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कश्मीर: 'ईद की किसको चिंता है, घर वालों का हाल जानना है'

हमें फॉलो करें कश्मीर: 'ईद की किसको चिंता है, घर वालों का हाल जानना है'
, रविवार, 11 अगस्त 2019 (12:33 IST)
दिलनवाज़ पाशा
बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर से लौटकर
सफ़ेद बादलों के बीच से गुज़रकर विमान नीचे उतरता है तो खिड़की से जहां तक आंखें देख सकती है, हरियाली ही नज़र आती है। पेड़ों से घिरे पहाड़ी घर, हरे खेत। खाली सड़कें। आसमान से देखें तो सब शांत लगता है, बिलकुल शांत। लेकिन विमान के अंदर देखें तो बेचैन चेहरे नज़र आते हैं। जिन्हें नहीं पता कि ज़मीन पर हालात कैसे हैं।
 
दिल्ली से चली उड़ान श्रीनगर की ज़मीन छूने वाली है। अपनों से मिलने के लिए बेचैन लोगों के लिए सवा घंटे का ये सफ़र भी लंबा हो गया था। 'मेरे हैंडबैग में दाल है, खाने की चीज़ें हैं, दवाइयां हैं। कोई गिफ़्ट नहीं है। मैं अपने साथ सिर्फ़ खाने-पीने का सामान लेकर जा रहा हूं। मैं किसी से बात नहीं कर सका हूं। ना अपनी पत्नी से, ना बच्चे से, ना माता-पिता से, ना चाचा से, न पूरी कश्मीर घाटी में किसी ओर से।'
 
'सच बोलूं मैं ईद मनाने नहीं जा रहा हूं। मैं ये देखने जा रहा हूं कि मेरे घरवाले ठीक हैं या नहीं। उन्हें बताने जा रहा हूं कि मैं ठीक हूं यहां पर क्योंकि कम्युनिकेशन पूरा ख़त्म हो चुका है। ऐसा लग रहा है कि हम आज के दौर की दुनिया में नहीं, किसी डार्क एज में रह रहे हैं।'
 
'एक चिंता सताए जा रही है कि वहां सब ठीक है या नहीं। इस वजह से हम अच्छे से काम नहीं कर पा रहे हैं। दिमाग में बहुत टेंशन है। जब टेंशन हो तो आपके दिमाग़ में बहुत बुरे ख्याल आते हैं। हो सकता है सब ठीक हो, लेकिन हमें कुछ नहीं पता कि वहां हालात कैसे हैं। हम अपने घरवालों के बारे में जानने के लिए बेचैन हैं।'
 
"मैं हज़ारों बार फ़ोन मिला चुका हूं। जो नंबर लगाता हूं। स्विच ऑफ़। सबके नंबर तो बंद नहीं हो सकते ना। कुछ ना कुछ तो ग़लत हो रहा होगा, यही दिमाग़ में चल रहा है।"
 
आसिफ़ ने दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे से श्रीनगर के लिए उड़ान भरी है। दिल्ली में एक प्राइवेट बैंक में काम करने वाले आसिफ़ पिछले कई दिनों से न ठीक से सो सके हैं और न ही खा सके हैं।
 
थकावट और बेचैनी उनके चेहरे पर साफ़ नज़र आती है। दिल्ली से श्रीनगर के लिए उड़ान भरने वाले लोगों के चेहरों को अगर ध्यान से देखा जाए तो सभी में एक बेचैनी और डर नज़र आता है।
 
भारत सरकार ने बीते सोमवार को संविधान के अनुच्छेद 370 को बेअसर करके भारत प्रशासित कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को ख़त्म कर दिया। सरकार ने इस प्रदेश को दो केंद्र शासित प्रदेशों में भी विभाजित कर दिया है।
 
लेकिन इसकी घोषणा करने से पहले घाटी से सभी तरह का बाहरी संपर्क काट दिया गया। इंटरनेट बंद करने के अलावा मोबाइल और लैंडलाइन फ़ोन सेवाएं भी बंद कर दी गईं।
 
