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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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ग़ज़ल में तसव्वुफ़ (भक्ति भाव)

हमें फॉलो करें ग़ज़ल में तसव्वुफ़ (भक्ति भाव)
जब यार देखा नयन भर दिल की गई चिंता उतर
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर ------- अमीर ख़ुसरो

सब इख़्तियार मेरा तज बात से प्यारा
जिस हाल सू रखेगा, है ओ ख़ुशी हमारा -----क़ुली क़ुतुब शाह

गर ख़ुदा बीनी पर से तेरी नज़र है कामयाब
तो ख़ुदा का कर अव्वल तू मियाने दे हिजाब -----अब्दुल्लाह क़ुतुब शाह

शेहबाज़ हुसैन खोए कर दो जहाँ दिल धोए कर
अल्लाह आपे यक होए कर तब पावेगा दीदार तुसा-------ख़्वाजा बन्दा नवाज़ गेसू दराज़

आज सर सब्ज़ कोह-ओ-सेहरा है
हर तरफ़ सैर है तमाशा है -----------वली औरंगाबादी

वली कूँ नहीं माल की आरज़ू
ख़ुदा दोस्त नहीं देखते ज़र तरफ़ ----वली औरंगाबादी

इलाही दर्द-ओ-ग़म की सर ज़मीं का हाल क्या होता
मोहब्बत गर हमारी चश्मे-तर से मेंह न बरसाती ------मज़हर जानेजानाँ

सब जगत ढूंड फिरा यार न पाया लेकिन
दिल के गोशे में निहाँ था, मुझे मालूम न था -----सिराज ओरंगाबादी

अल्लाह का जलवा हर सो मौजूद है
शर्त सिर्फ़ दीदा-ए-बीना की है -----------ख़्वाजा मीर दर्द

जग में आकर इधर उधर देखा
तू ही आया नज़र जिधर देखा----------ख़्वाजा मीर दर्द

गर मारफ़त का चश्मे-बसीरत में नूर है
तो जिस तरफ़ को देखिए उसका ज़हूर है -----ख़्वाजा मीर दर्द

तुझ सिवा कोई जलवा गर ही नहीं
पर हमें आह कुछ ख़बर ही नहीं -------मीर असर

ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं ----------मो. रफ़ी सौदा

सौदा निगाहे-दीदा-ए-तहक़ीक़ के हुज़ूर
जलवा हरएक ज़र्रे में है आफ़ताब का ------मो. रफी सौदा

उठ जाए गर ये बीच का परदा हिजाब से
दरिया ही फिर तो नाम है हरैक हुबाब का ----क़ाइम चाँदपुरी

था मिसतेआर हुस्न से उसके जो नूर था
ख़ुरशीद में भी उसका ही ज़र्रा ज़हूर था ------मीर तक़ी मीर

हस्ती अपनी हुबाब की सी है
ये नुमाइश सुराब की सी है --------मीर तक़ी मीर

आम है यार की तजल्ली मीर
ख़ास मूसा-ओ-कोहे-तूर नहीं ------मीर तक़ी मीर

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