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वो तीन मिनट का हमला, जिससे बना बांग्लादेश

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, शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016 (14:12 IST)
- रेहान फ़ज़ल (दिल्ली)
14 दिसंबर 1971. समय लगभग साढ़े दस बजे। स्थान गुवाहाटी का एयरबेस। विंग कमांडर बीके बिश्नोई पूर्वी पाकिस्तान में एक अभियान के बाद लौटे ही थे कि ग्रुप कैप्टन वोलेन ने उन्हें बताया कि उन्हें तुरंत एक अत्यंत महत्वपूर्ण अभियान पर निकलना है। ग्यारह बज कर बीस मिनट पर उन्हें ढाका के सर्किट हाउस में चल रही एक महत्वपूर्ण बैठक के दौरान बम गिरा कर उसमें व्यवधान डालना है।
फ़्लाइंग ऑफ़िसर हरीश मसंद बीच में
हुआ ये था कि सुबह भारतीय वायु सेना ने ढाका गवर्नर हाउस और पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय के बीच एक संवाद को बीच में ही सुना था जिसमें कहा गया था कि पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर साढ़े ग्यारह बजे एक मीटिंग लेने वाले हैं जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन के सारे आला अधिकारी भाग लेंगे। वायुसेना मुख्यालय ने पूर्वी कमान को आदेश दिया कि इस बैठक के दौरान सर्किट हाउस पर बमबारी की जाए ताकि प्रशासन की ‘निर्णय लेने की क्षमता’ ही समाप्त हो जाए।
 
सर्किट हाउस की लोकेशन का कोई नक्शा ऑपरेशन रूम में नहीं था। नक्शे के नाम पर उन्हें एक टूरिस्ट मैप दिया गया जिसे बिश्नोई ने अपनी साइड पॉकेट में खोंस लिया।
 
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गवर्मेंट हाउस नया लक्ष्य बना :
बिश्नोई ने बीबीसी को बताया, "उस समय हमारे पास हमला करने के लिए सिर्फ़ 24 मिनट थे। उनमें से गुवाहाटी से ढाका तक पहुंचने तक का समय ही 21 मिनट था। तो कुल मिला कर हमारे पास सिर्फ़ तीन मिनट बचते थे। मैं अपने मिग 21 का इंजिन स्टार्ट कर उसका हुड बंद ही कर रहा था कि मैंने देखा कि मेरी स्कवॉड्रन का एक अफ़सर एक कागज़ लहराता हुआ मेरी तरफ़ दौड़ा चला आ रहा है।"
 
उस अफ़सर ने बिश्नोई को बताया कि अब टारगेट सर्किट हाउस न हो कर गवर्मेंट हाउस कर दिया गया है। बिश्नोई ने उससे पूछा कि ये है कहाँ? तो उसका जवाब था कि आप को ही पता करना है कि वो कहाँ है। बिश्नोई कहते हैं कि इतना समय भी नहीं था कि विमान को रोक कर टारगेट को ढ़ूँढ़ने की बात सोची जाती। उन्होंने बताया,"मैंने अपनी टीम के किसी पायलट को नहीं बताया कि टारगेट को बदल दिया गया है। मैं रेडियो पर ही उन्हें ये बता सकता था लेकिन अगर मैं ऐसा करता तो पूरी दुनिया को पता चल जाता कि हम क्या करने जा रहे हैं।"
 
बर्मा शेल का टूरिस्ट मैप :
इस बीच गुवहाटी से 150 किलोमीटर पश्चिम में हाशिमारा में विंग कमांडर आरवी सिंह ने 37 स्कवॉड्रन के सीओ विंग कमांडर एसके कौल को बुला कर ब्रीफ़ किया कि उन्हें भी ढाका के गवर्मेंट हाउस को ध्वस्त करना है। कौल का पहला सवाल था कि गवर्मेंट हाउस कहाँ है? इसके जवाब में उन्हें बर्मा शेल पेट्रोलियम कंपनी की तरफ़ से जारी किया गया एक दो इंच का टूरिस्ट मैप दिया गया।
 
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इस बीच विश्नोई को गुवहाटी से उड़े बीस मिनट हो चुके थे। उन्होंने अनुमान लगाया कि वो तीन मिनट के अंदर अपने लक्ष्य तक पहुंच जाएंगे। उन्होंने वो नक्शा अपनी जेब से निकाला और उसको देखने के बाद उन्होंने अपने साथी पायलेट्स को रेडियो पर संदेश भेजा कि ढाका हवाई अड्डे के दक्षिण में लक्ष्य को ढ़ूंढ़ने की कोशिश करें। अब ये लक्ष्य सर्किट हाउस न हो कर गवर्मेंट हाउस है।
 