हरियाणा के एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले चार कश्मीरी छात्रों को अगले महीने होने वाली परीक्षा की तैयारी करनी थी। लेकिन अब वो आनन-फ़ानन में घर लौट रहे हैं।
 
वे कहते हैं, "पेपर होने वाले थे, हमें तैयारी पर फ़ोकस करना था, लेकिन कम्युनिकेशन ख़त्म हो गया। घरवालों से बात नहीं हो पा रही थी। हम मानसिक रूप से बहुत डिस्टर्ब हो गए। बहुत चिंता हो गई थी। न क्लास कर पा रहे थे न कुछ और। हम ईद मनाने नहीं जा रहे हैं। घरवालों का हालचाल लेने जा रहे हैं।"
 
वे कहते हैं, 'भारतीय मीडिया ने कश्मीर की हालत के बारे में कोई जानकारी हमें नहीं दी। न सरकार की ओर से कोई सही जानकारी दी गई। हमें पता ही नहीं चल पा रहा था कि आख़िर वहां हो क्या रहा है।'
 
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डर का माहौल बनाया गया
दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी में क़ानून की पढ़ाई करने वाली शफ़ूरा के लगेज और हैंडबैग में भी बस खाने-पीने का सामान ही है। वो कहती हैं, "मैं बेबी फ़ूड और दवाइयां लेकर आई हूं। चार दिन पहले कुछ देर के लिए मेरी घरवालों से चैट पर बात हुई। लेकिन उसके बाद से कोई संपर्क नहीं है। मुझे नहीं पता कि वो ज़िंदा भी हैं या नहीं।"
 
वो कहती हैं, "एक डर का माहौल बनाया जा रहा है। सरकार ने जो किया है वो दूसरे तरीके से भी कर सकती थी। बीते एक साल से हम केंद्र सरकार के शासन में रह ही रहे हैं। कई अन्य राज्यों का भी विशेष दर्जा है। अगर ये वहां से शुरू करके कश्मीर तक पहुंचते तो शायद लोग स्वीकार करते। लेकिन कश्मीर, जहां के लोगों को पहले से ही भरोसा कम है केंद्र सरकार पर, वहां ऐसा किया गया। इससे मंशा पर शक़ होता है।"
 
शफ़ूरा को नहीं पता है कि श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरने का बाद घर तक कैसे पहुंचना है। सिर्फ़ वो ही नहीं बल्कि बाहर से श्रीनगर पहुंचने वाला कोई भी व्यक्ति अपने घरवालों को आने की सूचना नहीं दे सका है।
 
केंद्रीय रिसर्च इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करने वाली एक छात्रा श्रीनगर हवाई अड्डे के बाहर रुआंसी खड़ी है। आंसुओं से उसका दुपट्टा भीग गया है। उसे सोपोर पहुंचना है लेकिन जाने का कोई साधन नहीं है। वो मुंहमांगे पैसे देने के लिए तैयार है लेकिन कोई टैक्सी वाला वहां नहीं जाना चाहता।
 
उसे परेशान देख कुपवाड़ा जाने का इंतज़ार कर रहे कुछ युवा भरोसा देते हैं कि वो उसे अपने साथ ले जाएंगे लेकिन आगे कैसे जाया जाए ये उन्हें भी नहीं पता है।
 
इन चिंताजनक सुरक्षा हालातों में भी वो क्यों घर वापस लौट रहे हैं? इस सवाल पर वो कहते हैं, "हमें नहीं पता हमारे घरवाले ज़िंदा हैं या नहीं। हमें सब छोड़कर बस किसी भी तरह उनका हाल जानना है, उनके साथ रहना है।"
 
क्या वो ईद मनाने आ रहे हैं, वो कहते हैं, "इन हालातों में कोई क्या ईद मनाएगा। हमारी प्राथमिकता अभी ईद नहीं घरवालों की सुरक्षा है।"
 
