मिलिंद खांडेकर, डिजिटल एडिटर, बीबीसी इंडिया
महाराष्ट्र में नई सरकार बनने जा रही है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री होंगे। महाराष्ट्र के राज्यपाल ने उन्हें नई सरकार बनाने का न्योता दिया था और शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की गठबंधन सरकार का शपथ ग्रहण समारोह आज मुंबई के शिवाजी पार्क में होने जा रहा है।
ऐसे में सवाल पूछा जा रहा है कि तीन पहियों की ये सरकार कितने दिन तक चल पाएगी? क्योंकि तीनों पार्टियां अलग-अलग विचारों से आती हैं। तीन बातों पर निर्भर करेगा कि ये सरकार कितने दिनों तक चलेगी।
पहली बात, पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि ये तीनों पार्टियां एक साथ इसलिए आई, क्योंकि ये बीजेपी को सत्ता से बाहर रखना चाहती हैं।
ये तीनों पार्टियां दावा कर रही हैं कि उन्होंने एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया है जो महाराष्ट्र के हित में है, लेकिन देवेंद्र फडणवीस के मुताबिक़ ये कॉमन मैक्सिमम प्रोग्राम है, जिसका मक़सद भाजपा को सत्ता से बाहर रखना है।
राजनीति के दो अलग-अलग ध्रुव, जिनमें एक हिंदुत्व का समर्थन करने वाली विचारधारा है और दूसरी विचारधारा धर्मनिरपेक्षता की है। ये दोनों ध्रुव इसलिए मिले हैं क्योंकि ये तीसरे प्लेयर, जो देश की एक बड़ी पार्टी है भाजपा, उसे बाहर रखना चाहते हैं। इसलिए ये सरकार बनी है।
शिवसेना का मुखपत्र 'सामना' हर सुबह लिखता है कि ये अखबार 'हिंदुत्व का ज़ोरदार समर्थन' करता है। ऐसी पार्टी के साथ सेक्युलर कांग्रेस और एनसीपी कैसे सरकार चलाएँगी, ये चुनौती है।
ये पार्टियां कह रही हैं कि वो महाराष्ट्र के हित में एक साथ आए हैं, लोकतंत्र को बचाने के लिए और किसानों को मुआवज़ा देने के लिए साथ में आए हैं।
लेकिन असल बात ये है कि देश में इस वक्त जो राजनीतिक प्रवाह है, वो राष्ट्रवाद का है और बार-बार इस तरह के मुद्दे सामने आते रहेंगे, जिसमें इन पार्टियों को अपनी-अपनी भूमिका लेनी होगी और ये इस सरकार की अस्थिरता का एक कारण बन सकता है।
दूसरा, ये सरकार कब तक चलेगी, इसका जवाब शायद एक ही व्यक्ति के पास है और वो हैं शरद पवार। इस सरकार का रिमोट कंट्रोल शरद पवार के पास होगा। वो ही इन तीनों पार्टियों को एक साथ लेकर आए हैं।
शरद पवार ने ही कांग्रेस को मनाया, सोनिया गांधी को मनाया कि वो शिवसेना के साथ सरकार बनाएं और शिवसेना को भी उन्होंने एक तरह से उकसाया कि अगर इस वक्त आपने सरकार नहीं बनाई तो आपका मुख्यमंत्री कभी नहीं बन पाएगा।
शिवसेना और भाजपा चुनाव में एक साथ लड़े थे, लेकिन चुनाव के बाद दोनों के बीच मतभेद हो गया। क्योंकि शिवसेना चाहती थी कि ढाई साल के लिए उनका मुख्यमंत्री बने, लेकिन भाजपा इसके लिए मानी नहीं।
तो शरद पवार एक तरह से शिव सेना को उकसाकर उस गठबंधन से बाहर लेकर आए और कांग्रेस को भी दूसरी तरफ से मनाया और बहुमत जुटाया। इसलिए ये सरकार तब तक चलेगी, जब तक शरद पवार चाहेंगे। हालांकि शरद पवार कह रहे हैं कि ये सरकार पांच साल चलेगी।
लेकिन तीसरा बड़ा फ़ैक्टर भाजपा का होगा, कि वो कब तक चाहती है कि ये सरकार चले। भाजपा यहां दो चीज़ें कर सकती है। एक तो वो ऑपरेशन लोटस चला सकती है। ऑपरेशन लोटस का मतलब वो कुछ सदस्यों से इस्तीफा दिलवा दे।
फिलहाल इस गठबंधन के पास 166 का आंकड़ा है। मान लीजिए कि इनके 20 या 25 विधायकों को भाजपा एक-एक करके इस्तीफा दिलवा दे और बहुमत की सरकार को अल्पमत में ले आए। ये एक तरीका हो सकता है, लेकिन भाजपा इतनी मात खाने के बाद दोबारा ऐसा करेगी, ये फिलहाल कहना मुश्किल है।
लेकिन लॉन्ग टर्म में भाजपा का ये प्रोजेक्ट ज़रूर होगा। उन्होंने जो इतना अपमान सहा है कि सरकार बनाने के बाद साढ़े तीन दिन में उनकी सरकार गिर गई, वो चाहेंगे कि दोबारा वो सत्ता पर काबिज़ हों।
इस सरकार पर एक और दबाव ये हो सकता है कि एनसीपी के छगन भुजबल या प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं। अब आगे ये भी हो सकता है कि केंद्रीय एजेंसियां कुछ नए मुक़दमे खोल दे।
भ्रष्टाचार के मामले पर भी ये सरकार गिर सकती है। तो कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि ये तीन पहियों की सरकार है। एक जुमला बोला गया कि तीन पहियों की रिक्शा तो चलती है, लेकिन तीन पहियों की सरकार चलाना मुश्किल होगा। ये तीन कारण तय करेंगे कि महाराष्ट्र की ये नई सरकार कितने दिन तक चलेगी या कितने दिन तक टिकेगी।