यूपी में कोरोनाः नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं लखनऊ में हालात?

BBC Hindi
गुरुवार, 30 जुलाई 2020 (07:26 IST)
दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी संवाददाता
27 साल के अंकित ने कई अस्पतालों का चक्कर काटने के बाद एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया। एंबुलेंस दो घंटे तक उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित केजीएमयू मेडिकल कॉलेज के बाहर खड़ी रही लेकिन कोई डॉक्टर उसे देखने नहीं आया।
 
गुरुवार को यूपी की राजधानी लखनऊ में स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में हुई अंकित की मौत अपने आप में पहली नहीं है। इस तरह की कई और घटनाएं हो चुकी हैं।
 
अंकित के भाई बबलू ने रुआंसी आवाज़ में बीबीसी से कहा, 'मेरे भाई को एक के बाद एक अस्पताल में टहलाते रहे। किसी ने उसे छुआ तक नहीं। अगर उसे इलाज मिलता तो वो बच जाता।'
 
बबलू कहते हैं, 'मेरा भाई चलकर एंबुलेंस में बैठा था। रात नौ बजे से सुबह चार बजे तक एंबुलेंस ने कई अस्पतालों के चक्कर काटे, किसी ने भर्ती नहीं किया। इंटीग्रल और एरा अस्पताल से टहलाए जाने के बाद उसे सुबह चार बजे के क़रीब टीएसएस अस्पताल में भर्ती किया गया। जहां से उसे केजीएमयू के लिए रेफ़र कर दिया गया। केजीएमयू में भी उसे भर्ती नहीं किया गया। उसने अस्पताल के बाहर ही तड़प तड़प कर दम तोड़ दिया। अगर उसे मदद मिलती तो वो ज़रूर बच जाता।'
 
हाल के दिनों में राजधानी लखनऊ में कोरोना वायरस को लेकर हालात बेहद गंभीर हुए हैं। मंगलवार तक लखनऊ में संक्रमण के 6867 मामले सामने आ चुके थे जिनमें से 3716 एक्टिव केस हैं।
 
एक सप्ताह पहले 21 जुलाई तक लखनऊ में 4503 मामले सामने आए थे जिनमें से 2861 एक्टिव केस थे। इसी दिन सरकार ने उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमितों के होम आइसोलेशन को मंज़ूरी दी थी।
 
ये संकेत था कि अब यूपी में हालात सरकार के नियंत्रण के बाहर हो रहे हैं। अगर बात राजधानी लखनऊ की करें तो मंगलवार तक पाँच सौ से अधिक संक्रमित होम आइसोलेशन में हैं जिससे पता चलता है कि राजधानी में कोरोना संक्रमितों के लिए अस्पतालों में बेड की कमी है।
 
लखनऊ के चीफ़ मेडिकल ऑफ़िसर डॉ। राजेंद्र प्रसाद सिंह ने बीबीसी से बात करते हुए स्वीकार किया कि राजधानी के अस्पतालों में 'बिस्तरों की थोड़ी कमी तो है।'
 
राजेंद्र प्रसाद ने रविवार को ही सीएमओ का कार्यभार संभाला है और उनका कहना है कि वो 'चुनौतीपूर्ण हालात से निबटने के लिए हर संभव कोशिश और तैयारी कर रहे हैं।'
 
प्रशासन ने कोरोना से लड़ने के लिए कई स्तर पर पहल की है। लेकिन अभी तक बहुत कामयाबी नहीं मिल सकी है।
 
प्रशासन ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सप्ताहांत का लॉकडाउन लागू किया है। साथ ही कंटेनमेंट ज़ोन बनाए हैं। इसके अलावा लखनऊ के चार थानों इंदिरानगर, गाज़ीपुर, सरोजनी नगर और आशियाना क्षेत्र में 20 जुलाई से 27 जुलाई के बीच एक सप्ताह का पूर्ण लॉकडाउन भी लगाया था। इसके अलावा तीन और थाना क्षेत्रों में पूर्ण लॉकडाउन लगाने पर भी विचार किया गया है। प्रशासन ने लखनऊ में टेस्टिंग भी तेज़ की है। अब औसतन प्रतिदिन पाँच हज़ार से अधिक टेस्ट लखनऊ में हो रहे हैं। ज़िला प्रशासन के अनुसार अब तक एक लाख 30 हज़ार टेस्ट हो चुके हैं। हज हाउस को एक हज़ार बेड का अस्पताल भी बना दिया गया है।
 