चंडीगढ़ से आई एक छात्रा की आंखें भी भीगी हैं, कांपती आवाज़ में वो कहती है, "कॉलेज और पीजी के लोग सपोर्ट कर रहे थे। लेकिन मेरा दिल नहीं मान रहा था। मां-बाप की कोई ख़बर नहीं थी। मैं अपनी मां से बात किए बिना नहीं रह सकती। अब हालात सुधरने के बाद ही वापस कॉलेज जाउंगी। भले ही पढ़ाई ही क्यों न छूट जाए।"
 
उनका एक दोस्त दिल्ली से आया है। वो साथ दवाइयां लाया है। वो भी उन्हीं की तरह परेशान है। वो कहता है, "मेरे पिता को डायबिटीज़ है। मैं दिल्ली से अपने साथ उनकी दवाइयां लाया हूं। हमें नहीं पता ऐसे हालात कितने दिन रहेंगे।"
 
श्रीनगर में ईद की तैयारी
पांच दिनों से पूरी तरह लॉकडाउन में रहे श्रीनगर में शनिवार को लोगों को थोड़ी छूट दी गई। यहां चप्पे-चप्पे पर भारतीय सेना के हथियारबंद जवान मुस्तैद हैं।
 
बख़्तरबंद गाड़ियों, स्नाइपरों, कंटीली तारों और आते-जाते सैन्य वाहनों के बीच आम लोगों के वाहन भी सड़क पर नज़र आ रहे हैं।
 
बकरीद के लिए भेड़े बेचने आए एक युवक ने कहा, "ये ईद नहीं है मातम है। दो दिन के लिए थोड़ा बाहर निकले हैं। हम ईद के बाद अपना 370 वापस लेंगे। ये कश्मीर है। हमारी ज़मीन है। हम अपनी ज़मीन किसी को लेने देंगे?"
 
"जब भी मुसलमानों का कोई बड़ा दिन आता है, कोई न कोई दंगा फ़साद करा देते हैं। ये हिंदुस्तान को सोचना था कि इनका बड़ा दिन है, ऐसा नहीं करना था। कुर्बानी फ़र्ज़ है इसलिए क़ुर्बानी करते हैं। दो दिन बाद आप देखिएगा यहां क्या होगा"
 
एक और कश्मीरी युवा कहता है, "हमारी ईद से पहले सब बंद कर दिया है। जब किसी को ईद मुबारक ही नहीं कह सकते तो कैसी ईद?
 
वहीं घाटी के ग्रामीण इलाक़ों से आए बहुत से चरवाहे ऐसे भी हैं जिनके न मवेशी बिक रहे हैं और शहर बंद होने की वजह से न ही उन्हें खाने के लिए कुछ मिल पा रहा है।
 
ऐसे ही एक चरवाहे ने कहा, "इस बार काम नहीं है। लग नहीं रहा कि हम जानवर बेच पाएंगे। सब बंद है। सुबह से भूखे हैं।"
 
तनाव के बीच लगी दुकानें
कर्फ़्यू में ढील मिलने पर कुछ ठेले वाले सब्ज़ी और फल बेचने आए हैं। उनकी तस्वीर लेने की कोशिश करने पर एक युवा रोकते हुए कहता है, "आप दुनिया को क्या दिखाना चाहते हैं कि श्रीनगर में सब नॉर्मल है? कश्मीरी फल-सब्ज़ी ख़रीद रहे हैं?"
 
वो अपनी बात पूरी कर पाता कि एक पत्थर कहीं से आकर गिरा। पत्थरबाज़ी होने का शोर फैल गया और ठेले वाले अपने ठेले लेकर भागने लगे।
 
एक बुज़ुर्ग अपना पूरा दम लगाकर ठेला धकेलने लगा। ऐसा लगा मानो घाटी में जारी तनाव का पूरा बोझ उनके बूढ़े पैरों पर पड़ गया हो।
 
यहां से डल की ओर जाते हुए भारी सैन्य मौजूदगी के बीच माहौल कुछ सामान्य सा लगता है। कई जगह वाहनों की भीड़ भी सड़क पर नज़र आती है।
 
