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लोकसभा चुनाव 2019: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव न होने पर महबूबा के बयान का मतलब

हमें फॉलो करें लोकसभा चुनाव 2019: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव न होने पर महबूबा के बयान का मतलब
, सोमवार, 11 मार्च 2019 (14:10 IST)
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर में सिर्फ लोकसभा चुनाव ही कराया जाना केंद्र सरकार की भयावह साजिश की पुष्टि करती है। उन्होंने कहा है कि लोगों को उनकी सरकार को न चुनने देना लोकतंत्र की भावना के ख़िलाफ़ है। यही नहीं, ये एक तरीका है जिससे वे अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समय हासिल कर सकें।
 
 
यही नहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि 1996 के बाद से ये पहला मौका है जब जम्मू-कश्मीर में चुनाव समय से नहीं हो रहे हैं, अगली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करते समय ये याद रखिएगा। लेकिन सवाल ये है कि मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला ने ये बयान क्यों दिया। बीबीसी हिंदी ने इसके मायने समझने के लिए जम्मू-कश्मीर की राजनीति को करीब से समझने वालीं वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन से बात की।
 
 
अनुराधा भसीन कहती हैं, "चुनाव का मूल उद्देश्य है मतदाताओं की ज़रूरतों को पूरा करना। लेकिन इस चुनाव कार्यक्रम को सत्ताधारी पार्टी की सुविधा के हिसाब से तैयार किया गया है। कश्मीर में पंचायत चुनाव कराए गए हैं, अब लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव नहीं हो रहे है। जबकि विधानसभा चुनाव किसी भी राज्य की जनता के लिए काफ़ी अहम होते हैं। राज्य सरकार उस राज्य की जनता के स्थानीय हितों से लेकर तमाम दूसरे मुद्दों को लेकर उसके संपर्क में रहती है।"
 
 
"ऐसे में लोकसभा चुनाव को ज़रूरी समझा गया लेकिन विधानसभा चुनाव को गै़रज़रूरी समझा गया जो कि अपने आप में एक पाखंड है। अब वर्तमान लोकसभा चुनाव में इतना प्रतिस्पर्धी माहौल है। राष्ट्रीय पार्टियों के लिए एक-एक सीट अहमियत रखती हैं। चुनाव की बुनियाद मतदाता की ज़रूरत होनी चाहिए। बल्कि ये राजनीतिक पार्टियों की सुविधा के आधार पर नहीं होना चाहिए।"
 
 
13 फरवरी 2019
मुलायम सिंह यादव के मोदी प्रेम का क्या है मतलब?
समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव का लोकसभा में दिया बयान चर्चा में है, जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी के फिर से पीएम बनने की कामना की। मुलायम सिंह यादव के इस बयान पर लोगों को आश्चर्य ज़रूर हो सकता है, लेकिन इसके कोई राजनीतिक मायने है- ये नहीं कहा जा सकता।
 
 
अपनी पार्टी में मुलायम सिंह यादव हाशिए पर चल रहे हैं। यूपी में मायावती के साथ गठबंधन का फ़ैसला अखिलेश यादव का था। यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जिस तरह समाजवादी पार्टी में घमासान हुआ और फिर अखिलेश यादव पार्टी के शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे, उसके बाद मुलायम सिंह यादव धीरे-धीरे किनारे पड़ गए।
 
 
लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी या गठबंधन के स्तर पर मुलायम सिंह यादव का ये बयान कोई असर डालेगा, ऐसा लगता नहीं है। वैसे मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल सिंह यादव अलग पार्टी बना चुके हैं। मुलायम सिंह यादव भी कई बार शिवपाल सिंह यादव के पक्ष में बयान दे चुके हैं। तो कई बार पुत्र प्रेम भी दिखा चुके हैं। मुलायम सिंह की पार्टी में अपनी स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है उनका बयान कुछ दिन चर्चा में ज़रूर रह सकता है, लेकिन लंबे दौर पर इसका असर कम ही पड़ेगा।
 