उनके नंबर तीन पायलट विनोद भाटिया ने सबसे पहले गवर्मेंट हाउस को ढूंढ़ा। इसके चारों तरफ हरी घास का एक कंपाउंड था जैसा कि भारत के राज्यों की राजधानियों में स्थित राज भवनों में हुआ करता है। बिश्नोई याद करते हैं, "मैं यह सुनिश्चित करने के लिए अपने मिग को बहुत नीचे ले आया कि हमारा लक्ष्य बिल्कुल सही है या नहीं। मैंने देखा वहाँ बहुत सारी कारें आ जा रही हैं, बहुत सारे सैनिक वाहन भी खड़े हुए हैं और पाकिस्तान का झंडा गुंबद पर लहरा रहा है। मैंने अपने साथियों को बताया कि हमें यहीं हमला करना है।"
 
होटल में शरण की कोशिश :
उस समय गवर्नर हाउस में गवर्नर डॉक्टर एएम मलिक अपने मंत्रिमंडल के साथियों से मंत्रणा में व्यस्त थे। तभी संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधि जॉन केली वहाँ पहुंचे। मलिक ने मंत्रिमंडल की बैठक बीच में ही छोड़ कर कैली को रिसीव किया।
 
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मलिक ने केली से पूछा कि वर्तमान परिस्थितियों के बारे में उनका आकलन क्या है? केली का जवाब था आपको और आपके मंत्रिमडल के लोगों को मुक्तिवाहिनी अपना निशाना बना सकती है। केली ने उन्हें सलाह दी कि आप तय किए गए तटस्थ क्षेत्र इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में शरण ले सकते हैं लेकिन ऐसा करने से पहले आपको और आपके मंत्रिमंडल के सदस्यों को अपने पदों से इस्तीफ़ा देना होगा।
 
मलिक का जवाब था कि वो इस बारे में सोच रहे हैं, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं करना चाहते कि कहीं इतिहास ये न कहे कि वो बीच लड़ाई में मैदान छोड़ कर भाग गए। मलिक ने केली से पूछा कि क्या वो अपनी ऑस्ट्रियन पत्नी और बेटी को होटल भेज सकते हैं? केली ने कहा कि वो ऐसा कर तो सकते हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय प्रेस को इसका आभास हो जाएगा और वो ये खबर ज़रूर फैलाएंगे कि गवर्नर का भविष्य से विश्वास उठ गया है इसलिए उन्होंने अपने परिवार को होटल की शरण में भेज दिया है।
 
जीप के नीचे शरण : अभी ये बात चल ही रही थी कि लगा कि गवर्नर हाउस में जैसे भूचाल आ गया हो। बिश्नोई के छोड़े रॉकेट भवन पर गिरने शुरू हो गए थे। पहले राउंड में हर पायलट ने 16 रॉकेट दागे। बिश्नोई ने मुख्य गुंबद के नीचे वाले कमरे को अपना निशाना बनाया। भवन के अंदर हाहाकार मच गया। केली और उनके साथी व्हीलर जंगले से बाहर कूदे और बचने के लिए बाहर पार्क एक जीप के नीचे छिप गए।
 
जॉन केली लिखते हैं, "हमले के दौरान मेरा मुख्य सचिव मुज़फ़्फ़र हुसैन से सामना हुआ। उनका रंग पीला पड़ा हुआ था। मेरे सामने से मेजर जनरल राव फ़रमान अली दौड़ते हुए निकले। वो भी बचने के लिए कोई आड़ ढ़ूँढ़ रहे थे। दौड़ते दौड़ते उन्होंने मुझसे कहा, भारतीय हमारे साथ ऐसा क्यों कर रहे रहे हैं ?"( जॉन केली, थ्री डेज़ इन ढाका, 1971, पेज 649)
 
विंग कमांडर बिश्नोई के नेतृत्व में उड़ रहे चार मिग 21 विमानों ने धुएं और धूल के ग़ुबार से घिरे गवर्नर हाउस पर 128 रॉकेट गिराए। जैसे ही वो वहाँ से हटे, फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट जी बाला के नेतृत्व में 4 स्कवॉड्रन के दो और मिग 21 वहाँ बमबारी करने पहुँच गए। बाला और उनके नंबर 2 हेमू सरदेसाई ने गवर्नर हाउस के दो चक्कर लगाए और हर बार चार चार रॉकेट भवन पर दागे।
 
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45 मिनट में तीसरा हमला : मिग 21 के 6 हमलों और 192 रॉकेट दागे जाने के बावजूद गवर्नर हाउस धराशाई नहीं हुआ था, हालांकि उसकी कई दीवारें, खिड़कियाँ और दरवाज़े इस हमले को बर्दाश्त नहीं कर पाए थे। जैसे ही हमला समाप्त हुआ केली और उनके साथी एक मील दूर संयुक्त राष्ट्र संघ के दफ़्तर रवाना हो गए।
 
