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मोटे हैं तो नौकरी में भेदभाव झेलने को तैयार रहें

हमें फॉलो करें मोटे हैं तो नौकरी में भेदभाव झेलने को तैयार रहें
, सोमवार, 19 दिसंबर 2016 (14:02 IST)
- रॉनल्ड आलसोप (बीबीसी कैपिटल)
मोटापा एक बीमारी है ये सब जानते हैं। लेकिन ये एक विकलांगता है, यानी किसी इंसान का मोटा होना उसकी शरीरिक कमी है, ये लोग नहीं मानते। पूरी दुनिया में मोटे लोगों को भेदभाव झेलना पड़ता है। पढ़ाई से लेकर नौकरी तक, सफर से लेकर शॉपिंग मॉल तक, हर जगह मोटे लोगों से भेदभाव होता है।
यूं तो दुनिया में लोगों के साथ उनके लिंग, उम्र, नस्ल, जाति, धर्म और विकलांगता के आधार पर अक्सर भेदभाव होता है, मगर मोटे लोग भी बहुत भेदभाव झेलते हैं। अमेरिका की नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान पढ़ाने वाली एनरिका रग्स ने इस विषय पर अध्ययन किया है। वो कहती हैं कि मोटापे के आधार पर भेदभाव को सामाजिक मान्यता मिली हुई है। ऐसा करने को लोग गलत नहीं मानते। अमेरिका में बड़ी तादाद में लोग मोटे हैं। उनके साथ अक्सर भेदभाव होता है।
 
मोटापे का पैमाना बॉडी मास इंडेक्स यानी BMI का 30 या इससे ज़्यादा होना माना जाता है। 40 से ज़्यादा BMI होने को लोग भयंकर मोटापा मानते हैं। औसतन आपका BIC 18.5 ms 24.9 होना चाहिए। बहुत सी कंपनियां और दूसरे रोज़गार देने वाले लोग मोटे लोगों को कम करके आंकते हैं। उन्हें लगता है कि मोटे लोग ज्यादा दौड़-भाग वाला काम नहीं कर सकते। मोटे लोग ऐसी नौकरियों में भी नहीं रखे जाते जहां ग्राहकों से ज़्यादा बातचीत की ज़रूरत होती है।
 
कंपनियों को लगता है कि मोटे लोग भद्दे होते हैं। उन्हें देखकर ग्राहक भाग जाएंगे। हालांकि ये ख़याल ग़लत है। मगर समाज में ऐसी सोच बड़े पैमाने पर देखी जाती है।
 
अमेरिका की प्रोफेसर एनरिका रग्स ने इस बारे में एक तजुर्बा किया था। उन्होंने कुछ चुस्त लोगों को पहले नौकरी तलाशने भेजा। फिर उन्हीं लोगों को प्रोस्थेटिक्स से मोटा बनाकर उन्हीं जगहों पर भेजा गया। रग्स ने पाया कि मोटे लोगों को नौकरी देने वालों ने कमतर करके आंका। उन्हें नौकरी पाने में काफी दिक्कतें आईं। मोटी औरतों को मोटे मर्दों के मुक़ाबले ज़्यादा भेदभाव झेलना पड़ता है। ब्रिटेन की एक्सटर यूनिवर्सिटी ने अपनी रिसर्च में पाया था कि मोटी औरतों को ज़िंदगी में कामयाबी के बेहद कम मौक़े मिलते हैं। उन्हें नौकरियां मिलती भी हैं तो कम तनख्वाह वाली।
 
वो औसत महिलाओं से भी कम तनख़्वाह की नौकरियां करने को मजबूर होती हैं। मोटी औरतों को कुछ खास नौकरियां ही ऑफर की जाती हैं। जैसे कि घर में खाना बनाने, बच्चों की रखवाली और मेहनत वाली दूसरी नौकरियां। उन्हें ऐसी जगह कम ही नौकरी मिलती है, जहां लोगों से बातचीत के ज्यादा मौक़े होते हैं।
 
