ज्योतिष पूर्ण विज्ञान है क्योंकि हमारे सनातन संस्कृति का आधार वेद है, जो पूर्ण विज्ञान है और ज्योतिष वेदों का छठा अंग माना जाता है...। ज्योतिष दो शब्दों ज्योति + अष्क से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है ज्योति पिंड और जो ज्ञान इन ज्योति पिंडों के जड़ चेतन के प्रभाव का अध्ययन करता है उसे ज्योतिष विज्ञान कहते है।
सबसे पहले इसी विज्ञान ने ब्रह्मांड के बारे में नक्षत्रों, ग्रहों, राशियों के बारे में विस्तार से बताया। उसका गणितीय संयोजन प्रस्तुत किया, जो आज के खगोल विज्ञान का आधार बना। पृथ्वी पर होने वाली ऋतुओं, तिथि, समय, अंक, समुद्र में ज्वार-भाटे, सूर्य-चन्द्र ग्रहण या धरती पर पर होने वाले सृजन, विकार या विनाश का सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया।
ज्योतिष पर मुंह बनाने वाले मूढ़मति लोगों को सूर्य सिद्धांत का पढ़ लेना चाहिए, जिसमें न केवल पृथ्वी बल्कि सौरमंडल के ग्रहों का नियमन करने वाली गतियों, उनके प्रभाव आदि का विस्तार वैज्ञानिक आधार पेश किया गया है। लोग जिस न्यूटन का नाम लेते नहीं थकते उसे भास्कराचार्य ने पहले ही सिद्ध कर दिया था।
एक बार आप आर्यभट्ट, वराहमिहिर देश में बनाई वेधशालाओं के दर्शन ही कर लें, तो ज्योतिष गणना की सटीकता और भारतीय विज्ञान के मुरीद हो जाओगे। आर्यभट्ट और वराहमिहिर ने ज्योतिष का संवर्धन किया और अपने आधार से ठोस आधार प्रदान किए। 'भास्कराचार्य' ने न्यूटन से बहुत पहले ही गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रतिपादन कर दिया था, जिसे उन्होंने अपने ग्रंथ 'सिद्धांतशिरोमणि' में प्रस्तुत किया है।
'आकृष्ट शक्ति च महीतया, स्वस्थ गुरं स्वभिमुखं स्वंशवत्या',
अर्थात् पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है, जिससे वह अपने आस-पास की वस्तुओं को आकर्षित करती है।
आज से करीब दो हजार साल पहले वराहमिहिर ने 27 नक्षत्रों और 7 ग्रहों तथा ध्रुव-तारे का को वेधने के लिए एक बडे़ जलाशय में स्तंभ का निर्माण करवाया था, इसकी चर्चा 'भागवतपुराण' में है, स्तंभ में सात ग्रहों के लिए सात मंजिलें और 27 नक्षत्रों के लिए 27 रोशनदान काले पत्थरों से निर्मित करवाए थे, इसके चारों तरफ 27 वेधशालाएं मंदिरों के रूप में बनी थीं।
प्राचीन भारतीय शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने वेधशालाओं को तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवा दी थी और अंग्रेजी शासन ने इस स्तंभ के ऊपरी भाग को तुड़वा दिया था, आज भी वह 76 फुट शेष है। यह वहीं दिल्ली की प्रसिद्ध 'कुतुबमीनार' है, जिसे सभी जानते है।
ज्योतिष की सार्थकता और सटीकता पर आंखे बंद करके विरोध करना अज्ञानी या अर्द्धज्ञानी का काम है। इसके पहले आपको वेदों, पुराणों, ज्योतिषशास्त्र का समझें। ऐसे लोग प्रज्ञा अपराध के साथ गुरु अपराध के भागी भी है, जो खुद समय लेकर परेशानी आने पर ज्योतिष गुरु के यहां नतमस्तक होते है और सार्वजानिक जीवन में विरोध करके खुद शालीन और ज्ञानी बताते है। ये अपने गुरु ज्ञान का अपमान है।
खास बात जो लोग ज्योतिष पर विश्वास नहीं करते उनको अधिकार भी नहीं की पंचांग की गणना के आधार पर निर्धारित किए जाने वाले होली, दीपावली, बच्चों के नाम, शादियों के मुहूर्त आदि को मानें।
अंत में एक ज्योतिष विद्वान द्वारा कुछ साल पहले से किसी के बारे में मंत्री बनने की भविष्यवाणी की जाना और इस बात का सत्य होना ज्योतिष की प्रमाणिकता को दर्शाता है, फिर भी शास्त्र कहते है...
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् ।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ॥
जिस मनुष्य में स्वयं का विवेक, चेतना एवं बोध नहीं है, उसके लिए शास्त्र क्या कर सकता है। आंखों से हीन अर्थात् अंधे मनुष्य के लिए दर्पण क्या कर सकता है।