 
12 फरवरी 2019
प्रियंका के रोड शो के बाद दबाव में हैं अखिलेश?
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि उनके और मायावती के बीच महागठबंधन में कांग्रेस भी शामिल है। मंगलवार को लखनऊ में अखिलेश ने कहा कि सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल है और कांग्रेस को दो सीटें दी गईं हैं। अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती ने जब जनवरी में संयुक्त प्रेसवार्ता में गठबंधन की घोषणा की थी तो उसी समय कहा था कि राय बरेली और अमेठी में गठबंधन अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी।
 
 
लेकिन उस समय उन दोनों नेताओं ने साफ़ कहा था कि कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं है। कांग्रेस भी लगातार यही कह रही है कि सपा-बसपा ने उन्हें बताए बग़ैर गठबंधन की घोषणा कर दी और उन्हें उसमें शामिल नहीं किया। लेकिन सोमवार को कांग्रेस की नवनिर्वाचित महासचिव प्रियंका गांधी के लखनऊ में सफल रोड शो के बाद अखिलेश के सुर बदले हुए लग रहे हैं। उनके बयान और बॉडी लैंगवेज से साफ़ है कि वो किसी तरह के दबाव में हैं।
 
 
यूपी के क़रीब 20 फ़ीसदी मुसलमान मतदाता सपा की सबसे बड़ी ताक़त रहे हैं। अखिलेश को डर है कि अगर मुसलमानों का थोड़ा सा भी वोट प्रियंका के कारण उनसे खिसक कर कांग्रेस में चला गया तो कांग्रेस का भला हो या न हो सपा का बहुत बड़ा नुक़सान हो सकता है। सपा को वैसे तो यूपी के सभी वर्गों का थोड़ा बहुत वोट मिलता है, लेकिन ख़ासतौर पर ये यूपी के यादवों और मुसलमान की पार्टी कहलाती है। लेकिन यादव सिर्फ़ आठ फ़ीसदी के क़रीब हैं और यादव अकेले पार्टी को जीत नहीं दिला सकते हैं।
 
 
11 फ़रवरी, 2019
रोड शो के बाद क्या यूपी पर बदल गए राहुल के सुर
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को महासचिव नियुक्त की गई प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मेगा रोड शो किया।
 
 
रोड शो के दौरान लोग उम्मीद कर रहे थे कि प्रियंका गांधी भाषण देकर कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करेंगी, लेकिन उन्होंने खुद को रोड शो तक ही सीमित रखा। राहुल गांधी ने इस दौरान कहा कि उन्होंने प्रियंका और ज्योतिरादित्य को उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन की ज़िम्मेदारी तो दी ही है, लेकिन उनका लक्ष्य प्रदेश के अगले विधानसभा चुनावों में पार्टी की सरकार बनवाना है।
 
 
यूपी में सपा-बसपा गठबंधन पर राहुल साफ शब्दों में कुछ भी बोलने से बचे। उन्होंने कहा कि यहां गठबंधन भी लड़ रहा है। मैं मायावती और अखिलेश का आदर करता हूं। लेकिन प्रदेश में कांग्रेस पूरे दम से लड़ेगी, यूपी बदलने के लिए लड़ेगी। उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी फ्रंट फुट पर लड़ेगी।
 
 
राहुल गांधी के भाषण में कहीं भी ये नहीं झलका कि वो सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन में शामिल होने के उतावले हैं। हालाँकि कुछ समय पहले तक के उनके बयानों से राजनीतिक विश्लेषक ये निष्कर्ष निकाल रहे थे कि राहुल की रणनीति 'महागठबंधन' पर दबाव बनाकर अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की है।
 
 
अभी सपा-बसपा महागठबंधन ने अमेठी और रायबरेली सीट खाली छोड़ी है। इन दो सीटों का प्रतिनिधित्व राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी कर रही हैं। रोड शो खत्म होने के बाद कांग्रेस मुख्यालय में राहुल गांधी ने कहा कि यूपी में कांग्रेस कमजोर नहीं रह सकती। आपने सबको ट्राई कर लिया, सब फेल हो गए। अब कांग्रेस की सरकार बनेगी।
 
