रचें वनस्पतियों का सुंदर संसार सृजन ऋतु में

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- मणिशंकर उपाध्याय

बरसात प्रकृति की सृजन ऋतु है। इस मौसम में धरती की गोद में पड़े असंख्य बीज बिना किसी खाद, पोषक तत्व, साज-संभाल के, बिना धरती को जोते अपने आप उगकर संपूर्ण सतह को हरियाली चादर ओढ़ा देते हैं। प्राकृतिक रूप से उगने वाली वनस्पति का प्रत्येक पौधा मिट्टी से सिर्फ पोषक तत्व ही नहीं लेता, बल्कि मिट्टी के कणों को अपनी जड़ों के मूल रोमों (रूट हेयर्स) द्वारा बाँधकर पानी द्वारा बहा ले जाने से रोके रखता है। वनस्पति जमीन की सतह पर पड़े मिट्टी के कणों को अपनी पत्तियों से ढँककर उन पर पड़ने वाली वर्षा की तेज बौछारों की मार से बचाती है। पत्तियाँ, फल, बीज आदि अनेक पशु-पक्षियों, सूक्ष्म जीवों का पोषण करती है।

सरलता से उगा सकते है ं
इस मौसम में हम अपने उपयोग की किसी भी वनस्पति को सरलतापूर्वक उगा सकते हैं। सबसे पहले बोई जाती हैं वे वनस्पतियाँ जिन्हें फसल (खरीफ) कहा जाता है। इनका जीवनकाल लगभग निश्चित (90 से 130 दिन) होता है, कपास व तुवर को छोड़कर। इसके बाद क्रम आता है सब्जियों का, जिनकी पत्तियाँ, कंद, फलियाँ, फल या बीज उपयोग में लाए जाते हैं। तीसरे क्रम पर आते हैं पशुओं के चारे। यह तो हुआ मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों के लिए। इनके अलावा फलोद्यान, शोभाकारी वृक्ष, वानस्पतिक बागड़ (लाइव फेंसिंग), गृह उद्यान, रसोई उद्यान, गमलों में पौधे लगाने के लिए भी यह उपयुक्त समय है।

यदि व्यावसायिक तौर पर आप फलोद्यान, सजावटी पौधे, पुष्पोद्यान, औषधीय पौधे लगाना चाहते हैं तो केंद्र एवं प्रदेश शासन की अनेक योजनाएँ हैं, जिसमें कुछ अनुदान या सहायता राशि का प्रावधान है। इसके लिए तकनीकी सलाह भी प्रदेश के उद्यान विभाग द्वारा दी जाती है। फलोद्यान लगाने के पहले मिट्टी की किस्म, उसकी गहराई, आपसपास की सामाजिक स्थिति, सुरक्षा आदि की जानकारी अवश्य ले लें।

किसी भी प्रकार की खेती में बीज, पौधा, कलम, जडूंदे आदि उसका एक प्रमुख आदान होता है। इन्हें खरीदते समय उसके स्रोत की विश्वसनीयता की पूरी खात्री करना आवश्यक है। खरीद करते समय खरीदे गए बीज, कलम, पौधे की किस्म का नाम, उसकी मात्रा या संख्या, उसका भाव, तारीख व विश्वसनीयता का मार्क (आईएसआई या अन्य) तथा विक्रेता फर्म या संस्था के अधिकारी या संबंधित व्यक्ति के पूर्ण हस्ताक्षर, नाम व संस्था की सील होना आवश्यक है, जिससे किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी होने पर वैधानिक कार्रवाई कर मुआवजा वसूल किया जा सके।

आपको यह करना ह ै
जुलाई-अगस्त की रिमझिम फुहार, बदलीयुक्त, धूपरहित मौसम अधिकांश पौधों के रोपे, कलम, जडूंदे आदि लगाने के लिए उपयुक्त है। इसके लिए पौधे के आकार के अनुसार गड्ढा जमीन में करें। उसमें खेत की मिट्टी बालू रेत और गोबर की खाद बराबर मात्रा में मिलाकर भरें। इसके बाद पौधा उसी गहराई तक लगाएँ जिस गहराई से उसे निकाला गया था। पौधा लगाने के बाद जड़ों के आसपास की मिट्टी को हाथ या पैर से अच्छी तरह दबा दें, जिससे मिट्टी व जड़ों का अच्छा संपर्क हो जाए। इसके बाद अगर बरसात न हो रही हो तो पौधों को पानी देना आवश्यक हो जाता है। यदि मिट्टी में चींटी, कीड़े, दीमक आदि हो तो पौध मिश्रण के साथ नीम की खली या निंबोली या नीम की पत्तियों का चूरा या करंज की खली भी मिला दें। बीएचसी या डीडीटी की अपेक्षा ये अधिक सुरक्षित हैं।

फसलों के बीच नाली बनाए ँ
खेतों में बारीक बीज वाली फसलें बोने के बाद, कतारों के बीच नाली बना दी जानी चाहिए। नालियाँ अधिक बरसात की स्थिति में अतिरिक्त पानी के निकास मार्ग का काम करती हैं और पानी की कमी की स्थिति में सिंचाई नाली की तरह उपयोग में लाई जा सकती है।

छत पर भी पौधे लगाए ँ
घर की छत पर भी अपनी रुचि के छोटे व मध्यम आकार के पौधे गमलों या पुराने मटकों में लगाए जा सकते हैं। गमले या मटकों के पेंदे (तली) में छेद करके इनमें पौध मिश्रण भरने के बाद मनचाहा पौधा लगाए। यथासंभव 12-15 इंच से अधिक व्यास के गमले छत पर न रखें। गमलों के नीचे ईंट या पत्थर इस तरह रखें कि गमले की तली और छत की सतह का सीधा संपर्क न रहे। छत ऐसी हो जिस पर कम से कम आठ घंटे धूप मिलती हो।

ध्यान रखें इन बातों क ा
कलम और जडूंदे कम से कम एक मौसम या वर्ष पहले के होना चाहिए। कलम के दोनों सिरे सफाईपूर्वक कटे हुए होना चाहिए। ये फटे या चिरे या कुचले हुए नहीं हों। प्रत्येक कलम में तीन-चार बड्स होना आवश्यक है। इन्हें जमीन में तिरछी 45 डिग्री से 60 डिग्री अंश के कोण पर लगाएँ।

* जडूंदे भी नर्म ऊतक (सॉफ्ट टिश्यू) वाले नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसे जडूंदे से नए पौधे निकलने से पहले ही सड़कर फफूँद लगकर नष्ट होने की आशंका रहती है।

* जडूंदे को नम मिट्टी में लगाने के बाद इनके ऊपर मिट्टी की आधा इंच मोटी परत बना दें। इसे हल्का-सा दबा दें, जिससे बारीक जड़ों व मिट्टी का सीधा संपर्क हो सके, इसके बीच वायु रंघ्र न रह पाए।

* बारीक बीजों वाले पौधों के अंकुरण के बाद शिशु पौधों को पानी इस तरह दिया जाना चाहिए कि उनकी जड़ों के आसपास की मिट्टी नहीं बहे। इसके लिए बारीक छेद वाले झारे का उपयोग करें।

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