हाल ही में समाचार चैनल भारत समाचार के पत्रकार वीरेंद्र सिंह की एक रिपोर्ट सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें उन्होंने लखनऊ की स्वास्थ्य सेवाओं की आंखों देखी बयान की थी।
 
वीरेंद्र सिंह ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, 'कोरोना से हालात बेक़ाबू हैं, दावे बड़े-बड़े किए जा रहे हैं लेकिन रिज़ल्ट ज़ीरो है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लोगों को बेड नहीं मिल पा रहे हैं। ज़िलाधिकारी लोगों का फ़ोन नहीं उठाते हैं। मरीज़ों को आठ-आठ घंटे एंबुलेंसों में बिठाकर अस्पतालों में घुमाया जाता है लेकिन बिस्तर नहीं मिलते हैं।'
 
लखनऊ में स्वास्थ्य सेवाओं की क्या स्थिति है ये जानकारी लेने के लिए हमने भी लखनऊ के ज़िलाधिकारी से संपर्क करने की कई बार कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका।
 
लखनऊ में नवभारत टाइम्स के लिए स्वास्थ्य से जुड़ी ख़बरें करने वाले पत्रकार ज़ीशान हुसैन ने बीबीसी से बात करते हुए कहा है कि प्रशासन ने बड़े-बड़े दावे किए थे जिनकी पोल अब बड़ी तादाद में मामले सामने आने पर खुल रही है।
 
ज़ीशान कहते हैं, 'लखनऊ में स्वास्थ्य सेवाओं की ज़मीनी हक़ीक़त प्रदेश सरकार के दावों से ही खुल जाती है। सरकार ने एक महीना पहले कहा था कि लखनऊ में पाँच हज़ार बेड तैयार हैं। लखनऊ में अब 3700 से अधिक सक्रिय केस हैं। जब बेड की क़िल्लत शुरू हुई थी तो दो ही हज़ार मरीज़ थे। यदि पाँच हज़ार बेड उपलब्ध थे तो फिर दो हज़ार मामलों पर ही लोगों को बेड मिलने में दिक्क़त क्यों होने लगी थी? इसी से सरकार के दावों की पोल खुल जाती है कि बेड थे ही नहीं, बस दावे किए जा रहे थे।'
 
जून की शुरुआत में जब राजधानी दिल्ली और महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे थे और अस्पतालों में बेड की क़िल्लत की ख़बरें आ रहीं थीं तब यूपी में सरकार दावा कर रही थी कि उसकी तैयारी पूरी है और हालात नियंत्रण में हैं। 8 जून को लखनऊ में कुल संक्रमितों की संख्या सिर्फ़ 468 थी।
 
लेकिन अब जब टेस्ट की संख्या बढ़ने के साथ मामलों की तादाद बढ़ रही है तो सरकार की तैयारियां और दावे बौने साबित हो रहे हैं।
 
अधूरी और अपर्याप्त तैयारी
तो क्या सरकार ने पर्याप्त तैयारी नहीं की थी। इस सवाल पर ज़ीशान कहते हैं, 'कुछ जगहों पर बेहद सतही तैयारी की गई। उदाहरण के तौर पर लखनऊ के हज हाउस में एक हज़ार बेड की व्यवस्था की गई। कहने को यहां एक हज़ार बेड हैं, लेकिन कितने बेड पर डॉक्टर उपलब्ध हैं, ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध है, इसका कोई ब्यौरा नहीं दिया गया है क्योंकि वहां सिर्फ़ कमरों में बिस्तर डालकर उसे अस्पताल घोषित कर दिया गया है। लेकिन जब अस्पताल में डॉक्टर ही नहीं होंगे, सुविधाएं ही नहीं होंगी तो इलाज कौन करेगा? तैयारी यही है कि बस बिस्तर डाल दिए गए हैं।'
 
ज़ीशान के मुताबिक़ राजधानी लखनऊ के लेवल थ्री अस्पतालों में जहां गंभीर मरीज़ों को ले जाया जा रहा है, हालात बेहद चुनौतीपूर्ण हैं।
 
आईसीयू उपलब्ध ना होने की वजह से गंभीर मरीज़ों को भी एल1 अस्पतालों में भेजा जा रहा है।
 
मदद के लिए 112 कॉल कर रहे हैं लोग
मेडिकल सेवाओं पर किस हद तक दबाव है इसे इससे भी समझा जा सकता है कि अस्पताल के बाहर या अंदर तक से मरीज़ आपात सेवा 112 को डायल करके मदद माँग रहे हैं।
 