 
"राहुल ने कहा कि जो हेलीकॉप्टर से उड़ते हैं, उनसे काम नहीं चलेगा। जो जमीन की लड़ाई लड़ रहे उनको मौका दीजिये। यूपी में कांग्रेस को खड़ा करने का काम हमने प्रियंका और ज्योति जी को दिया है। मोदी ने रोज़गार नहीं दिया। उत्तर प्रदेश हर एक नागरिक ने देख लिया। चौकीदार ने नौजवानों को रोजगार देने का वादा पूरा नहीं किया। मोदी जी ने सिर्फ अनिल अंबानी को रोजगार दिया।"
 
 
8 फरवरी,2019
ठाकरे कर रहे बीजेपी पर हमला
शिव सेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे गठबंधन में साझीदार होने के बावजूद बीजेपी पर लगातार हमले बोल रहे हैं। शिव सेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में लिखा है कि अयोध्या में राम मंदिर 2019 के चुनाव से पहले बन जाना चाहिए।
 
सामना ने लिखा है, "अयोध्या के राम मंदिर के बारे में मोदी सरकार टालमटोल कर रही है। ऐसा लग रहा है कि राम मंदिर के मामले को हिंदुत्ववादी संगठनों ने ही लटका कर रखा हुआ है।''
 
शिव सेना ने विश्व हिंदू परिषद की दो दिन पहले की घोषणा पर तंज़ कसा है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी संस्था विश्व हिंदू परिषद ने घोषणा की है कि आम चुनाव तक मंदिर के लिए आंदोलन को स्थगित रखा जाएगा।
 
आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत ने भी कहा था कि "संघ चुनाव के बाद मंदिर निर्माण का काम शुरू कर देगा, चाहे सरकार किसी की भी हो"। शिव सेना पहले भी राम मंदिर के मुद्दे पर बीजेपी को घेरती रही है और उसकी आलोचना करती रही है।
 
क्या है इसका मतलब?
शिव सेना और बीजेपी के बीच लंबे समय से तकरार जारी है लेकिन शिव सेना एनडीए गठबंधन में बनी हुई है। दोनों पक्षों के बीच 2019 के चुनाव को लेकर सीटों के बँटवारे पर बातचीत भी चल रही है और शिव सेना ने सार्वजनिक तौर पर आक्रामक रवैया अपना रखा है। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं और इसी साल वहां विधानसभा चुनाव भी होने हैं।
 
जानकार मानते हैं कि शिव सेना अधिक से अधिक सीटें पाना चाहती है और हिंदुत्व के एजेंडे पर बीजेपी से ज़्यादा मज़बूत दिखना चाहती है।
 
प्रशांत किशोर की शिव सेना से मुलाक़ात
चुनावी रणनीतिकार और जनता दल (यूनाइटेड) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने मुंबई में शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे से मुलाक़ात की है। इस मुलाक़ात के बाद अपने ट्वीट में प्रशांत किशोर ने कहा है- एनडीए के हिस्सा के तौर पर हम आपके साथ मिलकर महाराष्ट्र में आगामी लोकसभा चुनाव में और उसके बाद भी जीत सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करेंगे।
 
महाराष्ट्र में बीजेपी और शिव सेना के तल्ख़ रिश्तों के बीच प्रशांत किशोर का शिव सेना नेतृत्व से मिलना चर्चा का विषय बन सकता है। राजनीतिक हलकों में ऐसी चर्चा है कि एनडीए के घटक दल अपने को प्रभावकारी दबाव समूह के रूप में आगे करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
 
जानकारों की मानें तो जनता दल (यू) के प्रशांत किशोर की ये मुलाक़ात उसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
 
चंद्रबाबू नायडू के लिए NDA का दरवाज़ा बंद: अमित शाह
बीजेपी प्रमुख अमित शाह ने कहा है कि 2019 के चुनावी नतीजे आने के बाद चंद्रबाबू नायडू के लिए एनडीए का दरवाज़ा बंद हो जाएगा। आंध्र प्रदेश के विज़िअनागरम में बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए शाह ने ये बात कही है। शाह ने चंद्रबाबू नायडू को यूटर्न सीएम करार दिया। बीजेपी प्रमुख आख़िर ऐसा क्यों कह रहे हैं? अगर 2019 में बीजेपी को सरकार बनाने में सांसदों की कमी होगी तो क्या वो चंद्रबाबू नायडू से समर्थन लेने में परहेज करेगी? शायद ही ऐसा हो।
 
