ओमिक्रॉन से बचाव में बूस्टर डोज़ कितना कारगर है?

BBC Hindi
बुधवार, 15 दिसंबर 2021 (15:21 IST)
जेम्स गैलाघर, स्वास्थ्य एवं विज्ञान संवाददाता
कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन में बड़े पैमाने पर म्युटेशन है जो कि कोविड वायरस से सुरक्षित रखने वाली वैक्सीन के असर को भी प्रभावित करता है।
 
कोरोना की कुछ वैक्सीन की दो ख़ुराक भी हमें ओमिक्रॉन के संक्रमण से नहीं बचा सकती है। हालांकि इस वैक्सीन ने गंभीर रूप से बीमार होने और अस्पताल में भर्ती होने के ख़तरे को कम ज़रूर किया है। जो भी वैक्सीन बनी हैं वो दो साल पहले सामने आए वायरस के पहले रूप से लड़ने के लिए विकसित की गई थीं।
 
अब सवाल यह उठता है कि उन असली वैक्सीन के तीसरे या 'बूस्टर' डोज़ से सुरक्षा मिल सकती है या ओमिक्रॉन ने पहले ही वैक्सीन की सुरक्षा को तोड़ दिया है।
 
यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि बूस्टर डोज़ हमारे इम्यून सिस्टम के लिए पहले वाली स्थिति की तरह ही नहीं है। हालांकि बूस्टर के लिए वैक्सीन की मात्रा समान हो सकती है। बूस्टर डोज़ के बाद आपको ऐसी सुरक्षा मिलती है जो काफ़ी विस्तृत होती है और इस तरह की सुरक्षा पहले नहीं रही होगी।
 
कोविड स्कूल
कोरोना वायरस से लड़ने के बारे में आपके इम्यून सिस्टम को सीखना होगा। पहला विकल्प यह हो सकता है कि आप ख़ुद से पता लगा सकें कि आपको वायरस ने पकड़ लिया है। हालांकि, इसके बारे में ग़लत पता लगाने के ख़तरे भी हैं जिससे आप गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं।
 
वैक्सीन एक स्कूल की तरह से है जो आपके इम्यून सिस्टम को एक सुरक्षित वातावरण देते हुए कोविड की शिक्षा देता है। पहली डोज़ प्राथमिक स्कूल की शिक्षा है जो बुनियादी बातों की सीख देती है।
 
आपकी दूसरी और तीसरी डोज़ आपके इम्यून सिस्टम को माध्यमिक स्कूल और फिर विश्वविद्यालय में भेजती है जहां पर नाटकीय रूप से उसकी समझ और गहरी होती है। यह बार-बार प्राथमिक स्कूल को दोहराने जैसा बिल्कुल नहीं है।
 
नॉटिंघम विश्वविद्यालय के वायरोलॉजिस्ट प्रोफ़ेसर जॉनथन बॉल बूस्टर डोज़ पर कहते हैं, "इम्यून सिस्टम को इसके बाद वायरस की गहरी जानकारी और समझ बन जाती है।"
 
उन्होंने कहा कि सभी बातें ओमिक्रॉन के म्यूटेशन और उसके रूप बदलने को लेकर हो रही हैं जबकि वायरस और उसके वेरिएंट के लिए उच्च तरीक़े से प्रशिक्षित इम्यून सिस्टम एक 'अविश्वसनीय रूप से कठिन और शत्रुतापूर्ण वातावरण' प्रदान करता है।
 
इस शिक्षा से सबसे अधिक लाभ एंटीबॉडीज़ को मिलता है। ये एक चिपचिपे प्रोटीन हैं जो कि ख़ुद को कोरोना वायरस के इर्द-गिर्द लपेट देते हैं।
 
वायरस को निष्क्रिय करने वाली ये एंटीबॉडीज़ वायरस से चिपक जाती हैं ताकि वो आपकी कोशिकाओं पर हमला न कर सके। जबकि दूसरी एंटीबॉडीज़ 'वायरस को मारने का' संकेत भेजती रहती हैं।
 
लेबोरेट्री में लगातार होते प्रयोग और दुनिया के आंकड़े दिखाते हैं कि कोविड वैक्सीन की दो ख़ुराक़ के बाद आपके अंदर वायरस को मारने वाली एंटीबॉडीज़ पाई जाती हैं जो कि ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ कम प्रभावी हैं।
 
इंपीरियल कॉलेज लंदन के प्रतिरक्षा विज्ञानी प्रोफ़ेसर डेनी ऑल्टमैन कहते हैं कि आपके पास अब 'वास्तव में कुछ भी नहीं है' और आप 'संक्रमण के ख़तरे के दायरे में हो।' इसलिए अब वापस स्कूल लौटने की ज़रूरत है।
 
