-डॉ. दिलीप त्रिवेदी
शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में संतुलित भोजन के साथ-साथ फलों का सेवन भी अति आवश्यक है। विभिन्न प्रकार के फलों से मनुष्य को आसानी से विटामिन्स, खनिज पदार्थ, प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट्स उपलब्ध हो जाते हैं एवं अभावजन्य रोग दूर होते हैं। प्रत्येक मनुष्य को अपनी आयु, आर्थिक स्थिति, मौसम एवं फल की उपलब्धता के अनुसार इनका सेवन अवश्य करना चाहिए।
कुछ फलों के गुण-धर्म इस प्रकार हैं :-
आम : यह फलों का राजा कहलाता है। इसमें विटामिन ए व सी पर्याप्त मात्रा में होते हैं। पका आम दस्तावर और बलवर्धक होता है। दूध के साथ इसका सेवन करने से शरीर पुष्ट होता है। कच्चा आम खट्टा और पित्तकारक होता है। आग में भूने हुए कच्चे आम का शरबत 'लू' लगने पर बड़े काम का होता है। कच्चे आम से चटनी, अचार, अमचूर एवं सब्जी बनती है।
केला : केले में कार्बोहाइड्रेट्स के अलावा विटामिन ए, बी, सी पाए जाते हैं। फास्फोरस, चूना, पोटाश तथा लोहे की मात्रा भी सेब व नारंगी से अधिक पाई जाती है। कच्चे केले के आटे की रोटी से वायु विकार दोष दूर होता है। पका केला हलका, शीतल और पुष्टिकारक होता है। कच्चे फल की सब्जी दस्त को रोकने में सहायक होती है।
अंगूर : अंगूर में शर्करा, खनिज, लवण तथा विटामिन 'बी' प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह बलवर्धक, दस्तावर, खून को साफ करने वाला तथा खाँसी और बुखार में राहत देने वाला होता है। इसे सुखाकर किशमिश और मुनक्का भी बनाई जाती है।
अमरूद : अमरूद में विटामिन 'सी' की मात्रा अधिक होती है। कच्चा अमरूद कब्जकारी लेकिन पका हुआ कब्ज ठीक करता है। इसके फल से जेली बनाई जाती है।
अनार : अनार के दानों का रस पिया जाता है। यह ठण्डा, त्रिदोषनाशक, हृदय रोग, ज्वर और कण्ठ रोग में लाभप्रद है। इसका छिलका पेचिस की दवा में काम आता है।
पपीता : यह पाचक, दस्तावर और बलवर्धक होता है। बढ़ी हुई तिल्ली तथा लीवर के लिए यह लाभदायक होता है। बवासीर, अपच एवं गुर्दे के रोगियों के लिए भी इसका सेवन फायदा पहुँचाता है। इसमें विटामिन ए एवं सी की पर्याप्त मात्रा होती है। कच्चे पपीते से पपेन भी बनाई जाती है, जिसका उपयोग पाचन संबंधी औषधि में होता है।
सेब : ताजा सेब पाचन में हलका, बलवर्धक और खून को बढ़ाने वाला होता है।
संतरा : संतरे में विटामिन 'सी' की मात्रा एवं खनिज तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। संतरा ठण्डा, पाचक और पेशाब को साफ करने वाला होता है। स्कर्वी की व्याधि में इसका सेवन अच्छा माना गया है।
चीकू : चीकू पित्तनाशक तथा बुखार मिटाने में सहायक होता है।
सीताफल या शरीफा : इसका फल शीतल, बलवर्धक एवं हृदय हेतु हितकारी और कफ कारक माना गया है।
बेर : बेर में विटामिन सी, ए तथा बी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। विटामिन के अतिरिक्त इसमें शर्करा और खनिज पदार्थ भी उपलब्ध होते हैं। बेर शीतल, दस्तावर और पुष्टिकारक होता है। कच्चे बेर पित्तकारक और कफवर्धक होते हैं।