अमित शाह ऐसा इसलिए कह रहे हैं ताकि आंध्र प्रदेश के लोगों को लगे कि बीजेपी अपनी जड़ें जमाने के लिए किसी के कंधे का सहारा नहीं लेना चाहती है और अपने दम पर कुछ करने के लिए गंभीर है।
 
दो फ़रवरी, 2019
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी प्रमुख अमित शाह ने शनिवार को मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को अयोध्या में राम मंदिर पर अपना रुख़ स्पष्ट करने की चुनौती दी। इसके साथ ही शाह ने ये भी कहा कि बीजेपी 2014 के आम चुनाव से ज़्यादा सीटों पर जीत दर्ज करेगी।
 
शाह ने उत्तर प्रदेश में अमरोहा ज़िले के गजरौला में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, ''हम अयोध्या में जल्द भव्य राम मंदिर बनाना चाहते हैं। हम अयोध्या में राम मंदिर बनाएंगे। जब यह मामला कोर्ट में गया तो कांग्रेस ने इसे लटकाने की कोशिश की। मैं चाहता हूं कि विपक्षी पार्टियां और राहुल गांधी आम चुनाव से पहले बताएं कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए या नहीं।''
 
राम मंदिर का मुद्दा 90 के दशक से ही भारत की चुनावी राजनीति के केंद्र में रहा है। राम मंदिर को भारतीय राजनीति में धार्मिक ध्रुवीकरण करने की क्षमता रखने वाले मुद्दे के तौर पर देखा जाता है।
 
बीजेपी अक्सर कहती थी कि केंद्र और उत्तर प्रदेश में उसकी सरकार होने पर राम मंदिर का निर्माण आसान हो जाएगा। बीजेपी दोनों जगह सत्ता में है और राम मंदिर पर सवाल पूछे जा रहे हैं। अब बीजेपी ने यही सवाल राहुल गांधी पर दाग दिया है। ज़ाहिर है बीजेपी इस मामले में ख़ुद को फंसते हुए नहीं देखना चाहती है। ऐसे में बीजेपी को लगता है कि ये सवाल विपक्ष के पाले में डालना ज़्यादा ठीक होगा।
 
एक फ़रवरी 2019
शुक्रवार को मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले अपना आख़िरी बजट पेश किया। इसमें 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि' योजना के बारे में ऐलान किया गया जिसके तहत दो हेक्टर तक भूमि वाले किसानों को उनके खाते में सालाना छह हज़ार रूपये सरकार देगी।
 
एक तरफ़ जहां कांग्रेस के कुछ नेता और कई जानकार इसे किसानों को मनाने की कोशिश क़रार दे रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कहा है कि बजट में सरकार ने किसानों का अपमान किया है।
 
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे चुनावी मेनिफेस्टो क़रार दिया है और कहा कि भाजपा वोटरों को रिझाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि सरकार ने बजट में किसानों के लिए जो सीधे धन की बात की है वो कम है।
 
शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा, "अगर सरकार 15 लोगों का साढ़े तीन लाख करोड़ रूपये माफ़ कर सकती है और किसानों को दिन के 17 रूपये देती है। ये अपमान नहीं है तो क्या है।" प्रोफेसर अरुण कुमार ने बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय को बताया, "जीतने के लिए इन्होंने ये सारी घोषणाएं कर दी हैं।"
 
वो कहते हैं, "किसान को इससे बहुत अधिक मदद तो नहीं मिलेगी लेकिन हां, कुछ राहत ज़रूर मिलेगी। उम्मीद थी कि 4-5 हज़ार रूपये प्रतिमाह या फिर 18 हज़ार रूपये साल में मिलेंगे। वैसा तो कुछ नहीं है। ऐसा लगता है कि जिनके पास ज़मीन है उन्हें लाभ मिलेगा लेकिन जिनके पास ज़मीन नहीं हैं उन्हें कैसे शामिल किया जाएगा से अभी साफ नहीं है।"
 
