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नाथूराम गोडसे पर साध्वी प्रज्ञा के बयान से मजबूर हुए नरेंद्र मोदी: ब्लॉग

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, शनिवार, 18 मई 2019 (10:03 IST)
राजेश जोशी, रेडियो संपादक, बीबीसी हिंदी
क्या आपने कभी नरेंद्र मोदी और अमित शाह को लाचार होते देखा है? वो जो करते हैं खम ठोक के करते हैं और उस पर कभी अफसोस नहीं जताते और कभी कभार ही सफ़ाई देने की जरूरत महसूस करते हैं।
 
गुजरात में हुए 2002 के दंगे हों, सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर का मामला हो, जज लोया की मौत और अमित शाह के खिलाफ लगे तमाम तरह के आरोप हों, नोटबंदी, लिंचिंग हो या फिर बम विस्फोट करके निर्दोष लोगों की जान लेने के आरोपों में घिरी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से लोकसभा चुनाव में उतारने का फैसला - आपने कभी मोदी और शाह को बैकफुट पर नहीं देखा होगा।
 
नाथूराम गोडसे शायद ऐसा अकेला ऐतिहासिक चरित्र है जिसने मोदी और अमित शाह जैसे उग्र और आक्रामक राजनीति करने वाले नेताओं को भी बैकफुट पर धकेल दिया है।
 
मोदी-शाह ने कहा था कि प्रज्ञा ठाकुर को चुनाव में उतारने का फैसला उन लोगों को सांकेतिक जवाब देने के लिए किया गया जिन्होंने भगवा आतंक की बात कहकर हिंदू संस्कृति को बदनाम किया था। उन पर इन आलोचनाओं का कोई असर नहीं पड़ा कि प्रज्ञा ठाकुर अब भी मालेगाँव विस्फोट मामले में अभियुक्त हैं और ज़मानत पर बाहर हैं।
 
पर अब उसी प्रज्ञा ठाकुर के कारण नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बार-बार शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है। पहले उन्होंने कहा कि मुंबई हमले में मारे गए पुलिस अफसर हेमंत करकरे को मैंने शाप दिया था और गुरुवार को उन्होंने गांधी के हत्यारे के बारे में कहा - गोडसे देशभक्त थे, देशभक्त हैं और देशभक्त रहेंगे।
 
माफी मंगवाना मजबूरी
जो पार्टी देशभक्ति पर अपना कॉपीराइट जताती रही हो, जिसके नेता जिस तिस को देशद्रोही होने का सर्टिफिकेट बांटकर पाकिस्तान जाकर बसने की सलाह देते रहे हों, उसकी एक हाई प्रोफाइल उम्मीदवार महात्मा गांधी के हत्यारे को देशभक्त बताए तो सवाल उठेंगे ही कि क्या भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार का राष्ट्रवाद नाथूराम गोडसे का राष्ट्रवाद एक जैसा है? क्या गोडसे की देशभक्ति और नरेंद्र मोदी की देशभक्ति एक जैसी है?
 
प्रज्ञा के बयान से इतना साफ था कि उसमें अगर-मगर की गुंजाइश नहीं बची थी। सवालों से बचने के लिए मोदी को टेलीविज़न चैनल के इंटरव्यू में कहना ही पड़ा कि गांधी के बारे में दिए गए बयान के लिए उन्होंने माफी मांग ली, ये अलग बात है पर मैं उन्हें (प्रज्ञा ठाकुर को) अपने मन से कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।
 
उन्होंने इसी टीवी इंटरव्यू में कहा, 'ये बहुत खराब है। हर प्रकार से घृणा के लायक है। आलोचना के लायक है। किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की भाषा और सोच स्वीकार नहीं की जा सकती।' पर भाषा के मामले में खुद नरेंद्र मोदी का रिकॉर्ड बहुत उज्ज्वल नहीं रहा है। वो चुनाव के दौरान चल रहे विमर्श की भाषा का स्तर गिराने के गंभीर आरोपों से घिरे हैं।
 
आख़िर जब वो अपने भाषणों में 'कांग्रेस की विधवा' का ज़िक्र करते हैं तो वो किस ओर इशारा करते हैं? डिस्लेक्सिया वाले बच्चों पर पूछे गए सवाल पर जब वो '40-50 साल के बच्चों के इलाज' की बात कहकर ठिठोली करते हैं तो उनका इशारा किस ओर होता है?
 
गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए जब वो 'हम दो हमारे पांच' या 'सड़कों पर पंचर जोड़ने वालों' पर तंज कसते थे तो उनके निशाने पर कौन पंचर जोड़ने वाला गरीब होता था? जब वो अपनी चुनावी सभाओं में मियां पर जोर देते हुए पाकिस्तान के मुशर्रफ को ललकारते थे या तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह पर हमला करते हुए बार-बार जोर देकर उनका पूरा ईसाई नाम - जेम्स माइकल लिंगदोह- लेते थे तो क्या वो बच्चों की जनरल नॉलेज बढ़ाने के लिए ऐसा करते थे?
 
इसलिए प्रज्ञा ठाकुर के बयान को 'घृणा के योग्य' बताना और उन्हें 'मन से माफ़' न करने का ऐलान नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व और उनकी ब्रांड की राजनीति के खिलाफ जाता है।
 
ये बयान नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व और उनकी ब्रांड की राजनीति के खिलाफ जाता है। बिना नाम लिए नरेंद्र मोदी ने कुछ बार बीजेपी के सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे नेताओं की उनके बयानों के लिए नरम आलोचना जरूर की है, पर उन्होंने कभी बीजेपी के उग्र बयानबाजों को माफी मांगने पर मजबूर नहीं किया। या तो वो विवादास्पद बयानों पर मौन साध लेते हैं या सामान्यीकरण के ज़रिए सांकेतिक भाषा में खुद को ऐसे बयानों से असहमत दिखाने की कोशिश करते हैं। मगर उग्र हिंदुत्व की आइकन बन चुकी प्रज्ञा ठाकुर से माफी मंगवाना उनकी मजबूरी बन गई थी।
 
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह से सैम पित्रोदा को सार्वजनिक तौर पर आड़े हाथों लिया और 1984 के सिख विरोधी दंगों के बारे में अपने बयान पर माफी मांगने को कहा, उसके बाद प्रज्ञा ठाकुर के बयान पर लीपापोती करने की गुंजाइश नहीं बची थी।
 
'भगवा टेरर'
लोकसभा चुनाव के ऐन बीच में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहकर प्रज्ञा ठाकुर ने मोदी के किए कराए पर लगभग पानी ही फेर डाला था। मोदी और शाह कभी स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन प्रज्ञा ठाकुर के ऐसे बयान आने के बाद उन्हें चुनाव में उतारने के अपने फ़ैसले पर बीजेपी के इन शिखर पुरुषों को पछतावा जरूर हुआ होगा।
 
ये पूरा विवाद ऐसे वक्त में हुआ है जब आखिरी चरण का मतदान बाकी है और बीजेपी ये नहीं जताना चाहेगी कि प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाने का फैसला गलत था।  इसलिए शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हुई प्रेस कॉनफ्रेंस में पत्रकारों ने जब ये सवाल उठाया तो अमित शाह ने प्रज्ञा ठाकुर को लोकसभा चुनाव में उतारने के फैसले को 'भगवा टेरर' का आरोप लगाने वालों के खिलाफ 'सत्याग्रह' कहा। जिसके बल पर मोदी और शाह ये 'सत्याग्रह' कर रहे हैं वो निहत्थे गांधी की हत्या करने वाले को देशभक्त मानती है।
 
मगर प्रज्ञा ठाकुर ही नहीं बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े और मध्य प्रदेश के मीडिया संयोजक नलिन कतील ने भी गोडसे के बारे में ऐसे विवादास्पद बयान दिए जिनको अमित शाह नजरअंदाज नहीं कर सके।
 