उत्तर प्रदेश में 112 सेवा के तहत आपात स्थिति में लोगों तक पुलिस मदद पहुंचाई जाती है। अब इसमें आग और स्वास्थ्य से जुड़ी आपात स्थितियों को भी शामिल कर लिया गया है।
 
इंटीग्रल कॉलेज के बाहर तड़प रही एक मरीज़ को मदद देने के लिए एक व्यक्ति को 112 को टैग करके ट्वीट करना पड़ा जिसके बाद 112 सेवा ने हस्तक्षेप किया।
 
112 का काम आपात स्थिति में फँसे लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने का है। लेकिन कोई अस्पताल से ही फ़ोन करे तो 112 क्या करे?
 
यूपी 112 सेवा के एडीजी असीम कुमार अरुण कहते हैं, 'लोग हमें आपात स्थिति में कॉल करते हैं, हमारा मक़सद उन्हें तुरंत मदद पहुंचाना होता है। कई बार अस्पताल से भी फ़ोन आते हैं, हम अधिकारियों से बात करके मदद करने की कोशिश करते हैं।'
 
कोरोना महामारी के समय में 112 सेवा पर भी दबाव बढ़ा है। असीम अरुण के मुताबिक़ इन दिनों प्रदेश भर से स्वास्थ्य से जुड़े क़रीब दो हज़ार कॉल ऐसे आते हैं जिन पर 112 एक्शन लेती है। यदि आने वाले कुल कॉल्स की बात करें तो ये संख्या इससे कहीं ज़्यादा है।
 
वो बताते हैं, 'कोरोना से जुड़े कॉल्स भी बढ़े हैं। हमारे कार्यक्षेत्र में एंबुलेंस सेवा देना आता है। हम स्थानीय अधिकारियों से को-आर्डिनेट करके स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की कोशिश करते हैं।'
 
लखनऊ की ही सामाजिक कार्यकर्ता सुमन रावत कहती हैं, 'हमारी संस्था की वाइस प्रेसिडेंट का हमने कोरोना टेस्ट करवाया था क्योंकि उनके इलाक़े में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए थे। तीन सप्ताह बाद भी उनके टेस्ट का नतीजा हमें पता नहीं चला है।'
 
वो कहती हैं, 'कई बार लोग हमसे अस्पताल में भर्ती कराने के लिए मदद माँगते हैं, हम कोशिश तो करते हैं लेकिन हर बार मदद नहीं कर पाते। अंकित तड़पते-तड़पते एंबुलेंस में मर गया, हमने काफ़ी कोशिश की लेकिन उसकी जान नहीं बचा सके।'
 
सीएमओ का तबादला
स्थानीय मीडिया में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की ख़बरें लगातार प्रकाशित होने के बाद लखनऊ के सीएमओ नरेंद्र अग्रवाल का शनिवार को तबादला कर दिया गया था।
 
लेकिन क्या ज़मीनी हालात कुछ बदले हैं? बीबीसी से बात करते हुए भारत समाचार के पत्रकार वीरेंद्र सिंह ने कहा, 'मीडिया में रिपोर्टें आने के बाद कुछ बदलाव तो हुआ है। प्रशासन पहले से अधिक ज़िम्मेदार हुआ है। वरिष्ठ अधिकारियों ने ज़मीनी हक़ीक़त की समीक्षा की है और अस्पतालों में बेड बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।'
 
वो कहते हैं, 'अब अस्पतालों में ऑक्सीजन की व्यवस्था भी कराई जा रही है और किस अस्पताल में क्या उपकरण हैं या नहीं हैं इसकी समीक्षा भी की जा रही है। ज़िला अधिकारी भी अब निरीक्षण कर रहे हैं।'
 
सवाल ये भी उठता है कि क्या सरकार ज़िम्मेदार कोशिशें कर रही है। पत्रकार वीरेंद्र सिंह कहते हैं, "कोई भी सरकार जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनी गई है वो अपन नागरिकों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकती है। सरकार कोशिश तो कर रही है लेकिन सरकार की कोशिश जनसंख्या के अनुपात में बहुत छोटी है। यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से जर्जर थी।"
 
रविवार को ही सीएमओ का कार्यभार संभालने वाले डॉ। आरपी सिंह के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती सभी मरीज़ों को बेड उपलब्ध कराने की है।
 
वो कहते हैं, 'शासन से हमें संसाधन मिलने का भरोसा मिला है। हम चीज़ों को बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं। बीते दो दिनों से टेस्ट के अनुपात में संक्रमण के मामले भी कम हुए हैं।'
 
