आईटी के महाघोटाले से जाना जाएगा 2009
वर्ष 2009 कॉरपोरेट इतिहास में सत्यम ‘महाघोटाले’ के लिए भी याद किया जाएगा जिसने पूरी दुनिया में भारतीय उद्योग जगत की छवि धूमिल की। जनवरी में सामने आए इस महाघोटाले की परतें आज भी खुलना जारी हैं। कई आरोप पत्र दाखिल किए जा चुके हैं और रोज एक नया फर्जीवाड़ा सामने आ रहा है। घोटाले के तार भारत समेत अन्य देशा से भी जुड़े हुए हैं।आईटी कंपनी सत्यम में 14,000 करोड़ रुपए के घोटाले ने न केवल शेयर बाजार को झकझोर दिया, बल्कि इसने सरकार को 2009 में कॉर्पोरेट गवर्नेंस के नियमों को नए सिरे से लिखने को बाध्य किया जिससे चार्टर्ड एकाउंटेंट के लिए नियम काफी सख्त हो गए।इस घोटाले में दस्तावेजों की खोज एवं जाँच पड़ताल के लिए जाँच एजेन्सियों को काफी मशक्कत करनी पड़ी और अदालत को दोषी व्यक्तियों को सजा देने में अब भी काफी समय लग सकता है। कंपनी के संस्थापक रामलिंग राजू ने जनवरी में इस घोटाले की स्वीकारोक्ति की थी।
सत्यम घोटाले के मद्देनजर निवेशकों के हितों की रक्षा करने एवं विश्वभर में देश की छवि और बिगड़ने से बचाने के लिए सरकार को कंपनी का प्रबंधन अपने हाथ में लेना पड़ा। सत्यम फर्जीवाड़े से और दो कंपनियां. मैटास इंफ्रा और मैटास प्रापर्टीज भी प्रभावित हुई। इनका नेतृत्व रामलिंग राजू के परिजनों के हाथ में है।सरकार को मैटास कंपनियों की बागडोर अपने हाथ में लेने के लिए कंपनी ला बोर्ड का रुख करना पड़ा। सत्यम के संस्थापक बी. रामिंलग राजू ने जब कंपनी में घोटाला किए जाने की बात स्वीकार की थी, उस समय कंपनी में करीब 7,800 करोड़ रुपये की हेराफेरी का अनुमान था।लेकिन बाद में सीबीआई ने दस्तावेजों की जाँच के बाद सत्यम में 14,000 करोड़ रुपए का घोटाला होने की बात कही। हाल ही में केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने सत्यम के संस्थापक बी रामलिंगा राजू, उनके भाई बी राम राजू और आठ अन्य के खिलाफ फर्जी ग्राहक बनाने तथा कंपनी से गलत तरीके से 430 करोड़ के नए घोटाले का पता लगाया है।सत्यम में विदेशी निवेश होने के कारण अमेरिका की अमेरिकी पूँजी बाजार विनियामक सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन सेक (एसईसी) ने करोड़ों रुपए घोटाले की जाँच की थी। भविष्य में इस तरह के घोटाले की आशंका दूर करने के लिए कंपनी मामलों के मंत्रालय ने पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित की और कंपनी विधेयक में संशोधन की प्रक्रिया शुरू की जिससे एसएफआईओ को और सांविधिक अधिकार दिए जा सकें।