रक्षाबंधन के पवित्र पर्व को मनाए जाने के निर्देश शास्त्रों में बताए गए हैं जिसका पालन करने से शुभता की प्राप्ति होती है। शास्त्र के अनुसार भद्रा रहित अपरान्ह व्यापिनी पूर्णिमा तिथि की करना चाहिए क्योकि मान्यता अनुसार भद्रा के समय श्रावणी (रक्षाबंधन )और फाल्गुनी (होली) नहीं मनाने का विधान है- '
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी, श्रावणी नृपति हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी।' यदि भद्रा में श्रावणी करें तो राजा को और होली करें तो ग्राम को हानि होना बताया गया है।
20 अगस्त को भद्रा प्रात: 10 बजकर 21 मिनिट से रात्रि 8 बजकर 48 मिनिट तक रहेगी अगले दिन पूर्णिमा तीन मुहूर्त से कम होने से पूर्व दिन 20 अगस्त को प्रदोषकाल में भद्रा के पश्चात् रात्रि 8 बजकर 48 मिनिट से रक्षाबंधन करना चाहिए।
अति आवश्यक होने पर भद्रा मुख में दोपहर 3 बजकर 35 मिनिट से सायं 6 बजकर 12 तक राखी बांधी जा सकती है परन्तु भद्रापुच्छ में साय 6 बजकर 12 मिनिट से 20 बजकर 48 मिनिट की अवधि निषिद्ध है।
कार्येत्वावश्यके विष्टे: मुखमात्रं परित्यजेत - मुहूर्तप्रकाश इस तरह का संयोग 40 साल बाद बन रहा है। इससे पहले 13 व 14 अगस्त 1973 को ऐसा संयोग बना था आगे ऐसे ही स्थिति 2022 में बनेगी।
उत्तर भारत के कई प्रदेशों में उदयात तिथि में पूर्णिमा होने पर पूरा दिन रक्षाबंधन बनाया जाता है। भाई पूजा पाठ आदि से निवृत्त हो राखी बंधाते हैं। अत: वह लोग 21 अगस्त को इस पर्व को मनाएंगे तथापि कुल-परम्परा और लोक प्रचलन अनुसार आवश्यक परिस्थिति में भद्रारहित काल में शुभ मुहूर्त देख कर रक्षाबंधन मनाया जाना चाहिए।