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मिहिर स्वरूप शर्मा ने एनडीटीवी की वेबसाइट पर लिखे अपने लेख में इसे 'अंतरिम बजट नहीं बल्कि प्रधानमंत्री बचाओ योजना' कहा है।
 
31 जनवरी 2019
राहुल से मुलाकात वाले बयान पर मनोहर पर्रिकर का बयान
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर से मुलाक़ात करते वक़्त ये कहा था कि वो शिष्टाचार के तहत उनसे मिलने गए थे। राहुल ने मंगलवार को गोवा विधानसभा परिसर में मुख्यमंत्री चैम्बर में पर्रिकर से मुलाक़ात की थी।
 
इसके लिए राहुल गांधी की तारीफ़ भी हुई। पर्रिकर बहुत दिनों से बीमार चल रहे हैं ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष का उनसे मिलना एक प्रशंसा योग्य क़दम था। लेकिन मंगलवार को ही कोच्चि में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने फिर राफ़ेल का ज़िक्र छेड़ दिया और मनोहर पर्रिकर से मुलाक़ात का हवाला दिया।
 
राहुल का कहना था, दोस्तों, ''पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने साफ़ कहा है कि नई डील से उनका कोई लेना देना नहीं है, जिसे नरेंद्र मोदी ने अनिल अंबानी के फ़ायदे के लिए किया है।''
 
अगर राहुल गांधी सचमुच में शिष्टाचार के तहत पर्रिकर से मिलने गए थे जैसा कि उन्होंने ख़ुद अपने ट्वीट में कहा था, ऐसे में उन्हें बैठक में क्या हुआ, ये बताने से बचना चाहिए था। दरअसल राहुल की पर्रिकर से मुलाक़ात के बाद ये सवाल उठ रहे थे कि उन्होंने रफ़ाल का मुद्दा इतने ज़ोर-शोर से उठाया, फिर पर्रिकर से मिलने क्यों पहुँच गए। शायद राहुल गांधी बैठक में रफ़ाल का ज़िक्र करके इसे बैलेंस करना चाह रहे होंगे।
 
29.01.2019
राहुल गांधी की मनोहर पर्रिकर से मुलाक़ात का मतलब
कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने गोवा के पोरवरिम में गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर से मुलाकात की। मनोहर पर्रिकर इन दिनों बीमार चल रहे हैं। राहुल गांधी के मुताबिक उनकी मुलाकात निजी थी और वे पर्रिकर के जल्दी ठीक होने की दुआ कर रहे हैं। हालांकि राहुल गांधी और मनोहर पर्रिकर की इस मुलाकात को राजनीतिक चश्मे से भी देखा जा रहा है।
 
एक तो राहुल गांधी और उनकी पार्टी लगातार ये दावा करती रही है कि मनोहर पर्रिकर के पास राफ़ेल डील से जुड़ी अहम फ़ाइल मौजूद है। राफ़ेल डील के वक्त मनोहर पर्रिकर भारत सरकार के रक्षा मंत्री थे। कांग्रेस पार्टी ने इस बाबत कुछ ही दिन पहले ऑडियो टेप जारी किया था, जिसमें कथित तौर पर गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे एक पत्रकार से बातचीत कर रहे हैं।
 
इस कथित टेप की बातचीत में विश्वजीत राणे पत्रकार से कह रहे हैं कि पर्रिकर ने कैबिनेट मीटिंग के दौरान बताया था कि राफ़ेल डील की अहम फ़ाइल उनके बेडरूम में मौजूद हैं। हालांकि राणे ने इस टेप की सत्यता का खंडन किया था।
 
मोदी सरकार ने कांग्रेसी नेता प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया है, ऐसे में कुछ विश्लेषकों की राय है कि राहुल गांधी अपनी मुलाकात से ये संदेश भी देना चाहते होंगे कि बीमार पर्रिकर को बीजेपी में कोई पूछ नहीं रहा है पर राहुल गांधी को उनकी चिंता है। राहुल गांधी ने पिछले दिनों अरुण जेटली के भी जल्दी ठीक होने की प्रार्थना की थी।
 
