शिव पुराण में वर्णित है कि भगवान शंकर ने कड़ी तपस्या के उपरांत जब अपने नेत्र खोले तो उनके नेत्रों से कुछ अश्रु की बूँदे गिरीं। अश्रु की उन बूँदों से वहाँ रुद्राक्ष नामक एक वृक्ष पैदा हो गया। बस, तभी से रुद्राक्ष की उत्पत्ति मानी गई।
रुद्राक्ष के फल (रुद्र+अक्ष) शिवजी की आँख का प्रतिरूप हैं इसीलिए रुद्राक्ष शिवजी को सर्वाधिक प्रिय है। रुद्राक्ष के दर्शन, स्पर्श और उन पर किए जाने वाले जाप और रुद्राक्ष धारण करने से अनेक पापों और दुष्कर्मों का नाश होता है। जहाँ इसका धार्मिक कार्यों में प्रयोग होता है, वहीं औषधीय गुणों से भी यह सराबोर है इसीलिए हृदय रोग और ब्लड प्रेशर रोग के निवारणार्थ रुद्राक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका दर्शाई गई है।
वैसे घोर विपत्ति से त्राण पाने और आयु वृद्धि के लिए किए जाने वाले महामृत्युंजय मंत्र का जप रुद्राक्ष से बनी माला पर किए जाने का चलन आज भी बरकरार है। रुद्राक्ष में एक अमोघ शक्ति विद्यमान है, तभी तो साधु-संतों व योगियों ने इसकी चमत्कारिक शक्ति से प्रभावित होकर इसे अपनाया है। इसे देवाधिदेव शंकर का स्वरूप मानकर सर्वाधिक शुभ, पवित्र एवं कल्याणकारी माना गया है।
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यह स्वाद में खट्टा, रुचिवर्द्धक, वायु कफशामक तथा शिरावेदनहार जैसे रोग का क्षय करता है। मधु के साथ घिसकर यह मधुमेह में भी लाभ पहुँचाता है। शिवपुराण में इसे भूत बाधा तथा ग्रह पीड़ा निवारक की संज्ञा दी गई है। गले अथवा हाथ (भुजा) में बाँधने से यह रक्तचाप को नियंत्रित रखता है। रुद्राक्ष के बीज पर लकीरें अंकित होती हैं, जो संख्या में 5 होती हैं। इन्हें रुद्राक्ष के मुखों के नाम से जाना जाता है।
सोमवार का दिन इसे धारण करने हेतु सर्वश्रेष्ठ है। शिव मंदिर में बैठकर मंत्र जाप करके शिवलिंग से स्पर्श कराने के बाद रुद्राक्ष को पहनना चाहिए। शिव पुराण में यह वर्णित है कि जहाँ रुद्राक्ष का पूजन-अर्चन विधिवत होता है, वहाँ लक्ष्मी का वास बरकरार रहता है। रुद्राक्ष यदि जल में तैर जाए तो कच्चा और डूब जाए तो पका हुआ माना जाता है। मंत्र पाठ के पूर्व शिवपूजन और एक माला (108 बार) ' ॐ नमः शिवाय ः' का जाप अवश्य करना चाहिए। 'मनात् तारयते इति मंत्र' जो मन को तार दे, उसे मंत्र कहा गया है।
रुद्राक्ष को एक धागे में बाँधकर प्रसूता के पेट पर लटकाने पर उसके घूमने की गति के आधार पर गर्भस्थ शिशु के लड़का अथवा लड़की होने का निर्धारण किया जाता है। एकमुखी से लेकर चौदह मुखी रुद्राक्ष के धारण करने के शिवपुराण में ये मंत्र दृष्टव्य हैं-