अर्थात् अन्य जगह किया हुआ पाप तीर्थ में जाने से नष्ट हो जाता है, पर तीर्थ में किया हुआ पाप वज्रलेप हो जाता है।
3. जब कोई अपने माता-पिता, भाई, परिजन अथवा गुरु को फल मिलने के उददेश्य से तीर्थ में स्नान करता है तब उसे स्नान के फल का बारहवां भाग प्राप्त हो जाता है।
4. जो दुसरों के धन से तीर्थ यात्रा करता है। उसे पुण्य का सौलहवां भाग प्राप्त होता है और जो दूसरे कार्य के प्रसंग से तीर्थ में जाता है उसे उसका आधा फल प्राप्त होता है।
5. तीर्थ यात्रा का पूर्ण फल तभी मिलता है जब आपने किसी भी आत्मा को जाने-अनजाने में कष्ट ना पहुंचाया हो। आपका आचार, विचार, आहार, व्यवहार और संस्कार शुद्ध और पवित्र हो।