हथियार से हत्या हुई है।"
 
इंद्रजीत ने कहा, "रही बात डीएनए पुष्टि की तो श्रद्धा के पिता या भाई के खून के सैंपल से पुष्टि हो सकती है कि पुलिस को मिले शव के हिस्से (हड्डियां) श्रद्धा के ही हैं।"
 
श्रद्धा के अकाउंट से निकाले पैसे
श्रद्धा के पिता ने जब अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट महाराष्ट्र में दर्ज कराई तो आफ़ताब से पुलिस ने पूछताछ की। मुंबई पुलिस के सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर संपतराव पाटिल ने पत्रकारों को बताया कि प्रारंभिक पूछताछ और उसके बाद की जाँच में आफ़ताब लगातार अपने बयान बदल रहा था।
 
इसके बाद पुलिस ने आफ़ताब और श्रद्धा के मोबाइल नंबर्स की जाँच की थी। बैंक डिटेल्स भी खंगाले गए।
 
पाटिल ने बताया, "बैंक डिटेल्स के हिसाब से श्रद्धा के अकाउंट से 18 मई को 50 हजार रुपये निकाले गए हैं। उसके बाद पांच हजार, छह हजार रुपये दो तीन बार निकाले गए हैं।"
 
पुलिस ने कहा, "मोबाइल की कॉल डिटेल्स की जाँच से पता चला कि श्रद्धा हमेशा अपने बचपन के दोस्त लक्ष्मण नाडर के संपर्क में रहती थी, लेकिन पिछले मई महीने के आखिर से उनके बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी।" इसके बाद पुलिस को आफ़ताब पर शक हुआ।
 
शुरुआती पूछताछ में आफ़ताब ने बताया था कि जनवरी में श्रद्धा की मां की मौत हो जाने के बाद श्रद्धा कुछ परेशान रहती थी और उनके बीच अक्सर झगड़ा होने लगा था, लेकिन तब आफ़ताब ने कबूल नहीं किया था कि उसने 'श्रद्धा की हत्या' की है।
 
नार्को टेस्ट की मंज़ूरी
इस बीच, पुलिस को आफ़ताब का नार्को टेस्ट कराने की मंज़ूरी मिल गई है। पुलिस का कहना था कि चूंकि आफ़ताब बार-बार अपने बयान बदल रहा है इसलिए सही जाँच के लिए ज़रूरी है कि आफ़ताब का नार्को टेस्ट किया जाए।
 
दरअसल, नार्को टेस्ट एक तरह की झूठ पकड़ने वाली तकनीक है, जिसमें संबंधित व्यक्ति को कुछ दवाएँ या इंजेक्शन दिए जाते हैं। आमतौर पर इसके लिए सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन लगाया जाता है, जिससे वह व्यक्ति अर्धबेहोशी की हालत में चला जाता है।
 
ऐसा माना जाता है कि इस स्थिति में वह सवालों का सही-सही जवाब देता है क्योंकि अर्धबेहोशी की वजह से वह व्यक्ति दिमाग़ का ज़्यादा इस्तेमाल नहीं कर पाता और जान-बूझ कर झूठ गढ़ पाने की स्थिति में नहीं होता। यह तकनीक वैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित भले ही है लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है कि यह शत-प्रतिशत नहीं होते।
 
नार्को का क़ानूनी पहलू
जहाँ तक नार्को टेस्ट के क़ानूनी पहलू का सवाल है, तो यह विवेचना का हिस्सा तो हो सकता है, लेकिन अदालत में इसे सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता।
 
इस बारे में 22 मई, 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने एक फ़ैसले में स्पष्ट तौर पर कहा था कि "अभियुक्त या फिर संबंधित व्यक्ति की सहमति से ही उसका नार्को एनालिसिस टेस्ट हो सकता है। किसी की इच्छा के ख़िलाफ़ न तो नार्को टेस्ट, न ही ब्रेन मैपिंग और न ही पॉलीग्राफ़ टेस्ट किया जा सकता है।"
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी व्यक्ति को इस तरह की प्रक्रिया से गुज़ारना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता में दख़लअंदाज़ी होगी। सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना था कि पॉलीग्राफ़ या नार्को जाँच के दौरान जाँच एजेंसियों को मानवाधिकार आयोग के दिशा निर्देशों का सख़्ती से पालन करना होगा।
 
श्रद्धा हत्याकांड में अब तक हमें जो पता है:-
आफ़ताब की निशानदेही पर पुलिस श्रद्धा के शव के टुकड़ों की खोज कर रही है। दिल्ली पुलिस के मुताबिक़, आफ़ताब ने श्रद्धा की हत्या के बाद उसके शरीर से कई टुकड़े किए और जंगल में अलग-अलग जगह फेंक दिए ताकि वो पकड़ा न जाए।
 
आफ़ताब ने इस साल 18 मई को अपनी प्रेमिका श्रद्धा की गला दबाकर हत्या कर दी थी। श्रद्धा और आफ़ताब लिव-इन रिलेशनशिप में थे और मुंबई से दिल्ली आकर रह रहे थे।
 
दिल्ली पुलिस ने बताया है कि हत्या के बाद आफ़ताब ने श्रद्धा का फ़ोन फेंक दिया था, अब पुलिस उस फ़ोन की तलाश कर रही है।
 
पुलिस ने बताया कि श्रद्धा की हत्या करने के बाद भी आफ़ताब जून तक उसका इंस्टाग्राम अकाउंट इस्तेमाल करता रहा ताकि लोगों को लगे कि श्रद्धा ज़िंदा है।
 
हालांकि अब तक पुलिस को वो हथियार नहीं मिल सका है जिसका इस्तेमाल आफ़ताब ने श्रद्धा के शव के टुकड़े करने के लिए किया था।
 
आफ़ताब ने गूगल पर सर्च किया कि फर्श पर पड़े खून के धब्बों को कैसे साफ़ किया जाए। वह पुलिसकर्मियों से ज़्यादातर अंग्रेज़ी में बात कर रहा है। उसने श्रद्धा की हत्या के बाद उसके कपड़े कूड़े की गाड़ी में फेंक दिए थे।
 
श्रद्धा और आफ़ताब का कितना साथ

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