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दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र संस्कृत में हिंदी अर्थ सहित | Daridra dahan shiv stotram

हमें फॉलो करें दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र संस्कृत में हिंदी अर्थ सहित | Daridra dahan shiv stotram
, गुरुवार, 10 अगस्त 2023 (17:05 IST)
दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र और अर्थ | Daridra Dahan Shiv Stotra: गरीबी सता रही है, घर में दरिद्रता है या किसी भी प्रकार धन की तंगी से परेशान हैं तो शिवजी का यह दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र का पाठ करें। इससे सभी प्रकार की दरिद्रता दूर हो जाती है। सभी तरह के दुखों का नाश हो जाता है। महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचा गया प्रमाणिक स्तोत्र यहां प्रस्तुत है।
 
विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय
कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय
कर्पूरकांति धवलाय जटाधराय
दारिद्र्यदु:खदहनाय नम: शिवाय।।1।।
 
समस्त चराचर विश्व के स्वामि रूप विश्वेश्वर, नरकरूपी संसार सागर से उद्धार करने वाले, कर्ण से श्रवण करने में अमृत के समान नाम वाले, अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषण रूप में धारण करने वाले, कर्पूर की कान्ति के समान धवल वर्ण वाले, जटाधारी और दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।1।।
 
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकंकणाय
गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
दारिद्र्यदु:खदहनाय नम: शिवाय।।2।।
 
गौरी के अत्यन्त प्रिय, रजनीश्वर (चन्द्र) की कला को धारण करने वाले, काल के भी अंतक (यम) रूप, नागराज को कंकण रूप में धारण करने वाले, अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले, गजराज का विमर्दन करने वाले और दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।2।।
 
भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागर तारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय
दारिद्र्यदु:खदहनाय नम: शिवाय।।3।।
 
भक्ति के प्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय के विनाशक, संहार के समय उग्ररूपधारी, दुर्गम भवसागर से पार कराने वाले, ज्योति स्वरूप, अपने गुण और नाम के अनुसार सुन्दर नृत्य करने वाले तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।3।।
 
चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुंडल मण्डिताय
मञ्जीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्यदु:खदहनाय नम: शिवाय।।4।।
 
व्याघ्र चर्मधारी, चिता भस्म को लगाने वाले, भाल में तृतीय नेत्रधारी, मणियों के कुण्डल से सुशोभित, अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले जटाधारी और दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।4।।
 
पञ्चाननाय फनिराजविभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय
आनंदभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्यदु:खदहनाय नम: शिवाय।।5।।
 
पांच मुख वाले, नागराजरूपी आभूषणों से सुसज्जित, सुवर्ण के समान वस्त्र वाले अथवा सुवर्ण के समान किरण वाले, तीनों लोकों में पूजित, आनन्दभूमि (काशी) को वर प्रदान करने वाले, सृष्टि के संहार के लिए तमोगुणाष्टि होने वाले तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।5।।
 
भानुप्रियाय भवसागर तारणाय
कालान्तकाय कमलासन पूजिताय
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय
दारिद्र्यदु:खदहनाय नम: शिवाय।।6।।
 
सूर्य को अत्यन्त प्रिय अथवा सूर्य के प्रेमी, भवसागर से उद्धार करने वाले, काल के लिए भी महाकालस्वरूप, कमलासन (ब्रह्मा) से सुपूजित, तीन नेत्रों को धारण करने वाले, शुभ लक्षणों से युक्त तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।6।।
 
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय
दारिद्र्यदु:खदहनाय नम: शिवाय।।7।।
 
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को अत्यन्त प्रिय अथवा राम से प्रेम करने वाले, रघुनाथ को वर देने वाले, सर्पों के अतिप्रिय, भवसागररूपी नरक से तारने वाले, पुण्यवानों में परिपूर्ण पुण्य वाले, समस्त देवताओं से सुपूजित तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।7।।
 
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय
मातंग चर्मवसनाय महेश्वराय
दारिद्र्यदु:खदहनाय नम: शिवाय।।8।।
 
मुक्तजनों के स्वामिरूप, पुरुषार्थ चतुष्टय रूप फल को देने वाले, प्रमथादि गणों के स्वामी, स्तुतिप्रिय, नन्दी वाहन, गज चर्म को वस्त्र रूप में धारण करने वाले, महेश्वर तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है।।8।।
 
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्।
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्।
त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्।।9।।
 
।।इस प्रकार महर्षि वसिष्ठ विरचित दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
 
संदर्भ : शिवस्तोत्ररत्नाकर

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