लेकिन ऐसा कोई इलाक़ा नहीं दिखता जहां सौ क़दम के बीच हथियार ताने जवान न खड़े हों।
 
'कश्मीर को जेलखाना बना दिया है'
डल के किनारे बैठे कुछ युवा हालात पर ही चर्चा कर रहे थे। क़रीब तीस साल की उम्र का एक युवा कहता है, "कश्मीर को एक जेलखाना बनाकर दो लोगों ने ये फ़ैसला ले लिया। न कश्मीर की पहले सुनी, ना अब सुनी। अभी लोग घर में बैठे हैं, जब लोग घरों से निकलेंगे तब दुनिया को पता चलेगा कि कश्मीरी इस फ़ैसले को लेकर क्या सोच रहे हैं।
 
"इतना बड़ा फ़ैसला लेने से पहले क्या कश्मीर के लोगों को भरोसे में नहीं लिया जाना था? कश्मीरियों की कोई आवाज़ नहीं सुनी गई। चुने हुए नेताओं तक को बंद कर दिया।"
 
"मोदी जी कह रहे थे कि हम त्यौहार का सम्मान करते हैं। लोगों को उनके घर में बंद करके सम्मान कर रहे हैं। हमसे कहा जा रहा है कि अपने घर में ईद मनाओ। यार-रिश्तेदारों से मिले बिना कैसी ईद? बाहर की दुनिया को दिखाया जा रहा है कि सब सामान्य है। क्या आपको कुछ सामान्य दिख रहा है?"
 
हालात से मायूस एक युवा कहता है, "कश्मीरी घर में लॉक है। उसका दिमाग़ भी लॉक है। कश्मीरी लोगों के पास अब कोई विकल्प नहीं है। मैं जबसे बड़ा हुआ हूं मैंने यही देखा है। कर्फ्यू। बंद। मारधाड़। कभी शांति नहीं देखी।"
 
वो कहता है, "बंदूक की नोक पर सरकार कुछ भी कर सकती है। ज़मीन भी छीन सकती है। जो यहां हो रहा है बंदूक के दम पर हो रहा है। ये ज़मीने छीन तो सकते हैं, ख़रीद नहीं सकते हैं। लेकिन ये भारत के आम लोगों के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि उन बड़े लोगों के लिए किया जा रहा है जिनके पैसों से भारत सरकार चलती है। इसमें ना कश्मीरी लोगों के लिए कुछ है ना भारत के आम लोगों के लिए।"
 
तूफ़ान से पहले की शांति?
कुछ युवा साफ़ आसमान के नीचे बैठ डल के शांत पानी में कांटे डाल मछलियां पकड़ रहे हैं। क्या शांति लौट रही है? इस सवाल पर वो कहते हैं, "ये तूफ़ान से पहले की शांति है। कश्मीर में तूफ़ान आने वाला है। ईद गुज़र जाने दीजिए। कोई नहीं जानता यहां क्या होगा।"
 
वो कहते हैं, "हम लंबे लॉकडाउन के लिए तैयार हैं। ये अब हमारी ज़िंदगी का हिस्सा है। लेकिन हम कश्मीर किसी को देने के लिए तैयार नहीं है। न कभी होंगे। कश्मीर हमारी जन्नत है और हम इसके लिए कुछ भी कर सकते हैं।"
 
जितने भी कश्मीरी लोगों से बात हुई उनमें ख़ासतौर से भारतीय नेताओं के उस बयान को लेकर ग़ुस्सा था जिसमें कश्मीरी लड़कियों से शादी की बात की गई थी।
 
वो कहते हैं, "भारत के लोग हमारी ज़मीन और बेटियां लेने की बात कर रहे हैं। और आप सोचते हैं कि हम ख़ामोश बैठेंगे।"
 
श्रीनगर में ईद के लिए कर्फ्यू में राहत तो है लेकिन सार्वजनिक यातायात सेवाएं बहाल नहीं हैं। अपनों से मिलने के लिए परेशान लोग पैदल ही चल रहे हैं।
 
ऐसी ही एक महिला ने बताया, "मैं अपनी छोटी बहन का हाल जानने जा रही हूं। पता नहीं है वो किस हाल में है। उसके घर में खाने के लिए है या नहीं।"
 