वहाँ पर मौजूद लंदन ऑब्ज़र्वर के संवाददाता गाविन यंग ने केली को सलाह दी कि दोबारा गवर्नर हाउस चल कर वहाँ हो रहे नुकसान का जायज़ा लिया जाए। गाविन का तर्क था कि भारतीय विमान इतनी जल्दी वापस नहीं लौट कर आएंगे और उन्हें दोबारा ईंधन और हथियार भरने में कम से कम एक घंटा लगेगा।
 
जब तक केली और गाविन दोबारा गवर्नर हाउस पहुंचे मलिक और उनके सहयोगी भवन के ही एक बंकर में घुस चुके थे। मलिक ने अभी भी इस्तीफ़ा देने के बारे में फ़ैसला नहीं लिया था। वो अभी मंत्रणा कर ही रहे थे कि अचानक ऊपर से गोलियों की बौछार की आवाज़ सुनाई दी। भारतीय वायु सेना 45 मिनटों के अंदर गवर्मेंट हाउस पर अपना तीसरा हमला कर रही थी।
 
खिड़की पर निशाना : इस बार हमले की कमान थी हंटर उड़ा रहे विंग कमांडर एसके कौल और फ़्लाइंग ऑफ़िसर हरीश मसंद के पास। कौल ने जो बाद में वायुसेनाध्यक्ष बने, बीबीसी को बताया, "हमें ये ही नहीं पता था कि ढाका में ये गवर्मेंट हाउस कहाँ था। ढाका कलकत्ता और बंबई की तरह बड़ा शहर था। हमें ढाका शहर का बर्मा शेल का एक पुराना रोडमैप दिया गय़ा था। उससे हमें ज़बरदस्त मदद मिली।''
 
कौल की अगुवाई में दल ने इसका भी ध्यान रखा कि हमले में आस पड़ोस की आबादी का ज़्यादा नुकसान नहीं हो पाए। उन्होंने बताया, "हमने पहले बिल्डिंग को पास किया ताकि आसपास खड़े लोग तितर बितर हो जाएं और उन्हें नुकसान न पहुंचे। हमने रॉकेट अटैक के साथ साथ गन अटैक भी किए और अपने अटैक को हाइट पर रखा ताकि हम उनके छोटे हथियारों की पहुँच से बाहर रह सकें।"
 
विंग कमांडर कौल के साथ गए उनके विंग मैन फ़्लाइंग ऑफ़िसर हरीश मसंद ने भी बीबीसी के बताया, "मुझे याद है गवर्मेंट हाउस के सामने पहली मंज़िल पर एक बड़ा दरवाज़ा या खिड़की सरीखी चीज़ थी। उस पर हमने ये सोच कर निशाना लगाया कि वहाँ कोई मीटिंग हॉल हो सकता है। हमले के बाद जब हम लोग नीचे उड़ते हुए इंटरकॉन्टिनेंटल होटल के बगल से गुज़र रहे थे तो हमने देखा कि उसकी छत, टैरेस और बालकनी पर बहुत से लोग इस नज़ारे को देख रहे थे।"
 
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कांपते हाथों से इस्तीफ़ा : उधर गवर्नर हाउस में मौजूद गाविन यंग ने वायर पर संवाद लिखा, "भारतीय जेटों ने गरजते हुए हमला किया। धरती फटी और हिली भी। मलिक के मुंह से निकला-अब हम भी शरणार्थी हैं। केली ने मेरी तरफ देखा मानो बिना बोले पूछ रहे हों आखिर हमें यहाँ दोबारा आने की ज़रूरत क्या थी। अचानक मलिक ने एक पेन निकाला और कांपते हाथों से एक काग़ज़ पर कुछ लिखा। केली और मैंने देखा कि ये मलिक का इस्तीफ़ा था जिसे उन्होंने राष्ट्रपति याहया ख़ाँ को संबोधित किया था।"
 
"अभी हमला जारी ही था कि मलिक ने अपने जूते और मोज़े उतारे, बग़ल के गुसलखाने में अपने हाथ पैर धोए, रूमाल से अपना सिर ढका और बंकर के एक कोने में नमाज़ पढ़ने लगे। ये गवर्मेंट हाउस का अंत था। ये पूर्वी पाकिस्तान की आखिरी सरकार का भी अंत था।"( गाविन यंग, वर्लड्स अपार्ट, ट्रेवेल्स इन वार एंड पीस)
 
इस हमले के तुरंत बाद गवर्नर मलिक ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ इंटरकॉन्टिनेंटल होटल का रुख़ किया। इस हमले ने युद्ध के समय को तो कम किया ही और दूसरे विश्व युद्ध में बर्लिन की तरह गली गली में लड़ने की नौबत भी नहीं आई।
 
दो दिन बाद ही पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए और एक मुक्त देश के तौर पर बांग्लादेश के अभ्युदय का रास्ता साफ़ हो गया। इस युद्ध में असाधारण वीरता दिखाने के लिए विंग कमांडर एसके कौल को महावीर चक्र और विंग कमांडर बीके बिश्नोई और हरीश मसंद को वीर चक्र प्रदान किए गए।

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