धड़ल्ले से चुराए और बेचे जा रहे हैं नवजात

Webdunia
शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016 (12:13 IST)
- सौतिक बिस्वास 
 
कोलकाता में डॉक्टरों ने कानन सरकार से कह दिया कि उनकी नवजात बेटी मर गई। इस घटना के दो साल हो गए, लेकिन सरकार को यकीन है कि वह बच्ची आज भी जीवित है। साल 2014 के जुलाई में सफ़ेद कपड़ों में कस कर लपेटा गया शव कानन को सौंप दिया गया था। वे उस शहर से 100 किलोमीटर दूर उत्तर 24 परगना के अपने गांव लौट गईं और हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक़ उसका अंतिम संस्कार कर दिया।
अपने गांव में बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "अब मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि मेरी नवजात बेटी चुरा कर बेच दी गई। मुझे किसी और का मरा बच्चा थमा दिया गया।"
 
सरकार को शक बीते महीने हुआ जब बच्चों को बेचने के गोरखधंधा का पर्दाफाश हुआ। खुफ़िया विभाग के लोगों ने कोलकाता से 80 किलोमीटर दूर बादुड़िया में एक नर्सिंग होम पर छापा मार कर बिस्कुट के डिब्बों में ले जा रहे तीन बच्चों को बरामद किया। कुछ दिनों बाद कोलकाता से 17 किलोमीटर दूर मानसिक रूप से बीमार एक शख़्स के घर से एक से नौ महीने के उम्र की दस बच्चियां बरामद की गईं।
 
मुफ़्त क्लीनिक और बच्चों का स्कूल चलाने वाले एक ईसाई दातव्य संस्था के यहां से कब्र खोद कर दो बच्चों के कंकाल निकाले गए। ख़ुफ़िया विभाग का मानना है कि ये बच्चे रास्ते में ही मर गए होंगे और उन्हें यहीं दफ़ना दिया गया होगा। पुलिस ने ज़ल्द ही बच्चे बेचने वाले एक गिरोह का पता लगाने का ऐलान किया। सीआईडी प्रमुख राजेश कुमार ने कहा, "लगता है इनका कामकाज काफ़ी बड़ा है। हमें शक है कि 45-50 बच्चों को चुरा कर संतानहीन दंपतियों को बेच दिया गया।"
इसके अलावा पुलिस ने दस लड़कियों और तीन लड़कों को बचाया। तीन नर्सिंग होम बंद कर दिए गए और 20 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। इनमें नर्स, दाई, बिचौलिए और गोद लेने के फ़र्ज़ी सर्टिफ़िकेट जारी करने वाले क्लर्क भी शामिल हैं। तीन डॉक्टरों को गिरफ़्तार किया गया। इनमें एक डॉक्टर का नाम वही है जिसने सरकार का प्रसव कराया था।
 
कानन सरकार के पति आशीष ने टेलीविज़न चैनल पर जब यह ख़बर देखी, तो उन्होंने कोलकाता फ़ोन किया, सीआईडी के लोगों से मिले और अंत में उस डॉक्टर की शिनाख़्त की। लेकिन उस डॉक्टर का कहना है कि वह सिर्फ़ उनके साथ नर्सिंग होम तक गया था ताकि उनके बच्चे का बेहतर इलाज किया जा सके।
 
उस डॉक्टर के पास डॉक्टरी की कोई औपचारिक क्वालिफ़िकेशन नहीं है, लेकिन वह सिर्फ़ 3,500 रुपए में प्रसव करवाता है। यह निहायत ही सस्ता है। कानन का कहना है कि उन्हें डाक्टरों के बर्ताव की वजह से उन पर शक है। बच्चे के जन्म के बाद ख़ुद को बाल रोग विशेषज्ञ कहने वाले एक शख़्स ने कानन से कहा कि उनके बच्चे के दिल में छेद और दूसरी गड़बड़ियां है। लेकिन इसके पहले उस बच्चे की कोई जांच नहीं की गई। कानन पर किए गए पांच अल्ट्रासाउंड जांच में बच्चे में कोई गड़बड़ी होने की बात नहीं पाई गई थी।
 