उन्हें मालूम है कि गांधी के हत्यारे का महिमामंडन करने वाला इस देश की जनता की निगाह में कितनी तेजी से नीचे गिर सकता है। इसलिए उन्होंने तुरंत तीनों नेताओं से जवाब तलब किया और दस दिन के भीतर सफाई देने को कहा।
 
बीजेपी नेता अनंत कुमार हेगड़े गाँधी के बारे में नज़रिया बदलने की वकालत कर रहे थे और कह रहे थे कि इस बहस पर गोडसे खुश होंगे। पर बाद में उन्होंने अपने ट्वीट डिलीट कर दिए और कहा कि उनके ट्विटर एकाउंट को हैक कर लिया गया था. प्रज्ञा ठाकुर भी माफी मांग चुकी हैं।
 
गोडसे पर असमंजस
गोडसे का गुणगान करके बाद में माफी मांगने का सिलसिला नया नहीं है। बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज ने मोदी सरकार बनने के कुछ ही महीने बाद संसद भवन के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि अगर गाँधी देशभक्त थे तो गोडसे भी देशभक्त थे. इस बयान पर बवाल होने के बाद साक्षी महाराज ने माफी मांग ली।
 
लेकिन फिर कुछ समय बाद हरियाणा की बीजेपी सरकार में मंत्री अनिल विज ने नरेंद्र मोदी को गांधी से बड़ा ब्रांड बताया और कहा कि अभी गांधी को खादी ग्रामोद्योग के कैलेंडर से हटाया गया है, धीरे धीरे करेंसी नोट से भी हटा दिया जाएगा।
 
बाद में उन्होंने भी कह दिया कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। अनिल विज को संघ ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से बीजेपी में भेजा था और उनकी पूरी राजनीतिक दीक्षा संघ की शाखाओं में हुई है।
 
बीजेपी के ये नेता ही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिवंगत सरसंघचालक प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उर्फ़ रज्जू भैया भी मानते थे कि गोडसे अखंड भारत के विचार से प्रभावित थे। उनका मंतव्य गलत नहीं था, उन्होंने ग़लत तरीका अपनाया।
 
बीजेपी सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके आनुषांगिक संगठन महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को लेकर हमेशा असमंजस की स्थिति में रहते हैं। वो न तो खुलकर गोडसे को पूज पाते हैं और न ही कोस पाते हैं।
 
मोदी और शाह के बयानों पर भी गौर करें तो उनमें महात्मा गांधी की प्रशंसा और भक्ति भरे शब्द तो मिल जाएंगे पर नाथूराम गोडसे और गांधी की हत्या की प्रेरणा देने वाले विचार की आलोचना के लिए कड़े शब्द शायद ही मिलें।
 
गोडसे प्रेम
संघ, बीजेपी और नरेंद्र मोदी के बहुत से समर्थक सोशल मीडिया में खुलकर गोडसे के पक्ष में खड़े होते हैं। इनमें से कई लोगों को खुद प्रधानमंत्री मोदी ट्विटर पर फॉलो करते हैं। गोडसे और उनकी विचारधारा की खुलकर आलोचना करके मोदी और शाह अपने इस समर्थकों को खुद से दूर नहीं करना चाहते। इसीलिए उनकी बातों में गांधी भक्ति तो झलकती है पर गोडसे विचार के ख़िलाफ़ साफ स्टैंड नहीं झलकता।
 
संघ परिवार का एक पक्ष गोडसे के सामने नतमस्तक होना चाहता है लेकिन गांधी का विराट व्यक्तित्व उसे ऐसा करने नहीं देता। इसके बावजूद कई बार बीजेपी के नेता गोडसे के प्रति अपने प्रेम को दबा नहीं पाते और उनके कारण पूरी पार्टी को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। आखिर फांसी पर चढ़ाए जाने के सत्तर बरस बाद भी गोडसे को लेकर बीजेपी इतनी लाचार और मजबूर क्यों नज़र आती है?

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