#UnseenKashmir: 'तुम कश्मीरी हो, तुम्हें घर देने में डर लगता है'

Webdunia
शुक्रवार, 2 जून 2017 (10:58 IST)
- आफ़िया फ़ारुक़ (फ़िज़ियोथेरेपिस्ट और रिसर्चर)
जब मैं फ़िज़ियोथेरेपी में बैचलर की डिग्री लेकर श्रीनगर लौटी तो मैंने नूरा अस्पताल में क़रीब आठ महीने तक काम किया। ज़िंदगी ऐसी थी कि घर से अस्पताल और अस्पताल से घर, बस। देहरादून या बेंगलुरु की तरह कोई शांति नहीं थी जहां से मैंने ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन किया था। 
 
मैं आगे पढ़ना चाहती थी और रिसर्च करना चाहती थी, लेकिन उसका कोई मौक़ा नहीं था। मेरे पिता मेरा उत्साह बढ़ाते रहते थे। वो चाहते थे कि उनके बच्चे, यहां तक कि सभी बेटियां भी वो करें जो वो करना चाहती हैं।
 
इस तरह मैं राजीव गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ़ हेल्थ साइंसेज़ से मास्टर्स डिग्री हासिल करने बेंगलुरु आई और एक क्लिनिकल रिसर्च कंपनी में मुझे नौकरी मिल गई। श्रीनगर से अगर देहरादून और बेंगलुरू की तुलना करें तो बहुत अंतर है।
 
कश्मीर में अगले दिन की योजना बनाते वक़्त कई पहलुओं का ध्यान रखना होता है। जैसे कि हड़ताल या कर्फ़्यू या फिर कुछ और तो नहीं होना जा रहा अगले दिन। मसला सिर्फ़ नौकरी और पैसे का नहीं, बल्कि जीवन की सुरक्षा को लेकर हमेशा एक चिंता बनी रहती है। माता-पिता भी बहुत तनाव में होते हैं।
 
घर खोजने में परेशानी : देहरादून या बेंगलुरु में ऐसी कोई बात नहीं है। यहां बहुत शांति है और तमाम अवसर मौजूद हैं। हां, देहरादून और बेंगलुरु में दूसरे मसले ज़रूर थे। देहरादून में जब मैं फ़र्स्ट इयर में थी तो वहां रहने की व्यवस्था मेरे पिता ने करवाई थी। सेकंड इयर में अपने एक दोस्त के साथ जब मैंने एक फ़्लैट में शिफ़्ट होने की कोशिश की तब मुझे अहसास हुआ कि मेरा कश्मीरी होना समस्या पैदा कर रहा है।
 
लोग मुंह पर ही कहने लगे थे, "क्योंकि तुम कश्मीरी हो, इसलिए तुम्हें घर देने में हमें डर लगता है।" मेरी दोस्त मुस्लिम नहीं थी और दिल्ली से थी। जब हमें तीन-चार बार घर देने से इनकार कर दिया गया तो मेरी दोस्त ने कहा कि मुझे कश्मीर की बजाय जम्मू का ज़िक्र करना चाहिए। लेकिन मैं झूठ नहीं बोलना चाहती थी।
 
ऐसा नहीं है कि सभी लोग ऐसे ही हैं। कुछ अच्छे लोग भी थे। तब मैंने एक आंटी से कहा कि 'मैं एक कश्मीरी हूं और अगर आपको इसे लेकर कोई एतराज़ है तो आप कह सकती हैं।' आंटी ने कहा, ''अगर तुम वैसी नहीं हो तो तुम रह सकती हो। हम वहां चार साल तक रहे।''
लेकिन जब मैं मास्टर्स करने बेंगलुरु आई तो वहां मुझे देहरादून जैसा अनुभव नहीं करना पड़ा। हालांकि मेरे कुछ दोस्तों का अनुभव मुझसे अलग था। हां, ये भी सच है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को घर देने को लेकर मकान मालिक थोड़े उदार होते हैं।
 
इंटरव्यू के दौरान मेरे जन्म स्थान को लेकर मुझे किसी भेदभाव या असहज सवालों का सामना नहीं करना पड़ा। सहकर्मी बाद में ज़रूर पूछते कि इतने सुंदर कश्मीर में हालात इतने बुरे क्यों हैं। मैं हमेशा उन्हें श्रीनगर आने और मेरे घर में ठहरने का न्यौता देती ताकि वो देख सकें कि यहां शांति क्यों नहीं है।
 