वो कहते हैं, 'दूर एक रोशनी हमें दिख रही है और हमें आशा है कि हम इस संकट से निबट लेंगे। इस लड़ाई में हमें जनता के सहयोग की ज़रूरत है।'
 
आंकड़े छुपा रहा है प्रशासन
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में सही और सटीक जानकारियों की अहम भूमिका है। लोगों को पता होना चाहिए कि स्वास्थ्य सेवाओं की क्या स्थित है और उनके आसपास संक्रमण के कितने मामले हैं।
 
लेकिन लखनऊ में इन दिनों ये जानकारियां आम लोगों को नहीं मिल पा रही हैं। पहले प्रशासन नए संक्रमित मरीज़ों की इलाक़ावार संख्या जारी करता था। कंटेनमेंट ज़ोन की सूची भी जारी की जाती थी। लेकिन बीते एक सप्ताह से ये जानकारियां प्रशासन की ओर से जारी नहीं की जा रही हैं।
 
इस सवाल पर सीएमओ आरपी सिंह कहते हैं, 'फिर से सूचियां जारी करने पर काम चल रहा है। ये आंकड़े हम आज से देना शुरू कर रहे हैं।'
 
हालांकि ये जानकारियां आम जनता के लिए सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं हैं। लखनऊ का ज़िला प्रशासन भी अपने सोशल मीडिया पर ये सूची जारी नहीं कर रहा है जबकि प्रदेश के अन्य ज़िलों में ये जानकारियां सोशल मीडिया के ज़रिए भी आम लोगों से साझा की जा रही हैं। इसकी वजह जानने के लिए हमने लखनऊ के ज़िलाधिकारी अभिषेक प्रकाश से संपर्क किया लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल सकी।
 
दिल्ली से लें सबक
यदि यूपी की राजधानी लखनऊ की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से तुलना करें तो दिल्ली में इस समय 11 हज़ार से कुछ अधिक एक्टिव केस हैं और पिछले एक महीने के मुक़ाबले 42 फ़ीसदी अधिक बेड हैं। राजधानी दिल्ली में 15 हज़ार बेड कोरोना मरीज़ों के लिए आरक्षित हैं। दिल्ली सरकार की कोरोना एप के मुताबिक़ 2835 कोरोना संक्रमित अस्पतालों में हैं।
 
26 जून को दिल्ली में 3460 नए मामले सामने आए थे और तब अस्पताल में बिस्तरों की क़िल्लत थी। दिल्ली सरकार ने बिस्तरों की संख्या तीन गुणा बढ़ाने और आकुपेंसी रेट 33 फ़ीसदी से कम करने का लक्ष्य रखा था। अब दिल्ली में स्थिति इस लिहाज़ से नियंत्रण में है।
 
यूपी की राजधानी लखनऊ में अब ऐसे ही हालात हैं जैसे दिल्ली में एक महीना पहले थे। दिल्ली के सबक़ यूपी के काम आ सकते हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

tirupati laddu पर छिड़ी सियासी जंग, पशु चर्बी के दावे पर तेदेपा-वाईएसआरसीपी आमने-सामने

Kolkata Doctor Case : जूनियर डॉक्‍टरों ने खत्‍म की हड़ताल, 41 दिन बाद लौटेंगे काम पर

कटरा चुनावी रैली में कांग्रेस-नेकां पर गरजे PM मोदी, बोले- खून बहाने के पाकिस्तानी एजेंडे को लागू करना चाहता है यह गठबंधन

Mangaluru : 2 सिर और 4 आंख वाला दुर्लभ बछड़ा पैदा हुआ, देखने के लिए उमड़ा हुजूम

वन नेशन वन इलेक्शन में दक्षिण भारत पर भारी पड़ेगा उत्तर भारत?

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

iPhone 16 सीरीज लॉन्च होते ही सस्ते हुए iPhone 15 , जानिए नया आईफोन कितना अपग्रेड, कितनी है कीमत

Apple Event 2024 : 79,900 में iPhone 16 लॉन्च, AI फीचर्स मिलेंगे, एपल ने वॉच 10 सीरीज भी की पेश

iPhone 16 के लॉन्च से पहले हुआ बड़ा खुलासा, Apple के दीवाने भी हैरान

Samsung Galaxy A06 : 10000 से कम कीमत में आया 50MP कैमरा, 5000mAh बैटरी वाला सैमसंग का धांसू फोन

iPhone 16 Launch : Camera से लेकर Battery तक, वह सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं

अगला लेख
More