एयरपोर्ट तक के लिए लिफ्ट लेने वाले एक कश्मीरी युवा ने बताया कि वो चैन्ने का टिकट लेने जा रहा है। क्या वो इन हालातों की वजह से श्रीनगर से बाहर जा रहे हैं।
 
इस सवाल पर वो कहते हैं, "मैं कारोबार करने जा रहा हूं। कश्मीर को मेरी ज़रूरत पड़ी तो मैं वापस लौटूंगा। कश्मीर हमारी जान है। इसके लिए हम जान दे भी सकते हैं।"
 
एयरपोर्ट के सुरक्षा घेरे में तैनात सेना के एक अधिकारी ने मुझसे पूछा, "शहर का हाल आपको कैसा लगा।"
 
नगर एयरपोर्ट के लॉन में एक युवती अपने लगेज के साथ इंतेज़ार कर रही है। वो किसी एयरलाइन में एयरहोस्टेस है।
 
वो कहती हैं, "मैं बारह बजे यहां उतरी हूं लेकिन अभी मुझे नहीं पता कि कब तक घर पहुचूंगी। मैं पुलवामा से हूं। मैंने पुलिस स्टेशन, फ़ायर स्टेशन, पुलिस कमिश्नर, अस्पताल हर जगह फ़ोन किया लेकिन किसी से कोई बात नहीं हो सकी।"
 
"हम कर्फ्यू के बीच ही पले-बढ़े हैं। लेकिन ऐसे हालात पहली बार देखे हैं। कांटेक्ट पूरी तरह काट दिया गया है। यहां हालात ख़तरनाक़ हैं लेकिन फिर भी मैं आईं हूं। मैं ये ख़तरा उठाकर आई हूं क्योंकि अपने परिवार का हाल जाने बिना मुझसे काम नहीं हो पा रहा था।"
 
उस युवती को कश्मीरी लड़कियों के बारे में आ रहे बयानों से बहुत आपत्ति थी। वो कहती हैं, "मैंने वो मीम्स देखे हैं जिनमें कश्मीरी हॉट गर्ल्स से शादी की बातें की जा रही हैं। ये पढ़ने के बाद मैं दिल्ली मेट्रो में सफ़र करते हुए असहज हुई।
 
देश के बाकी लोगों को ये समझना चाहिए कि हम एक भावनात्मक समय से गुज़र रहे हैं। उन्हें हम पर टिप्पणी करने के बजाए हमारा साथ देना चाहिए। हमें लगना चाहिए कि वो हमारे बारे में सोचते हैं। लेकिन ये कहीं नज़र ही नहीं आ रहा है।"
 
काम छोड़ लौटते मज़दूर
श्रीनगर से दिल्ली आने वाली उड़ानों में अधिकतर वो मज़दूर सवार हैं जो घाटी में काम कर रहे थे। इन पर दोहरी मार पड़ी है। एक तो काम छूटा दूसरा महंगा किराया चुकाना पड़ रहा है।
 
सरकार ने एयरलाइनों से किराया सीमित रखने के लिए कहा है। लेकिन मज़दूरों को एयर टिकटों का बढ़ा किराया चुकाना पड़ रहा है। मेरे साथ लौट रहे बिहार के रहने वाले सादिकुल आलम को दिल्ली तक की टिकट छह हज़ार में मिली है। उनसे कुछ ही घंटा पहले बुक कराने वाले एक अन्य मज़दूर को यही टिकट 4200 रुपए में मिला है।
 
वो कहते हैं, "इंटरनेट बंद होने की वजह से हम जैसे लोगों को काउंटर से ही टिकट लेना पड़ रहा है जिसके दाम वक़्त के साथ बढ़ रहे हैं। मैंने दो टिकट ख़रीदे हैं। ये मेरी एक महीने की कमाई के बराबर हैं। काम तो गया है, बचाकर रखा पैसा भी गया।"
 
श्रीनगर से उड़ते ही विमान सफ़ेद बादलों के ऊपर आ जाता है। ये बादल शांति का प्रतीक लगते हैं। शांति जो ज़मीन पर उतरकर न दिखाई देती है, ना महसूस होती है।

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