आप मीडिया में जो देखते हैं वो अलग है। हमारे अंदर किसी के प्रति कोई घृणा नहीं है। हम बेहद खुले स्वभाव वाले और स्नेह से भरे लोग हैं। आपको बताऊं, जब मैं श्रीनगर एयरपोर्ट से घर जाती हूं तो अपने पिता से कहती हूं कि मुझे लगता है कि हम कश्मीरी 50 साल पीछे चले गए हैं। मुझे लगता है कि हालात दिन ब दिन बिगड़ते ही जा रहे हैं।
 
कश्मीर के लोगों में टैलेंट की भरमार है। लेकिन फिर वही बात कहूंगी कि टैलेंट होने के बावजूद यहां अवसर नहीं हैं। मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि कश्मीर में लोग जो कर रहे हैं उसकी वजह क्या है। मैं कहना चाहूंगी कि अगर कोई मेरे सामने खड़ा हो और मैं उसे एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं बल्कि चार-चार झापड़ मारूं तो ये स्वाभाविक है कि वो शख़्स जवाबी कार्रवाई करेगा।
 
बेंगलुरु में मेरे सहकर्मी और दोस्त कहते हैं कि 'सभी पत्थरबाज़ों को पैसे दिए जाते हैं।' मेरा कहना है कि पूरी घाटी को पैसे नहीं दिए जा सकते। ये समझने की बात है कि अगर इतने बड़े पैमाने पर लोग सड़कों पर उतरे हैं तो कहीं न कहीं कुछ ग़लत है। कुछ लोगों को आगे आकर उनसे पूछना चाहिए कि ऐसा क्या है जो ग़लत है।
 
मैंने एक साल बेंगलुरु में काम करने के बाद एक ब्रेक लिया है। मैं घर से 15 दिन काम कर सकती थी और बाकी के 15 दिन मैं छुट्टी पर थी। मेरे माता-पिता भी ख़ुश थे। लेकिन चुनाव में कुछ गड़बड़ी के ठीक पांच दिन बाद इंटरनेट बंद हो गया। मुझे मेरे मैनेजर को कॉल करनी थी और हालात के बारे में बताना था। मेरा काम रिसर्च का है और उसका कई लोगों पर असर हो सकता है।
 
मुझे मेरे काम को दूसरे सहकर्मियों तक पहुंचाना था। आख़िरकार मुझे टिकट कैंसल कराना पड़ा, नया टिकट लेना पड़ा और जल्दबाज़ी में लौटना पड़ा। ये सब निस्संदेह बहुत तनावभरा था। मैं आठ साल से कश्मीर से बाहर थी। मेरी ज़िंदगी काफ़ी अच्छी है। बहुत सुकून है ज़िंदगी में और वही सबसे महत्वपूर्ण है। सवाल ज़्यादा या कम काम का नहीं है। आख़िरकार ये मेरी ज़िंदगी है। मैं अपनी बहनों से कहती रहती हूं कि तुम्हें अपना घर हमेशा के लिए नहीं छोड़ना है। कम से कम बाहर निकलो, पढ़ो और देश के किसी और हिस्से में जाकर काम करो।
Show comments

जरूर पढ़ें

Bomb threat : 50 उड़ानों में बम की धमकी मिली, 9 दिन में कंपनियों को 600 करोड़ का नुकसान

महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के बीच सीटों का फॉर्मूला तय

गुरमीत राम रहीम पर चलेगा मुकदमा, सीएम मान ने दी अभियोजन को मंजूरी

Gold Silver Price Today : चांदी 1 लाख रुपए के पार, सोना 81000 के नए रिकॉर्ड स्तर पर

दो स्‍टेट और 2 मुख्‍यमंत्री, क्‍यों कह रहे हैं बच्‍चे पैदा करो, क्‍या ये सामाजिक मुद्दा है या कोई पॉलिटिकल गेम?

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

Infinix का सस्ता Flip स्मार्टफोन, जानिए फीचर्स और कीमत

Realme P1 Speed 5G : त्योहारों में धमाका मचाने आया रियलमी का सस्ता स्मार्टफोन

जियो के 2 नए 4जी फीचर फोन जियोभारत V3 और V4 लॉन्च

2025 में आएगी Samsung Galaxy S25 Series, जानिए खास बातें

iPhone 16 को कैसे टक्कर देगा OnePlus 13, फीचर्स और लॉन्च की तारीख लीक

अगला लेख
More