कानन ने बीबीसी से कहा, "जब मै बच्ची को लेकर कोलकाता जा रही थी, वह बच्ची बिल्कुल सामान्य थी। वह रो रही थी, हाथ पैर फेंक रही थी, मुस्कुरा रही थी। मेरी समझ मे नहीं आ रहा था कि कोई इस बच्ची को बीमार क्यों कह रहा है।"
कोलकाता में जो कुछ हुआ, उससे संदेह और बढ़ गया। पहले एक बाल रोग विशेषज्ञ ने बच्ची की जांच कर कहा कि "बच्ची में कुछ भी गड़बड़ नहीं है।" उसके बाद वह फ़ैमिली डॉक्टर अंदर गया। वह बाहर निकला तो उसके साथ एक दूसरा शख़्स था, जिसने कहा कि बच्चे की जांच ज़रूरी है।
 
परिवार के लोग कानन सरकार और उनकी बच्ची को अस्पताल में ही छोड़ घर लौट आए। रात में उन्हें फ़ोन पर बताया गया कि बच्ची की मौत हो गई। सरकार के भाई उज्ज्वल बल ने कहा, "वह बच्चा काफ़ी फूला हुआ था। मुझे अपनी बहन के बच्चे की तरह नहीं लगा।"
परिवार के लोगों के मुताबिक़, डॉक्टर को कई सवालों के जवाब देने होंगे।
 
कानन सरकार कई सवाल एक साथ करती हैं। उन्होंने सवाल उठाया, "कोलकाता में डॉक्टरों ने क्यों कहा कि बच्चा बिल्कुल ठीक है? डॉक्टरों ने जब कहा कि बच्चे को दिल की बीमारी है, तब उन्होंने इसकी जांच क्यों नहीं की? यदि बच्चा वाकई बीमार था तो वह रास्त पर बिल्कुल ठीक कैसे था?"
 
सीआईडी विभाग के कुमार ने कहा, "वह डॉक्टर निश्चित रूप से हमारी निगरानी में है। उनके बारे में हमें इसी तरह की एक और शिकायत मिली है। पूरा मामला ही संदेहजनक है।" इस घटना ने भारत में होने वाले बच्चों को बेचे जाने से जुड़े कई गंभीर मुद्दे सामने ला दिए हैं।
 
देश में गोद लेने के नियम काफी कड़े हैं। पूरे देश में क़ानूनी तौर पर गोद देने के सिर्फ़ 3,011 केंद्र हैं। वहां 12,000 दंपति गोद लेने की कतार में हैं। ऐसे में उन्हें ग़ैरक़ानूनी ढंग से बच्चे खरीदने में सहूलियत होती है। इस गोरखधंधे से यह बात भी सामने आती है कि घनघोर ग़रीबी की वजह से कई मांएं बच्चा बेचने को मजबूर हो जाती है। इसी तरह अनब्याही माओं को दलाल ठग लेते हैं।
 
इससे परिवार में पहले से मौजूद रंग और लिंग आधारित भेद भाव भी सामने आता है। गोरे बच्चों की सबसे अधिक-सात लाख रुपए तक, कीमत होती है। काली लड़कियों के लिए कम क़ीमत पैसे मिलते हैं। कोलकाता में बरामद की गई सभी 10 बच्चियां काली थीं। जगह जगह कुकुरमुत्ते की तरह उग आए नर्सिंग होम और क्लीनिक में डॉक्टर और दूसरे लोग ग़रीबों की ताक में रहते हैं।
 
कानन अपने गांव लौट चुकी हैं। उन्हें यकीन है कि एक दिन वे ज़रूर अपनी बेटी से मिलेंगी। वे कहती हैं, "मेरी नौ साल की बड़ी बेटी पूछती रहती है कि उसकी छोटी बहन कब घर लौटेगी। मुझे भी इस सवाल का जवाब चाहिए।"

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