अमेरिका की नैशविल यूनिवर्सिटी जेनिफर बेनेट शिनाल ने इस बारे में रिसर्च से पाया कि मोटी औरतों को तनख्वाह  बेहद कम मिलती है। शिनाल कहती हैं कि समाज में औरतों की खूबसूरती, उनकी दिलकशी पर बहुत ज़ोर दिया जाता है। ऐसे में मोटी औरतों को भद्दा मानकर उन्हें ग्राहकों से ज्यादा मेल-मिलाप वाली नौकरियों से दूर ही रखा जाता है।

अमेरिका के टैम्पा शहर में एक संस्था है, ओबेसिटी एक्शन कोएलिशन। ये संस्था तमाम कंपनियों को मोटापे को बीमारी न मानने, उन्हें नए नज़रिये से देखने की सलाह देती है। ये संस्था मोटापे को लेकर तंज को भेदभाव मानने पर जोर देती है और कंपनियों को सलाह देती है कि वो मोटे लोगों से हो रही ऐसी बदतमीजी को रोकने के नियम बनाएं।
 
अमेरिका के डेविड ब्रिटमैन ने मोटापे को लेकर काफ़ी भेदभाव झेला है। एक बार वो ऐसी बैठक में गए जहां नस्ल, जाति, धर्म के आधार पर भेदभाव पर चर्चा हो रही थी। जब उन्होंने बताया कि उन्हें मोटापे की वजह से भेदभाव झेलना पड़ा, तो लोगों ने इसे मानने से ही इन्कार कर दिया।
 
लेकिन डेविड आसानी से हार मानने वाले नहीं थे। उन्होंने खुद ही अपने मोटापे पर तंज करने वालों को कड़ा जवाब देना शुरू कर दिया। अब लोग उनके मिज़ाज को जान गए हैं और उनके मोटापे का मजाक नहीं बनाते। मगर डेविड की मिसाल से साफ़ है कि मोटे लोग किस तरह भेदभाव के शिकार होते हैं।
 
दिक्कत ये है कि मोटापे के आधार पर जो भेदभाव होता है उसे रोकने के नियम और क़ानून की भारी कमी है। अमरीका की सरकारी संस्था इक्वल एम्प्लॉयमेंट अपॉर्च्यूनिटी कमीशन (EEOC) ने इस बारे में कई मुक़दमे दायर किए। मगर आयोग को अदालत से निराशा ही मिली।
 
कुछ गिने चुने ऐसे मामले हुए हैं, जिनमें अदालत ने मोटापे के आधार पर भेदभाव को ग़लत बताया। यानी ऐसे क़ानून बनाए जाने की ज़रूरत है, जो मोटापे के आधार पर होने वाले भेदभाव को रोकने में कारगर हों। इसी तरह यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस कहता है कि मोटे लोगों की सुरक्षा तभी हो सकती है, जब ये कहा जाए कि मोटापे की वजह से वो कुछ ख़ास काम नहीं कर सकते। डेनमार्क के एक मामले में ऐसा ही हुआ।
 
डेनमार्क के एक मोटे शख्स को स्थानीय नगर निगम ने नौकरी से निकाल दिया, क्योंकि वो मोटा था।  उस आदमी ने जब इसे कोर्ट में चुनौती दी, तो यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने ये माना ही नहीं कि वो आदमी मोटापे की वजह से कुछ काम कर पाने में अक्षम है। अब मामला हाई कोर्ट में है।
 
अमेरिका की जेनिफर शिनाल मानती हैं कि मोटापे को लेकर सख्‍त कानून की बहुत ज़रूरत है। तभी मोटापे के आधार पर हो रहे भेदभाव को रोका जा सकता है।
 
फिलहाल तो मनोवैज्ञानिक मोटे लोगों को ये सलाह देते हैं कि वो हीन भावना से न घिरें। जब भी कोई उनके मोटापे पर तंज करे, या मोटापे की वजह से उनकी काबिलियत पर सवाल उठाए तो वो इसका सटीक जवाब दें। इससे काफी हद तक मोटापे की हीन भावना पर काबू पाया जा सकता है।

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