बेलफल : बिल या बेल का शर्बत गर्मी में पिया जाता है। यह ठण्डा होता है। कच्चे बिल का गूदा पेचिस के लिए उत्तम होता है।
नारियल : कच्चे नारियल का रस पिया जाता है, जो मीठा और ठण्डा होता है। नारियल की गिरी बलवर्धक, पित्तनाशक और दाह को मिटाने वाली होती है।
शहतूत : इसके पत्ते रेशम के कीड़ों को खिलाए जाते हैं। फल शीतल, भारी और पित्तनाशक होता है।
जामुन : जामुन का फल मधुर, कफ तथा पित्तनाशक, मधुर विपाक, दीपन, मलरोधक, तृषाशामक, पाचक, अतिसार, श्वास-खाँसी तथा उदर कृमियों को नष्ट करने वाला होता है। जामुन में पाया जाने वाला लोहांश रक्त की अशुद्धता में होने वाली प्लीहा तथा यकृत वृद्धि में फायदा करता है। इसकी गुठली का उपयोग मधुमेह में लाभदायक है।
जामुन की गुठली मधुर एवं शीतल होती है। यह पुराने दस्त, खूनी दस्त, मधुमेह तथा रक्तप्रदर के लिए दवा के रूप में प्रयुक्त की जा सकती है। मधुमेह रोगियों के लिए जामुन का सेवन लाभप्रद रहता है।
फालसा : फालसा में विटामिन ए और सी तथा खनिज, लवण, फास्फोरस तथा लौह तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसका शर्बत भी बनाया जाता है।
खजूर : यह शीतल, हृदय के लिए हितकारी और पुष्टिकारक होता है। खाँसी, दमा और क्षय रोग में इसका सेवन लाभकारी होता है।
नाशपाती : नाशपाती हलकी, वीर्यवर्धक, पित्त तथा कफनाशक होती है।
अनानास : अनानास स्वादिष्ट, बलदायक और पाचक होता है।
आड़ू : यह कृमिनाशक, पेटदर्द को मिटाने वाला तथा दस्तावर होता है।
आलू बुखारा : आलू बुखारा हृदय को शक्ति प्रदान करने वाला फल माना गया है। इसकी तासीर ठण्डी होती है। यह पचने में थोड़ा भारी होता है। इसका सेवन करने से मल बँधकर आता है।
लीची : लीची के फल में विटामिन-सी, फास्फोरस, कैल्शियम और लोह तत्व अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
कमरख : इसका मुरब्बा और अचार अच्छा बनता है। इसका शरबत भी बनाया जाता है। यह कफ और बादीनाशक होता है।
चकोतरा : इससे शरबत बनाते हैं। इसके सेवन से पाचन शक्ति अच्छी होती है।
बिजोरा : हृदय के लिए हितकारी एवं पेटदर्द में आराम पहुँचाता है।
इमली : इसकी चटनी और शरबत स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। इमली कृमि नाशक, अग्निदीपक और दस्तावर होती है। 'लू' लगने पर इसका शरबत पीना लाभप्रद रहता है।
आँवला : आँवले में विटामिन 'सी' सबसे अधिक होता है। गर्मी के दिनों में इसके मुरब्बे का सेवन अवश्य करना चाहिए। आँवला बलवर्धक, पित्तनाशक, ठण्डा, दस्तावर, अधिक पेशाब लाने वाला एवं त्रि-दोषनाशक होता है।
नीबू : आयुर्वेद मत से नीबू खट्टा, वातनाशक, दीपन, पाचक, हलका, कृमिनाशक, तीक्ष्ण, उदर रोगों को दूर करने वाला, श्रम हारक, शूल में हितकारी एवं अरुचिनिवारक होता है। नीबू का रस प्रभावी कृमिनाशक है एवं इससे चर्मरोग में भी आराम पहुँचता है।