प्राचीन समय में एक राजा थे पशुपाल। वे परम धर्मात्मा और पशु के पालन में विशेष ध्यान रखते थे। एक बार राजा समुद्र के किनारे गए और उन्होंने वहां पांच पुरुषों तथा एक स्त्री को देखा। राजा उन्हें देख मूर्छित हो गया। वे पांचों पुरुष तथा स्त्री उसे घर ले आए। राजा जब होश में आया तो उसने उनसे युद्ध किया। इस बीच पांच पुरुष और आ गए। राजा उनमें से किसी को भी मार नहीं पाया और वे दसों पुरुष और स्त्री राजा के शरीर में लीन हो गए। राजा दुखी हो गए। इस बीच वहां नारद मुनि आए और राजा ने उन्हें पूरी बात बताई व उनसे पुरुषों व स्त्री का परिचय पूछा।
नारद मुनि ने कहा कि जो दस पुरुष थे उनमें पांच ज्ञानेन्द्रिय और पांच कामेन्द्रिय थी और जो स्त्री थी वह मन रूप बुद्धि थी। वे क्रोधवश तुम्हारे पास आए थे। तुम्हारे पितामह ने यज्ञ में महादेव का भाग और स्थान नहीं रखा था। जिस पर महादेव ने अपने धनुष से देवताओं को दंड दिया, जिससे सभी पशु योनि को प्राप्त हुए। सभी देवताओं ने ब्रह्मा से निवेदन किया और फिर भगवान शिव के पास पहुंचे। यहां शिव ने प्रसन्न होकर उनसे कहा कि आप सभी महाकाल वन में जाओ और वहां लिंग रूपी पशुपतेश्वर महादेव के दर्शन करो।
सभी देवता महाकाल वन में आए और यहां शिवजी के दर्शन किए तथा पशु योनि से मुक्त हुए। मान्यता है कि जो भी मनुष्य पशुपतेश्वर के दर्शन-पूजन करता है उसके पूर्वज भी पशु योनि से मुक्त हो जाते हैं।