वैक्सीन की हर ख़ुराक आपके प्रतिरक्षा तंत्र या इम्यून सिस्टम में एंटीबॉडी बनने के अगले दौर की शुरुआत कर देती है। यह बेहतर एंटीबॉडीज़ बनाती है जो कि वायरस को मज़बूती से अपनी गिरफ़्त में ले लेती है। यह एक प्रक्रिया है जो धीरे-धीरे परिपक्वता ला देती है।
 
प्रोफ़ेसर ऑल्टमैन कहते हैं कि 'समय के साथ आपकी एंटीबॉडीज़ और बेहतर तरीक़े से फ़िट हो रही हैं और अब यह विशेषज्ञता और बेहतर सूझ-बूझ हासिल कर रही हैं।'
 
अगर एंटीबॉडीज़ कोरोना वायरस को और मज़बूती से पकड़ने में सफल होती हैं तो फिर ओमिक्रॉन वेरिएंट के लिए मुश्किल होगा कि वो इससे बच सके। नया वायरस काफ़ी म्यूटेशन के साथ है, लेकिन वो अभी भी कोरोना वायरस ही है और उसके कई हिस्सों में कोई तब्दीली नहीं हुई है।
 
टीकाकरण के अगले चरण से इम्यून सिस्टम को और नई एंटीबॉडी मिलेंगी जिससे वो वायरस पर नए तरीक़े से हमला करने के रास्ते भी तलाश लेगी।
 
नंबरों का खेल
ये सिर्फ़ एंटीबॉडीज़ की गुणवत्ता को लेकर ही नहीं है बल्कि उसकी मात्रा भी लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है।
 
इंपीरियल कॉलेज के प्रोफ़ेसर चार्ल्स बंघम कहते हैं, "आपको यह बहुत अधिक मिलती है तो ख़ून में जाकर यह एंटीबॉडीज़ की मात्रा को बढ़ा देती है और हम यह नहीं जानते हैं कि यह कब तक रहने वाली है, लेकिन आप जितनी बार टीकाकरण कराते हैं आपके इम्यून की क्षमता और अधिक समय के लिए बढ़ जाती है।"
 
एक जैसे शोधों से इसका प्रभाव साफ़ है कि दो डोज़ ओमिक्रॉन के ख़िलाफ़ कमज़ोर हैं। बूस्टर डोज़ के बाद किसी भी कोविड लक्षण के ख़िलाफ़ सुरक्षा में 75% तक की सुरक्षा देखी गई है।
 
बूस्टर डोज़ हमारे इम्यून सिस्टम को भविष्य के किसी भी वेरिएंट के ख़िलाफ़ शरीर को एक बढ़त ज़रूर देती है।
 
बी-सेल्स हमारे शरीर का वो भाग हैं जो बड़े पैमाने पर एंटीबॉडीज़ पैदा करते हैं। बूस्टर डोज़ के बाद यह बेहद चिपचिपे और अधिक संशोधित एंटीबॉडीज़ को पैदा करते हैं। इनमें से कई कोरोना वायरस का पता लगा सकते हैं जबकि बाक़ी कम विकसित और लचीले होते हैं।
 
प्रोफ़ेसर बॉल कहते हैं, "ये विभिन्न दिशाओं में जा सकते हैं और नए वेरिएंट आने की दशा में यह नई एंटीबॉडीज़ पैदा भी कर सकते हैं।"
 
टी-सेल्स भी होते हैं जो कि बूस्टर डोज़ के बाद कोविड वायरस के ऊपर प्रचुर मात्रा में हमला करने में बेहतर हैं। टी-सेल्स वायरस को पकड़ने के लिए अलग तरीक़ों का इस्तेमाल करते हैं और यह हमारे शरीर का निरीक्षण करते हुए उन लक्षणों को देखते हैं कि कहीं हमारा कोई सेल कोविड से संक्रमित तो नहीं है। टी-सेल्स कोरोना वायरस के उन अंशों का पता लगाता है जिनको ख़ुद को बदल पाने में मुश्किल होती है।
 
ओमिक्रॉन जब हमारे इम्यून सिस्टम पर हमला करता है तो वैक्सीन की हर ख़ुराक़ और यहां तक की हर संक्रमण हमारे शरीर को रक्षा के लिए इसके ख़िलाफ़ कई हथियार मुहैया कराता है। इन सबसे यह पता चलता है कि वैक्सीन हमें गंभीर रूप से बीमार होने से बचाती है।
 
प्रोफ़ेसर बंघम कहते हैं, "एक वायरस के ख़िलाफ़ इम्यूनिटी कभी भी एक सी नहीं हो सकती है। आप हमेशा दोबारा संक्रमित हो सकते हैं और आपको दोबारा संक्रमित होना होगा ताकि वायरस साधारण बना रहे। आपको मालूम भी नहीं चलेगा कि आप संक्रमित हैं या नहीं।"

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