अक्ती (अक्षय तृतीया) छत्तीसगढ़ की विशेषता से जुड़ा अनोखा पर्व...

Webdunia
* गुड्डे-गुड़ियों की शादी का अनोखा पर्व है अक्ती
 
अक्षय तृतीया अर्थात अक्ती के दिन गांव-गाव में ही नहीं, भिन्न-भिन्न समाजों के महाधिवेशनों में आदर्श विवाह की धूम रहती है। अक्ती छत्तीसगढ़ में पुराने और नए के बीच का सेतु है। छत्तीसगढ़ी बैरागी है। वह सदा पुराने से नए, प्राचीन से अर्वाचीन, जड़ता से गतिशीलता की ओर चलता चला आया है। यही इसकी विशेषता है। 'अक्ती' छत्तीसगढ़ विशेषता से जुड़ा अनोखा पर्व है। छत्तीसगढ़ में पर्वों और कुछ विशेष तिथियों के भीतर की कथा का अपना ही महत्व है।

 
छत्तीसगढ़ में रामकथा, महाभारत, भर्तृहरि गाथा, ढोला मारू, लोरिकायन छत्तीसगढ़ी रंग में रंग कर विशिष्ट अंदाज में पीढ़ी दर पीढ़ी कथा-वाचन की समृद्ध परंपरा के दम पर जन-मन और कण-कण में परिव्याप्त है। छत्तीसगढ़ दुनिया भर की श्रेष्ठ परंपराओं को अपने ही ढंग से ग्रहण करता है। भाषा, व्यवहार, आचरण और परंपरा का छत्तीसगढ़ी अंदाज इसीलिए ज्ञानी-ध्यानियों को चकित करता है।

 
इसी दिन साल भर के लिए किसान के घर नौकरी करने के लिए अनुबंधित पुराना नौकर कार्यमुक्त होता है। नौकर के बदले यहां उसे कमिया, बइला चरवाहा या फिर हिस्सेदार के रूप में कृषक का सौंजिया कहा जाता है। सौंजिया जो फसल का एक हिस्सा अपने परिश्रम के बदले प्राप्त करने का अधिकारी होता है। नौकर नहीं, श्रम के बल पर वह मालिक होता है।
 
एक पहर रात को यहां पहट कहा जाता है। पहट को उठकर पशुओं को चराने ले जाने वाला ग्वाला पहटिया कहलाता है। कपड़ों को उजलाने वाले धोबी को उजिर और बाल-काटने वाले नाई को ठाकुर का नाम मिला है। ग्राम देवी-देवताओं की सेवा करने वाला ग्राम पुजारी का नाम ही बैगा है। अक्ती के दिन बैगा गांव पर सदैव कृपा बनाए रखने के लिए देवी से प्रार्थना करता है। अक्ती त्योहार के दिन कमिया अपने मालिक का खास मेहमान होता है। उसे पूरे मान-सम्मान के साथ विशिष्ट भोजन परोसा जाता है।

 
छत्तीसगढ़ में आज भी अधिकतर शादियां सादिगीपूर्ण होती हैं। धीरे-धीरे दूसरों की देखा-देखी के कारण अधिक खर्च एवं तामझाम का अनुकरण शहरों के वाशिंदे छत्तीसगढ़ी भी कर रहे है। छत्तीसगढ़ में भिन्न-भिन्न पर्वों का अपना ही महत्व है। आशा और विश्वास बढ़ाने वाले पर्वों में अक्ती विशेष है। 
 
कवि मुकुन्द की पंक्तियां याद आती है :
 
'मया दया के ये दोना, माटी उपजावै सोना /आस हमर विश्वास हमर, भुइयां संग अगास हमर/' नदिया-नरवा,कुआं- बावली, बखरी अऊ खलिहान/इहें बसे हे हमर परान।
 
अक्षय तृतीया अर्थात अक्ती के दिन बच्चे अपने मिट्टी से बने गुड्डे- गुड़ियों अर्थात पुतरा-पुतरी का ब्याह रचाते हैं। कल जिन बच्चों को ब्याह कर जीवन में प्रवेश करना है, वे परंपरा को इसी तरह आत्मसात करते हैं। बच्चे, बुजुर्ग बनकर पूरी तन्मयता के साथ अपनी मिट्टी से बने बच्चों का ब्याह रचाते हैं। इसी तरह वे बड़े हो जाते है और अपनी शादी के दिन बचपन की यादों को संजोए हुए अक्ती के दिन मंडप में बैठते है। अक्ती के दिन महामुहूर्त होता है। बिना पोथी-पतरा देखे इस दिन शादियां होती हैं।

 
- डॉ. परदेशीराम वर्मा

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

शुक्र के धनु राशि में गोचर से 4 राशियों को होगा जबरदस्त फायदा

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: 13 नवंबर के दिन किन राशियों को मिलेगी खुशखबरी, किसे होगा धनलाभ, पढ़ें 12 राशियां

Vaikuntha chaturdashi date 2024: वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व, क्यों गए थे श्री विष्णु जी वाराणसी?

13 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

13 नवंबर 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Dev uthani ekadasshi 2024: देव उठनी एकादशी का पारण समय क्या है?

अगला लेख
More