28 जनवरी, 2019: गडकरी के बयान के मायने
कभी भाजपा के अध्यक्ष रहे नितिन गडकरी ने पिछले कुछ समय में लगातार ऐसी बातें कही हैं जो आम तौर पर सत्ताधारी दल के मंत्री नहीं करते। उन्होंने कहा है कि वादे वही करने चाहिए जिन्हें पूरा किया जा सके, वर्ना जनता पिटाई कर सकती है। इस बयान को नरेंद्र मोदी के चुनावी वादों से जोड़कर देखा जा रहा है।
 
 
इससे पहले दिसंबर में पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम के आने के बाद उन्होंने पार्टी के नेतृत्व पर दो टिप्पणियां की थीं। 23 दिसंबर को उन्होंने पुणे में कहा कि "नेतृत्व को जीत का श्रेय और हार की ज़िम्मेदारी दोनों लेनी चाहिए।"
 
इसके दो दिन बाद दिल्ली में ख़ुफ़िया अधिकारियों की बैठक में उन्होंने कहा कि "अगर मैं पार्टी अध्यक्ष हूं और मेरे सांसद और विधायक ठीक से काम नहीं कर रहे हैं तो यह किसी और की नहीं, मेरी ही ज़िम्मेदारी होगी।" ज़ाहिर है, इस बयान को मौजूदा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से जोड़कर देखा जा रहा है।
 
कुछ समय पहले उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे फ़िल्म अभिनेता नाना पाटेकर से मराठी में हंसते हुए यह कहते हुए दिखे थे कि "हमने वादे तो कर दिए थे, हमें क्या पता था कि हम सत्ता में आ जाएंगे और वादे पूरे करने होंगे।"
 
बाद में गडकरी ने इसका खंडन किया था, यह एक बड़े वीडियो का एक छोटा-सा हिस्सा था, उनका कहना था कि छोटे हिस्से के पूरे संदर्भ से काटकर दिखाया जा रहा है जिसके कुछ और धारणा बनती है।
 
क्या है इसका मतलब?
कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी को स्पष्ट बहुमत न मिलने की हालत में गडकरी शीर्ष पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं। भूतल परिवहन मंत्री के तौर पर नितिन गडकरी को सक्षम मंत्रियों में गिना जाता है और उनके पास गिनाने के लिए कई उपलब्धियां हैं, उन्होंने कहा भी "मैं डंके की चोट पर वादा करता हूँ और उसे पूरा करके दिखाता हूं।"
 
 
नितिन गडकरी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनके पास उमा भारती के तबादले के बाद जल संसाधन मंत्रालय का भी प्रभार है। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने बीबीसी हिंदी के एक लेख में लिखा था कि बीजेपी का '160 क्लब' फिर से सक्रिय हो गया है, यह उनका लोगों का गुट है जो मोदी के नेतृत्व में 160 या उससे कम सीटें आने की स्थिति में सत्ता परिवर्तन का राग छेड़ेगा।
 
 
नागपुर के रहने वाले मराठी ब्राह्मण नितिन गडकरी को संघ का प्रियपात्र माना जाता है, माना जाता है कि वे ये सारी बातें संघ की मर्ज़ी के खिलाफ़ जाकर नहीं कर रहे हैं। प्रदीप सिंह बताते हैं कि जब नितिन गडकरी अध्यक्ष थे तब अमित शाह के बुरे दिन चल रहे थे, वे अदालत के आदेश पर गुजरात से बाहर कर दिए गए थे, लोग बताते हैं कि गडकरी अमित शाह को घंटों इंतज़ार के बाद मुलाकात का समय देते थे।
 
 
अमित शाह और नितिन गडकरी के बीच संबंध मधुर नहीं रहे हैं, मोदी-शाह के दौर में जब नितिन गडकरी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ, यही नहीं नागपुर के ही उनसे बहुत जूनियर देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठाया गया।
 
 
गडकरी को संघ का समर्थन हासिल है और पार्टी के भीतर भी उनके लोगों से संबंध काफ़ी बेहतर हैं। अभी कहना मुश्किल है कि गडकरी किस हद तक बगावत करेंगे लेकिन वे खुद को मोदी-शाह के विश्वस्तों से अलग साबित करने में लगे हुए हैं।
 

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