हममें से बहुत कम लोग यह जानते हैं कि मूँगफली दक्षिण अमेरिकी मूल का पौधा है, परंतु यही सत्य है। इसके बीजों का पेरू के प्राचीन गुंबजों में पाया जाना इस बात का प्रमाण है। पिछली दो-तीन शताब्दियों में इस फसल ने अपने आपको इस देश के परिवेश व मिट्टी और मौसम में ऐसे ढाला कि यह अपनी ही हो गई। अब तो देश की तिलहनी फसलों के क्षेत्रफल की दृष्टि से इसका प्रथम स्थान है।
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यह दलहन वर्ग का तिलहनी पौधा है। इसे प्रकृति ने अनेक विशिष्ट गुणों से नवाजा है। जैसे दलहन वर्ग (लेग्यूमिनेसी) परिवार का पौधा होने के कारण अपनी नत्रजनीय पोषण की काफी कुछ पूर्ति इसकी जड़ों में रहने वाले बैक्टीरिया की सहायता से कर लेता है। इसके बीज एक मोटी परत के अंदर सुरक्षित रूप से पैक रहते हैं। इसके बीजों (दानों) में प्रोटीन के साथ पर्याप्त मात्रा में तेल (फैट) भी पाया जाता है।
इसके फूल जमीन के ऊपर खिलते हैं, किंतु फल (यानी फली) जमीन के अंदर जाकर बनते व बढ़ते हैं। इसकी फली और बीजों से तेल निकालने के बाद बची खली का उपयोग पशुओं के लिए एक पौष्टिक आहार के रूप में किया जाता है। फसल खेत से निकल जाने के बाद खेत की मिट्टी में जीवांश व नत्रजन छोड़कर उसे उर्वर बनाती है।
इसकी फलियाँ जमीन के अंदर बनने के कारण मिट्टी कंकररहित, भुरभुरी पर्याप्त हवादार व जीवांशयुक्त होना चाहिए। अम्लीय व क्षारीय मिट्टियाँ इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होतीं। भारी चिकनी मिट्टियों को पर्याप्त मात्रा में जीवांश खाद डालकर इसकोअनुकूल बनाया जा सकता है।
मूँगफली के पौधे दो प्रकार के होते हैं, फैलने वाले (स्प्रेडिंग) व झाड़ीदार (बुशी)। फैलने वाली किस्मों के 70 से 80 किलोग्राम व झाड़ीदार किस्मों के 85 से 100 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। गर्मी की फसल की बोवनी फरवरी अंत से मार्च के प्रथम सप्ताह तक पूरी कर लेनी चाहिए। देर करने से वर्षा शुरू हो जाने पर फलियाँ खराब होने व खरीफ फसल की बोवनी में देरी होने की आशंका रहती है।
ग्रीष्मकालीन फसल की बोवनी कतारों में 30 सेमी व पौधे से पौधे के बीच 15 सेमी रखी जाती है। पौध पोषण के लिए प्रति हैक्टेयर 80 से 100 क्विंटल गोबर खाद या कंपोस्ट या 60 से 80 क्विंटल केंचुआ खाद डालकर मिलाएँ। इसके अलावा 40 किग्रा नत्रजन 60-80 किग्रा स्फुर, 30-40 किग्रा पोटाश, 30 किग्रा गंधक व 40 किग्रा कैल्शियम प्रति हैक्टेयर दिया जाना चाहिए। सभी पोषक तत्व मिलाकर बीज बोते समय बीज के नीचे कतारों में और कर (बोकर) देना चाहिए।
गर्मी की फसल लेने के लिए खेत को तैयार करने के बाद पलेवा देकर बोवनी की जाना, बोवनी के बाद सिंचाई करने की अपेक्षा बेहतर होता है। अंकुरण होने और पौधे जम जाने के एक माह बाद निंदाई व गुड़ाई की जाती है पौधों में फूल आने के पहले आखिरी बार कोलपा चलाकर मिट्टी भुरपुरी कर लें, जिससे फूल से बनने वाली खूँटियों (पेग्स) जमीन में आसानी से प्रवेश कर, फलियाँ अच्छी तरह निर्मित व विकसित हो सकें।
बाद की सिंचाइयाँ मिट्टी व मौसम के अनुसार 25 से 30 दिन के अंतर पर करें। फसल पकने पर पौधों को उखाड़कर थोड़ा सुखाकर फलियाँ अलग कर सुखा लें। एक हैक्टेयर सिंचित फसल से 25 से 28 क्विंटल फलियाँ मिल जाती हैं।
प्रमुख उन्नत किस्में मध्यप्रदेश और देश के मध्यक्षेत्र में सिंचाई के साथ इसकी ग्रीष्मकालीन फसल ली जा सकती है। इसकी उन्नत किस्में ही लगाई जानी चाहिए। इसकी प्रमुख उन्नत किस्में हैं- एके 12-24, ज्योति, चित्रा, चंद्रा, आरएस-1, टीजी-1 (विक्रम), जेएल-24 (फुले प्रगति)। इसके लिए खेत की तैयारी इस तरह करें कि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। बोने के लिए मूँगफली से छीलकर ही बीज (दाने) निकाले जाते हैं। बीजों को 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी (प्रोटेक्ट) प्रति एक किग्रा बीज की दर से उपचारित करें।